मन के द्वार से दिल के द्वार पर

landscape 4904498 640 1

आज का प्राणी मन के द्वार पर बैठा है। मन मेरा मेरी करता है। उसमें अधिक पाने की इच्छाए है। यह मन एक कुआ है जो कभी भरता नही है। आज का मनुष्य अधिक सुख खाने पिने के बहुत साधन जुटाने में जिन्दगी की शाम आ जाती है। मन को कितना ही खिलाओ मन कभी तृप्त नहीं होता है। मन मे और और की  इच्छाए जागृत होती है। मन हर समय नया चाहता है। मन अपने सुख की चाहत के रास्ते खोजा करता है। आज मानव सुख के साधन की खोज में लग गया  है। इसलिए वह अन्तर्मन से दुखी हैं। पहले व्यक्ति परिश्रम करके पेट पालता था दिल साफ और स्वच्छ था। अन्य का कार्य भी करके चलता था
प्राणी शांत और तृप्त दिल के द्वार पर होता है। दिल के द्वार को खोजने के लिए कठिन परिश्रम भगवान की भक्ति करनी होगी। आज हम कठिन परिश्रम करना नहीं चाहते है। इसीलिए कोई अन्तर्मन से खुश नहीं है क्योंकि अन्दर का द्वार खटखटाया ही नहीं बाहरी वस्तु में सबकुछ होता तब भगवान को कोन याद करता। कठोर परिश्रम हमारी सांस की किरया को ठीक करता है। हमारे फेफड़ों को आक्सीजन मिल जाती है हमारे अन्दर चरबी नहीं जमती। हमारे अन्दर की स्टरोंग नैस हमारे विचारों को पवित्र करती है। विचार की पवित्रता  हमारे अन्दर की भुख इर्ष्या और द्वेष को शान्त करती है।दिल के द्वार में प्राणी के अन्दर और अधिक सुख पालु के विचार शान्त हो जाते है।  इन सब की शांति पर ही दिल का द्वार है। दिल के द्वार में भक्ती प्रेम श्रद्धा और विश्वास की उत्पत्ति है। भगवान को भजते हैं तब भी सांस की किरया ठीक होती है। दिल की पवित्रता कर्तव्य के पथ पर ले आती है। कर्तव्य में अपने सुख का विचार गौण है। हम उंमग से भर जाते हैं हमारे अन्तर्मन मे सत्संग पैदा हो जाता है।

अ प्राणी तु अन्दर झांक कर देख,

अन्तःकरण में शान्ति का सरोवर हैं, आनंद की तरंगें है। प्राणी को करोड़ों की सम्पत्ति सुख के भौतिक साधन मे सुख दिखता है लेकिन वह वास्तविक अन्तर्मन की खुशी से बहुत दुर है। जंहा ओर की चाहना है वह प्रेम और त्याग का पथ नहीं है। दिल मे प्रभु प्राण नाथ विराजमान हैं दिल में राम धुन हर क्षण बजती है राम धुन में डुबकी लगा कर तो देख। हम इच्छाओं से ऊपर उठ जाते हैं। अन्तर ह्दय मे भरे भण्डार है यंहा भौतिक संसार नहीं है। प्राणी अपने आप में तृप्त है। अपने अन्तर्मन को पढते है।दिल का सच्चा व्यक्ति कोई भी परिस्थिति में घबराता नहीं है। हर परिस्थिति का सामना धर्य से करता है। समाज की सेवा भाव हमारे भीतर कुट कुट कर भर जाता है।जय श्री राम अनीता गर्ग



Today’s creature is sitting at the door of the mind. My mind does mine. There is a desire to get more in it. This mind is a well that never gets filled. Today’s man comes in the evening of life to gather many means of eating and drinking more happiness. No matter how much you feed the mind, the mind is never satisfied. Desires for more and more are awakened in the mind. The mind always wants something new. The mind searches for the way of its desire for happiness. Today man is busy in search of the means of happiness. That’s why he is deeply saddened. The first person used to work hard and feed his stomach, the heart was clean and clean. used to do other work too The creature is at the door of a calm and satisfied heart. To find the door of the heart, one has to work hard and do devotion to God. Today we don’t want to work hard. That is why no one is happy with the inner being, because if the inner door was not knocked, everything would have happened in the outer thing, then who would have remembered God. Hard work improves our breathing. Our lungs get oxygen, fat does not accumulate inside us. The strong nause within us purifies our thoughts. Purity of thought pacifies the hunger, jealousy and malice within us. At the door of the heart, the thoughts of Palu become more and more happy in the soul. On the peace of all of them is the door of the heart. Devotion is the origin of love, reverence and faith at the door of the heart. Even when we worship God, the breathing rate is fine. Purity of heart leads to the path of duty. The idea of ​​one’s own happiness is secondary in duty. We are filled with enthusiasm, satsang is born in our heart.

O creature, you look inside and see,

There is a lake of peace in the heart, there are waves of joy. The creature sees happiness in the material means of happiness worth crores, but he is far away from the real inner happiness. Where there is desire, it is not the path of love and sacrifice. Prabhu Pran Nath is seated in the heart, Ram Dhun plays every moment in the heart, take a dip in Ram Dhun and see. We rise above desires. The inner heart is a storehouse where there is no physical world. The creature is satisfied with itself. Read your conscience. A true heart person does not panic in any situation. Faces every situation with patience. The spirit of service to the society is filled within us.Jai Shri Ram Anita Garg

Share on whatsapp
Share on facebook
Share on twitter
Share on pinterest
Share on telegram
Share on email

One Response

  1. Howdy! This is kind of off topic but I need some advice from an established blog. Is it hard to set up your own blog? I’m not very techincal but I can figure things out pretty fast. I’m thinking about making my own but I’m not sure where to start. Do you have any tips or suggestions? With thanks

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *