बाहर गये हुए लोग, भले नौकरी पर गये हों, सभी पुरुष तीज तक घर लौट आते हैं। फिर आज तो उनका जन्मदिन है. कैसे न आयेंगे भला? पति के आने पर स्त्रियाँ कितना तो शृंगार करती हैं! रात हो भले, पर सिर धोयेंगी ही। खवासिनें अगरु की धूप दे-देकर उनके केश सुखाती हैं। कोई मेंहदी लगाती है, कोई सुगंध लगाती है, चोटी-तिलक-भूषण-वस्त्र आदि को देखकर ऐसा लगता है जैसे कोई त्यौहार हो। तब…. तब मैं भी क्यों न पहलेसे ही शृंगार धारण कर लूँ? कौन जाने, कब पधार जायें वे!’
अब मीरा उमंग में बोल पड़ी—’ए मंगला! जा, मेरे लिये उबटन सुगंध, द्रव्य, अगरु, धूप सब तैयार करके ले आ तो। और हाँ, बलदेव दादाकी बहू (खवासिन) को बुला ला मुझे स्नान कराने के लिये। चम्पा! तू भाबू से मेरे सब आभूषण और सबसे सुन्दर पोशाक ले आ। ठहर; वह सोने के डंकों के काम की पोशाक है न नीले रंगकी, वही ले आना।’
सभी को प्रसन्नता हुई कि मीरा आज शृंगार कर रही है। बाबा बिहारीदासजी की इच्छा थी कि आज रात मीरा चारभुजानाथ के यहाँ होनेवाले भजन-कीर्तन में उनका साथ दे। बाबा की इच्छा जानकर मीरा बड़ी असमंजसमें पड़ी। थोड़े सोच विचार के पश्चात् वह स्वयं बाबा बिहारीदासजी के पास गयी- ‘बाबा! श्रीकृष्ण जन्म-समयके पूर्व, रात्रिके प्रथम प्रहर में मैं चारभुजानाथके मन्दिरमें आपकी आज्ञाका पालन करूँगी, फिर यदि आप आज्ञा दें तो मैं जन्मके समय श्यामकुँजमें आ जाऊँ?’
‘अवश्य बेटी! उस समय तो तुम्हें श्यामकुँजमें ही होना चाहिये। मेरी बहुत इच्छा थी कि एक बार मन्दिर में तुम मेरे साथ गाओ। बड़ी होनेपर तो तुम महलों में बंद हो जाओगी। कौन जाने, ऐसा योग फिर कब मिले!’ नखसे शिख तक शृंगार किये मीरा चारभुजानाथ के मन्दिर में राव दूदाजी और बाबा बिहारीदासजी के बीच तानपूरा लेकर बैठी हुई पदगायन में बाबा का साथ दे रही है।मीरा के रूप-सौन्दर्य के अतुलनीय भण्डार के द्वार आज शृंगार ने उद्घाटित कर दिये थे। नव बालवधू के रूप में उसे देखकर सभी राजपुरुषों के मन में यह विचार कुमारित होने लगा कि मीरा किसी छोटे-मोटे घर-वर के योग्य नहीं है। सर्वस्व देकर भी किसी बड़े घर में विवाह करके उसका भविष्य उज्ज्वल बनाया जा सके तो हमारे घर मे उसका जन्म लेना सार्थक हो। वीरमदेवजी आज उसके रूपको देखकर चकित रह गये। उन्होंने मन-ही-मन दृढ़ निश्चय किया कि हिन्दुआ सूर्य की पुत्रवधू-पद ही मीरा के लिये उचित स्थान है।
‘बेटी! अब तुम अपने संगीतके द्वारा सेवा करो।’-बाबा बिहारीदास जी ने आज्ञा दी।
मीरा ने उठकर गुरुचरणों में प्रणाम किया। फिर चारभुजानाथ और दूदाजी आदि बड़ो को प्रणाम करके यथास्थान बैठकर तानपूरा उठाया। उसकी सुकोमल उँगलियाँ कुछ क्षण तारों पर फिसलती रहीं, फिर आलाप लेकर उसने गाना प्रारंभ किया-
बसो मेरे नैनन में नंदलाल।
मोहिनी मूरत साँवरी सूरत, नैना बने विशाल।
अधर सुधारस मुरली राजत उर बैजंती माल।
छुद्र घंटिका कटि तट शोभित नूपुर सबद रसाल।
मीरा प्रभु संतन सुखदायी, भगत बछल गोपाल।
बाबा बिहारीदासजी सहित दूदाजी चकित एवं प्रसन्न हो उठे। यह पद मीरा का अपना बनाया हुआ था। इस पदको सुनकर दोनों के मुखसे एक ही साथ आनन्दातिरेक में अति गद्गद स्वर निकला- ‘बेटी!’
