सुनें अधिक और बोलें कम

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इससे आप सुखी रहेंगे। कहाँ कितना बोलें, इसका निर्णय बुद्धिमत्ता से करें

सुखी जीवन का एक ही मन्त्र चुप रहे।
संसार में प्रायः देखा जाता है, प्रत्येक व्यक्ति अपनी बुद्धि को दूसरों से अधिक मानता है। और दिन भर वह इस बात को सिद्ध करने में प्रयासशील भी रहता है। उसका उपाय उसे यही दिखता है कि जो भी व्यक्ति सामने मिले, उसको कुछ न कुछ बताते रहो, सिखाते रहो, सलाह देते रहो। इससे वह हमारी बुद्धि को अधिक मानेगा और इससे हमें सुख मिलेगा। इसी प्रयास में व्यक्ति सुबह से लेकर रात्रि तक व्यक्ति कुछ न कुछ बोलता ही रहता है।
परंतु इस प्रयास में वह इस बात को भी भूल जाता है, कि मुझे कब कहां कितना और कैसा बोलना चाहिए?
दिन में कभी आपके सामने आप से छोटा व्यक्ति होगा। कभी आपके बराबर की योग्यता का व्यक्ति होगा। कभी आपसे अधिक योग्यता वाला भी होगा। तो तीनों के साथ आप एक जैसी भाषा बोलें, एक जैसा वार्तालाप करें, यह अनुचित है।
सभ्यता का नियम यह है कि जो व्यक्ति किसी विषय में आपसे अधिक योग्यता रखता हो, तो उसके सामने कम से कम बोलें, और उसकी बात सुनें अधिक। जिससे कि आप उसकी योग्यता से लाभ उठा पाएँ। अपने से अधिक योग्यता वाले व्यक्ति को सुझाव देने का आपको अधिकार नहीं है। जैसे एक पुलिस के सिपाही को, डीएसपी साहब को, चोर पकड़ने के संबंध में सुझाव देने का अधिकार नहीं है। एक रोगी को चिकित्सा करने के संबंध में डॉक्टर साहब को सुझाव देने का अधिकार नहीं है। इसी प्रकार से एक संगीतकार को यह अधिकार नहीं है, कि वह गणितज्ञ को, गणित विषय में सुझाव दे।
जब सामने वाला व्यक्ति आपके बराबर की योग्यता का हो, तब दोनों व्यक्ति समान मात्रा में बातचीत कर सकते हैं। और जब सामने वाला व्यक्ति आपसे कम योग्यता वाला हो, तब भी आप उसे ऐसा न लगने दे कि मै ज्यादा जानकार हूँ। मोन रहने की आदत डाले। बुद्धिमान लोगों ने सभ्यता की यही परिभाषा बताई है।
ईश्वर ने भी हमें दो कान दिए हैं, और वाणी एक ही दी, है। ईश्वर का भी संकेत यही है कि मनुष्य को सुख पूर्वक जीने के लिए बहुत अधिक ज्ञान विज्ञान की आवश्यकता है। तो उसकी प्राप्ति के लिए वह सुने अधिक, और बोले कम। उत्तम विद्वानों की बात को ध्यानपूर्वक सुनकर अपना ज्ञान बढ़ाए, और उसे आचरण में लाकर फिर दूसरे छोटे लोगों को सिखाए।

  • स्वामी विवेकानंद परिव्राजक



This will make you happy. Where to say how much, decide it wisely.

The only mantra for a happy life is to remain silent. Often seen in the world, each person considers his intelligence more than others. And throughout the day he also tries to prove this point. The remedy he sees is that whoever he meets in front, keep telling him something or the other, keep teaching, keep giving advice. By this he will consider our intellect more and this will give us happiness. In this effort, from morning till night, the person keeps on speaking something or the other. But in this effort, he also forgets that, when, where, how much and how should I speak? Sometime during the day you will have a person younger than you in front of you. Sometimes there will be a person of equal ability to you. Sometimes you will be more capable than you. So with all three you speak the same language, have the same conversation, it is inappropriate. The law of civilization is that the person who is more capable than you in any subject, speak less in front of him, and listen more to him. So that you can take advantage of his ability. You don’t have the right to suggest someone who is more qualified than you. Like a police constable, DSP sahib, does not have the right to give suggestions regarding catching a thief. The doctor does not have the right to make suggestions regarding the treatment of a patient. Similarly, a musician does not have the right to give suggestions to a mathematician in the subject of mathematics. When the person in front of you is of equal ability, then both people can talk in equal amounts. And when the person in front is less qualified than you, even then you should not let him feel that I am more knowledgeable. Get used to being silent. This is the definition of civilization given by intelligent people. God has also given us two ears, and only one speech. This is also a sign of God that man needs a lot of knowledge and science to live happily. So to achieve that he listened more, and spoke less. By listening carefully to the words of the best scholars, increase your knowledge, and by applying it in practice, then teach it to other younger people. Swami Vivekananda Parivrajak

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