*कल दोपहर मैं बैंक में गया था! वहाँ एक बुजुर्ग भी अपने काम से आये थे! वहाँ वह कुछ ढूंढ रहे थे! मुझे लगा शायद उन्हें पेन चाहिये! इसलिये उनसे पुछा तो, वह बोले *”बिमारी के कारण मेरे हाथ कांप रहे हैं और मुझे पैसे निकालने की स्लीप भरनी है उसके लिये मैं देख रहा हूँ कि कोई मदद कर दे!”*
मैं बोला “आपको कोई हर्ज न हो तो मैं आपकी स्लीप भर देता हूँ!”
उन्होंने मुझे स्लीप भरने की अनुमति दे दी! मैंने उनसे पुछकर स्लीप भर दी!
रकम निकाल कर उन्होंने मुझसे पैसे गिनने को कहा मैंने पैसे भी गिन दिये!
हम दोनों एक साथ ही बैंक से बाहर आये तो, बोले “साॅरी तुम्हें थोडा कष्ट तो होगा परन्तु मुझे रिक्षा करवा दो इस भरी दोपहरी में रिक्षा मिलना बडा़ कष्टकारी होता है!”
मैं बोला “मुझे भी उसी तरफ जाना है, मैं तुम्हें कार से घर छोड देता हूँ!”
वह तैयार हो गये। हम उनके घर पहूँचे! ’60’ × 100′ के प्लाट पर बना हुआ घर क्या बंगला कह सकते हो! घर में उनकी वृद्ध पत्नी थीं! वह थोडी डर गई कि इनको कुछ हो तो नहीं गया जिससे उन्हें छोडने एक अपरिचित व्यक्ति घर तक आया हैं! फिर उन्होंने पत्नी के चेहरे पर आये भावों को पढकर कहा कि “चिंता की कोई बात नहीं यह मुझे छोडने आये हैं!”
फिर बातचीत में वह बोले “इस भगवान के घर में हम दोनों पति-पत्नी ही रहते हैं! हमारे बच्चे तो विदेश में रहते हैं।”
मैंने जब उन्हें भगवान के घर के बारे में पुछा तो उन्होंने बताया कि “हमारे परिवार में भगवान का घर कहने की पुरानी परंपरा है! इसके पीछे की भावना हैं कि यह घर भगवान का है और हम उस घर में रहते हैं! जबकि लोग कहते हैं कि “घर हमारा है और भगवान हमारे घर” में रहते है!“
मैंने विचार किया कि दोनों कथनों में कितना अंतर है! तदुपरांत वह बोले…
“भगवान का घर” बोला तो अपने से कोई “नकारात्मक कार्य नहीं होते और हमेशा सदविचारों से ओत प्रेत रहते हैं।”
बाद में मजाकिया लहजे में बोले …
“लोग मृत्यु उपरान्त भगवान के घर जाते हैं परन्तु हम तो जीते जी ही भगवान के घर का आनंद ले रहे हैं!”
यह वाक्य ही जैसे भगवान ने दिया कोई प्रसाद ही है!
भगवान ने ही मुझे उनको घर छोडने की प्रेरणा दी!
“घर भगवान का और हम उनके घर में रहते हैं”
यह वाक्य बहुत दिनों तक मेरे दिमाग में घुमता रहा, सही में कितने अलग विचार थे!
हमको उपरोक्त प्रसंग से प्रेरित होकर अगर हम इस पर अमल करेंगे तो हमारे और आनेवाली पीढियों के विचार भी वैसे ही हौंगे!
अच्छे कार्य का प्रारंभ जबसे भी करो वही नई सुबह है!
*I went to the bank yesterday afternoon! There an elder also came from his work! There he was looking for something! I thought maybe he needed a pen! That’s why when I asked him, he said * “My hands are trembling due to illness and I have to sleep to withdraw money, for that I am looking for someone to help!” I said, “If you don’t mind, I’ll fill your sleep!” He allowed me to sleep! I asked him to fill my sleep! After taking out the money, he asked me to count the money, I counted the money too! When both of us came out of the bank together, he said, “Sorry, you will have a little trouble, but get me a rickshaw, it is very painful to get a rickshaw in this full afternoon!” I said “I have to go that way too, I’ll drop you home by car!” He got ready. We went to his house! What a bungalow can you call a house built on a plot of ’60’ × 100′! He had an old wife in the house! She got a little scared that if something happened to them, an unfamiliar person has come to the house to leave them! Then he read the expressions on his wife’s face and said that “There is nothing to worry, they have come to leave me!” Then in the conversation he said, “In this God’s house, we both live as husband and wife! Our children live abroad.” When I asked him about God’s house, he told that “Our family has an old tradition of saying God’s house! The feeling behind this is that this house belongs to God and we live in that house! While people say That “home is ours and God lives in our house”!” I pondered how much of a difference there is between the two statements! After that he said… If you say “House of God” then you do not have any “negative actions and are always haunted by good thoughts.” Later said in a funny tone… “People go to God’s house after death, but we are enjoying God’s house while we are alive!” This sentence is just like some prasad given by God! It was God who inspired me to leave his home! “House of God and we live in His house” This sentence lingered in my mind for a long time, how many different thoughts indeed! Inspired by the above context, if we implement it, then our thoughts and that of future generations will also be the same! Whenever you start a good work, it is a new morning!