मीरा ने विनय-संकोचवश अपने नेत्र झुका लिये। प्रणाम करने के लिये उठती हुई मीरा को बाबा बिहारीदासजी ने हाथ बढ़ाकर रोक दिया तो उसने बैठे-बैठे ही हाथ जोड़कर सिर झुकाया।
‘एक और’- बाबा बिहारीदासजी ने उमंगमें भरकर कहा। मीराने आँखें बंद कर ली। अँगूठियों से विभूषित उँगलियाँ तारों पर तैर रही थीं-
सुण लीजो बिनती मोरी मैं सरण गही प्रभु तोरी।
तुम तो पतित अनेक उधारे भवसागर से तारे।
मैं सबका तो नाम न जाणूं कोई कोई नाम उचारे।
अंबरीष, सुदामा, नामा तुम पहुँचाये निज धामा।
ध्रुव जो पाँच बरस के बालक तुम दरस दिये घनश्यामा।
धना भगत का खेत जमाया कबिरा का बैल चराया।
सबरी का झूठा फल खाया तुम काज किये मनभाया।
सदना और सेना नाई को तुम लीन्हा अपनाई।
करमा की खिचड़ी खाई तुम गणिका पार लगाई।
मीरा प्रभु तुम्हरे रंग राती या जानत सब दुनियाई।
दूदा जी नेत्र मूँदकर एकाग्र होकर श्रवण कर रहे थे। भजन पूरा होने पर उन्होंने आँखें खोली। हर्ष-प्रशंसा भरी दृष्टि से मीरा की ओर देखा- ‘आज मेरा जीवन धन्य हो गया बेटा! धन्य कर दिया तूने इस मेड़तिया वंश को और इन अपने पिता-पितृव्योंको।’ उन्होंने मीरा के सिर पर हाथ रखते हुए सामने सौम्य भाव-वेशमें बैठे अपने दुर्धर्ष वीरपुत्रों की ओर संकेत करके अश्रु विगलित स्वर में कहा- ‘इनकी प्रचण्ड वीरता और देशप्रेम को कदाचित् लोग भूल जायें, पर तेरी भक्ति और तेरा नाम अमर रहेगा बेटा…. अमर रहेगा।’ उनकी आँखें छलक पड़ीं।
‘यह आप क्या फरमाते हैं बाबोसा! मैं तो आपकी छोरू (बच्ची) हूँ। जो कुछ है, वह तो सब आपका ही है और रहा संगीत, यह बाबा का प्रसाद है।’ मीराने बाबा बिहारीदासकी ओर देखकर हाथ जोड़े।
थोड़ा रुककर वह बोली- ‘अब मैं जाऊँ बाबा!’
‘जाओ बेटी! श्रीकिशोरीजी तुम्हारा मनोरथ सफल करें!’–उसके प्रणाम करने पर भरे कंठसे बाबा बिहारीदास ने आशीर्वाद दिया।सभी को प्रणाम कर वह अपनी सखियों-दासियों के साथ श्यामकुँज चल दी। श्यामकुँज में शृंगार और भोग की सभी सामग्री पहले से ही प्रस्तुत थी। उसने अपने गिरधर गोपाल का आकर्षक शृंगार किया। यद्यपि वह बाबा बिहारीदासजी का आशीर्वाद पाकर बहुत प्रसन्न थी, फिर भी रह-रह करके मन आशंकित हो उठता था- ‘कौन जाने, प्रभु इस दासी को भूल तो न गये होंगे? किन्तु नहीं, वे विश्वम्भर हैं, उनको सबकी खबर है, पहचान है। आज अवश्य पधारेंगे अपनी इस चरणाश्रिता को अपनाने। इसकी बाँह पकड़कर भवसागरमें डूबती हुई को ऊपर उठाकर….।’
आगे की कल्पना उसकी आनन्दानुभूति में खो जाती। कोई सखी-दासी सचेत करती और उसके हाथ चलने लगते। उसकी सहयोगिनियाँ श्यामकुँज को बंदनवार, फूल-मालाओं से और बहुमूल्य पर्दो से सजा रही थीं। उन्हें श्रीकृष्ण जन्म के पूर्वक्षणतक का सारा कार्य समझा करके उसने तानपूरा उठाया-
आय मिलो मोहिं प्रीतम प्यारे।
हमको छाँड़ भये क्यूँ न्यारे।
बहुत दिनन सो बाट निहारूँ।
तेरे ऊपर तन मन वारूँ।
तुम दरसन की मो मन माही
आय मिलो किरपा कर साईं।
क्रमशः
People who have gone out, even if they have gone to work, all men return home by Teej. Then today is his birthday. How can you not come? Women adorn themselves so much on the arrival of their husbands! It may be night, but she will wash her head. The Khavasins dry their hair by giving incense of Agaru. Some apply henna, some apply fragrance, looking at the braids-tilak-jewellery-clothes etc., it seems as if there is a festival. Then…. Then why shouldn’t I also wear makeup beforehand? Who knows when they will come!’
