्मनुष्य को सदा देश और काल को समझते हुए ही अपने आचरण व्यवहार स्वभाव और कर्मों को बरताने का निश्चय करके उसी अनुसार आचरण और व्यवहारिकता का निर्वाह करना चाहिए देश (स्थान) काल (समय) के अनुसार ही प्रिय-अप्रिय, सुख-दुःख जो भी आन पड़े उसको शांति धैर्य और विवेक के अनुसार संयमित भाव से सहन करना चाहिए_ अपने स्वधर्म मे सदा रत रहना चाहिए।
अपने हृदय में सदा क्षमा भाव को धारण कर सदैव अपने बड़े जनो की आज्ञा का पालन करना चाहिए अपने माता-पिता, गुरु, बड़े भाई और मित्र से शत्रुता द्वेष ईर्ष्या और वैरभाव रखने वाले शत्रु के साथ कभी नही रहना चाहिए और न ही इनसे संबंध और मेल जोल रखने चाहिए।
कभी भी किसी से भी अत्यधिक प्रेम, वैर, घृणा, ईर्ष्या, द्वेष और शत्रुता का भाव नही रखना चाहिए किसी के प्रति मन मे अत्यधिक प्रेम या मन में प्रेम का पूर्ण अभाव ये दोनों स्थितियाँ ही महान दोष है बुद्धिमान और विवेकवान मनुष्य को सदा अपने हित-सुख साधन के साथ साथ बहुजन हिताय बहुजन सुखाय के अनुसार ही आचरण व्यवहार और अपने धर्म विहित कर्तव्य कर्मो का निर्वाह और पालन करना चाहिए।