प्रत्येक मनुष्य को अपने जीवन में श्रेष्ठत्व की प्राप्ति के लिए प्रतीक्षा, परीक्षा और समीक्षा इन तीन अवस्थाओं से गुजरना पड़ता है। जीव भजन करे, साधन करे, सत्कर्म करे, पुरुषार्थ करे, कभी ना कभी फल जरूर मिलेगा। प्रभु कृपा जरूर करेंगे मगर उसको प्रतीक्षा करनी पड़ेगी। दूसरी बात है परीक्षा- संसार की परीक्षा करते रहना। जितना जल्दी जान लोगे इससे मुक्त हो जाओगे। जानना ही मुक्त होने का मार्ग है। जगत में सर्वत्र बहुत विषाद है। प्रभु की और संत की शरणागति ही विषाद से प्रसाद की ओर ले जाती है। संसार की परीक्षा करते-करते समय - समय पर स्वयं का भी परीक्षण एवं निरीक्षण करते रहें कि कहीं मैं अपने मार्ग से भटक तो नहीं रहा। तीसरी बात है समीक्षा- अपनी निरंतर समीक्षा करते रहो। स्वयं का सुधार ही तुम्हारा उद्धार कर सकता है। भौतिक समृद्धि और आध्यात्मिक समृद्धि तुम्हें स्वयं के द्वारा ही प्राप्त होगी। एक ज्ञानी और महान व्यक्ति आत्मचिंतन करते- करते शिखर पर पहुँच जाता है। वहीं अज्ञानी स्वयं की बजाय दूसरों के गुण-दोष का चिंतन ही करते रहने के कारण अपने जीवन में कुछ श्रेष्ठ पाने से भी वंचित रह जाता है। जय जय श्री राधे
Every human being has to go through these three stages of waiting, testing and review to achieve excellence in his life. The soul should do bhajans, do means, do good deeds, make effort, and at some point of time, you will definitely get results. The Lord will surely please but he will have to wait. The second thing is examination – keep testing the world. As soon as you know you will be free from it. Knowing is the only way to be free. There is a lot of nostalgia everywhere in the world. It is the refuge of the Lord and the saint that leads from nostalgia to prasad. While examining the world, keep examining and inspecting yourself from time to time to see if I have deviated from my path. The third thing is review – keep reviewing yourself continuously. Only self-improvement can save you. Material prosperity and spiritual prosperity will come to you by yourself. A wise and great person reaches the summit by doing self-reflection. On the other hand, the ignorant, instead of himself, keep thinking of the merits and demerits of others, due to which he is deprived of getting something best in his life. Jai Jai Shree Radhe