Now Meera spoke in excitement – ‘O Mangala! Go, prepare the boiling fragrance, liquid, agaru, incense and bring everything for me. And yes, call Baldev Dada’s daughter-in-law (Khwasin) to give me a bath. Champa! You bring all my jewelery and the most beautiful dress from Bhabu. stay; It is a dress made of gold, not blue, bring it.’
Everyone was happy that Meera is doing her makeup today. Baba Biharidasji wanted Meera to accompany him in the bhajan-kirtan to be held at Charbhujanath’s place tonight. Meera was very confused after knowing Baba’s wish. After some thought, she herself went to Baba Biharidasji – ‘ Baba! Before the birth of Shri Krishna, in the first half of the night, I will obey you in the temple of Charbhujanath, then if you allow me to come to Shyamkunj at the time of birth?’
‘Of course daughter! At that time you should be in Shyamkunj only. I really wanted you to sing with me once in the temple. When you grow up, you will be locked in palaces. Who knows, when will we get such a yoga again!’ Dressed up to her fingernails, Meera is sitting between Rao Dudaji and Baba Bihari Dasji with a tanpura in the temple of Charbhujanath, accompanying Baba in singing. Seeing her as a new child bride, all the royal men started thinking that Meera is not worthy of any small household. Even after giving everything, if his future can be made bright by marrying him in a big house, then it should be meaningful for him to be born in our house. Veeramdevji was amazed to see his form today. He firmly decided in his heart that the position of the daughter-in-law of Hindu Surya is the right place for Meera.
‘Daughter! Now you serve through your music.’- Baba Biharidas ji ordered. Meera got up and bowed at the feet of the Guru. Then after saluting the elders like Charbhujanath and Dudaji etc., sitting at the same place picked up the tanpura. His soft fingers kept sliding on the strings for a few moments, then he started singing with an alap-
Stay in my eyes Lord Krishna Mohini idol Sawari Surat, Naina became Vishal. Adhar Sudharas Murli Rajat ur Baijanti Mal. Chudra Ghantika Kati beach Shobhit Nupur Sabad Rasal. Meera Prabhu Santan Sukhdayi, Bhagat Bachal Gopal.
Dudaji along with Baba Bihari Dasji were surprised and happy. This post was created by Meera herself. Hearing this verse, both of them simultaneously uttered a very happy voice in joy – ‘Daughter!’
Meera bowed her eyes modestly. Baba Bihari Dasji stopped Meera by extending her hand while getting up to bow down, then she bowed her head with folded hands while sitting.
‘One more’ – Baba Biharidasji said with enthusiasm. Mira closed her eyes. Ringed fingers floating on the stars
Listen to my request, I have taken refuge, Lord Tori. You are impure, you have borrowed many stars from the ocean of life. I don’t know everyone’s name; Ambareesh, Sudama, Nama you take me to your own place. Dhruv, the five-year-old boy, you gave Daras Ghanshyama. Dhana Bhagat’s field was planted and Kabira’s bull grazed. You ate the false fruit of Sabri, you did your favorite work. You adopted Sadna and Sena barber. You ate Karma’s khichdi and crossed the courtesan. Meera Prabhu, your color is night or the world knows everything.
Duda ji was listening with concentration by closing his eyes. He opened his eyes on completion of the hymn. Looked at Meera with a look full of joy and appreciation – ‘Today my life has become blessed, son! You have blessed this Medatiya dynasty and your ancestors.’ Keeping his hand on Meera’s head, pointing to his hard-fought heroic sons sitting in front of Meera in a gentle manner, he said in a tearful voice – ‘Perhaps people may forget their fierce bravery and patriotism, but your devotion and your name will remain immortal son…. Will remain immortal. His eyes sparkled.
‘What are you saying Babosa! I am your daughter. Whatever is there is all yours and the music is Baba’s prasad.’ Meera looked at Baba Bihari Das and folded his hands. After stopping for a while, she said – ‘Now I can go Baba!’ ‘Go daughter! May Shri Kishoriji make your wish come true!’- Baba Biharidas blessed her with a voice filled with salutations. All the ingredients of Shringar and Bhog were already presented in Shyamkunj. He attractively adorned his Girdhar Gopal. Although she was very happy after getting the blessings of Baba Bihari Dasji, still she used to get apprehensive every now and then – ‘Who knows, the Lord might not have forgotten this maid? But no, He is Vishwambhar, He knows everyone’s news and identity. Will definitely come today to adopt this feet of yours. By holding her arm and lifting up the drowning in the Bhavsagar…..’ Further imagination would have been lost in his blissful feeling. Some friend-maid used to alert and his hands started moving. Her companions were decorating Shyamkunj with garlands, garlands and precious curtains. Explaining to him all the work till the moment before the birth of Shri Krishna, he picked up the tanpura.
Come meet Mohin Pritam dear. Why should we be left alone? Let me sleep for many days and watch. I will attack you with my body and mind. Tum Darshan Ki Mo Man Mahi Please come and meet Sai. respectively