परोपकार मानव को महामानव बनाता है


प्रकृति मनुष्य को हर क्षण उपदेश देकर यह बताती है कि परोपकार से बढ़कर कोई दूसरा धर्म नहीं है। मनुष्य ने मानव चोला दूसरों के हित के लिए धारण किया है। यह गुण ही मनुष्य को मनुष्यता का पाठ पढ़ाता है। स्वार्थ मनुष्य को हमेशा हैवानियत की ओर ले जाता है। मानव जीवन का लक्ष्य परोपकार ही माना जाता है। परोपकार करने से परमार्थ मिलता है। कल्याण की भावना से किया गया कार्य पुण्य बन जाता है। वह हमें मानव से महामानव बनाता है, इसीलिए मनुष्य का कर्तव्य सदैव उसे याद रहना चाहिए। हमें केवल अपने ही बारे में नहीं सोचना चाहिए। अपने बारे में सोचने वाला व्यक्ति छोटा होता है। विशाल हृदय वाले के लिए तो समस्त पृथ्वी ही उसका परिवार होती है।

परोपकार द्वारा हमारी स्वार्थ भावना नष्ट होती है,और देव समान कहलाने लगते हैं। परोपकारी समाज में सर्वत्र सम्मान पाकर पूज्य बन जाते हैं,परोपकार मनुष्य के हृदय में विश्व बन्धुत्व की भावना विकसित करता है, जन कल्याण, प्राणिसेवा में निरत व्यक्ति परमादरणीय बन जाता है –

जो पराये काम आता,धन्य है जग मे वही।
द्रव्य ही को जोड़कर,कोई सुयश पाता नही।।

परोपकारियों को सज्जन एवं महापुरुष कहा जाता है , परोपकारी निस्वार्थ परोपकार करके अलौकिक आनन्द का अनुभव करते हैं, किसी भूखे को भोजन देते समय , प्यासे को पानी पिलाते समय ठण्ड से ठिठुरते को वस्त्र देते समय, रोगी की सेवा करते समय, मानव को जो अपार आनन्दानुभव होता है, वह वर्णनातीत है। उस समय वह स्व-पर से ऊपर उठकर ब्रह्मानन्द की प्राप्ति करता है,हमारी सांस्कृतिक परम्परा में यज्ञ परोपकार ही है , जिसके द्वारा “इदं न मम” कहकर अग्नि में डाली गयी आहुति लाखों लोगों का कल्याण करती हुई विस्तृत हो जाती है, परोपकार घृणा, द्वेष स्वार्थ आदि का नाशक है,सभी प्राणियों में ईश्वर का अंश मानकर महापुरुष जन कल्याण में लग जाते है-

सियाराम मय सब जग जानी

भावना द्वारा राज रन्तिदेव अपना सर्वस्व दान करके अड़तालीस दिन भूखे रहे,उनचासवें दिन भोजन करते समय चाण्डाल के आ जाने पर भी उसका आतिथ्य सत्कार करते हुए भोजन देकर स्वयं भूखे रहे,व्यास जी ने भी कहा है –

अष्टादश पुराणेषु, व्यासस्य वचनद्वयं।
परोपकाराय पुण्याय, पायाय परपीडनम्।।



Nature preaches to man every moment and tells him that there is no other religion greater than charity. Man has donned the human garb for the benefit of others. It is this quality that teaches man the lesson of humanity. Selfishness always leads man towards cruelty. The goal of human life is considered to be charity. By doing charity one gets charity. Work done in the spirit of welfare becomes virtuous. He transforms us from humans to great humans, that is why man’s duty should always be remembered by him. We should not think only about ourselves. A person who thinks about himself is small. For a person with a big heart, the entire earth is his family.

Through charity, our selfishness is destroyed and we become like gods. Philanthropists get respected everywhere in the society and become revered, philanthropy develops the feeling of universal brotherhood in the heart of a person, a person engaged in public welfare and service to animals becomes a saint –

Blessed is he in this world who is useful to others. No one can achieve success by adding matter.

Philanthropists are called gentlemen and great men. Philanthropists experience supernatural joy by doing selfless charity, while giving food to a hungry person, while giving water to a thirsty person, while giving clothes to a shivering person, while serving a patient, while giving immense blessings to human beings. The joy one experiences is indescribable. At that time, he rises above the self and attains Brahmananda. In our cultural tradition, Yagya is philanthropy, through which the offering thrown into the fire by saying “Idam Na Mam” expands, benefiting millions of people. philanthropy is not hatred. Hatred is the destroyer of selfishness etc., considering all living beings as part of God, great men engage in public welfare.

Siyaram may all the world know Through Bhavna, King Rantidev donated everything and remained hungry for forty-eight days. On the forty-ninth day, while eating, even when Chandaal arrived, he showed hospitality to him and gave him food. Vyas ji has also said –

In the eighteen Puranas, two words of Vyasa. For the benefit of others, for the sake of merit, for the sake of drinking, for the oppression of others.

Share on whatsapp
Share on facebook
Share on twitter
Share on pinterest
Share on telegram
Share on email

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *