तस्वीर में आप एक टमाटर के पौधे को देख रहे होंगे, शायद किसी यात्री ने टमाटर खाकर उसके बीज को ट्रेन से फेंक दिया होगा… ये पौधा मिट्टी की छाती फाड़कर नही बल्कि पत्थरों को चीरकर बाहर आया है।
जब ये और भी नन्हा सा होगा, तब शताब्दी ओर राजधानी जैसे तूफान से भी तेज दौड़ती ट्रेनों के बिल्कुल पास से गुजरते हुए भी इसने सिर्फ बढ़ना सीखा ओर बढ़ते बढ़ते आखिर कार इसने एक टमाटर को जन्म दे ही दिया।
न हाथ है, न पांव है, न ही दिमाग है, और तो और इसको जीवित रहने के लिए कम से कम मिट्टी और पानी तो मिलना चाहिए ही था, जो इसका हक भी था लेकिन इस पौधे ने बिना जल, बिना मिट्टी के, बिना सुविधा के अपने आपको बड़ा किया… फला फूला और जीवन का उद्देश्य इसने पूरा किया।
जिन लोगो को लगता है कि जीवन मे हम तो असफल हो गए हम तो जीवन मे कुछ कर ही नही सकते, हम तो बस अब बरबाद हो ही चुके है, तो उन्हें इस टमाटर के पौधे से कुछ सीख लेनी चाहिए।
असली जीवन का नाम ही लगातार संघर्षों की कहानी है ।
In the picture you might be seeing a tomato plant, perhaps some passenger might have eaten the tomato and thrown its seeds from the train… This plant has come out not by tearing the clay chest but by slicing the stones. When it became even smaller, it learned to grow while passing very close to trains like Shatabdi and Rajdhani, which were running faster than a storm, and while growing, it finally gave birth to a tomato.
It has neither hands, nor legs, nor a brain, and to survive, it should have got at least soil and water, which was its right, but this plant survived without water, without soil, without Convenience made itself big…proliferated and it fulfilled the purpose of life.
Those people who feel that we have failed in life, we cannot do anything in life, we are already ruined, then they should learn something from this tomato plant. Real life itself is a story of continuous struggles.