हमारी जिह्वा में सत्यता हो, चेहरे में प्रसन्नता हो और हृदय में पवित्रता हो तो इससे बढ़कर सुखद जीवन का और कोई अन्य सूत्र नहीं हो सकता। निश्चित समझिए असत्य हमें भीतर से कमजोर बना देता है। जो लोग असत्य भाषित करते हैं उनका आत्मबल बड़ा ही कमजोर होता है। जो लोग अपनी जिम्मेदारियों से बचना चाहते हैं वही सबसे अधिक असत्य का भाषण करते हैं।
क्या हमें सत्य का आश्रय लेकर एक जिम्मेदार व्यक्ति बनने का सतत प्रयास करना चाहिए ? उदासी में किये गये प्रत्येक कर्म में पूर्णता का अभाव पाया जाता है। हमें प्रयास करना चाहिए कि प्रत्येक कर्म को प्रसन्नता के साथ पूर्णत्व पूर्णरूपेण करें । जीवन दोनों विकल्प
१• निराशा उदासी
२• उमंग सत्संग प्रसन्नता
की रूपरेखा VISION
प्रस्तुत करता है।
अब यह हमारे अंतःमन के ऊपर निर्भर करता है कि हमें क्या पसंद है।
हम क्या
चाहतें बुनतें
चुनतें हैं…? निष्कपट और निर्बैर भाव ही पवित्रता हृदय मन वचन कर्म की शक्ती है। जीवन में अगर कोई बहुत बड़ी उपलब्धि है तो वह पवित्र हृदय-मन का आगमन है।
ह्र = To Suck, to conceive, to aspire
दय= देना फैलाना फैकना प्रेरित उमंग उत्साहवर्धक उदय
पवित्र हृदय से किये गये कार्य भी पवित्र पावन मनभावन ही होते हैं। सर्व जन हिताय सर्व जन सुखाय। जनता-जनार्दन की सेवा Serotonin OXYTOCIN Dopamine हमारे जिस्म की हर किस्म निराश हताश उदास मन का नियोग करता कर्ता है। प्रभु भी कहते हैं:
“निर्मल मन जन सो मोहि पावा।
मोहि कपट छल छिद्र ना भावा।” 🌹
अन्नपूर्णे सदा पूर्णे शंकरप्राणवल्लभे ।ज्ञानवैराग्यसिद्ध्य भिक्षां देहि च पार्वति।।🌹
🌹🙏ॐ महालक्ष्मी नमो नमः🙏🌹
🌹🙏जय माँ संतोषी देवी नमो नमः🙏🌹
🌹🙏ॐ श्री दुर्गायै नमः🙏🌹
🌹🙏श्री कृष्ण: शरणम ममः🙏🌹
🌹🙏कृष्णम वन्दे जगद गुरुम🙏🌹
🌹🙏वासुदेव: सर्वम इति🙏🌹
🌹🙏कृष्ण एव गतिर्र ममः🙏🌹
🌹🙏ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः🙏🌹
जय श्री राधेकृष्णा🌹🙏
राह दे कृष्णा…🌹🙏