जिनमें से पाँच प्रयाग तो गढ़वाल, उत्तराखण्ड में ही हैं !
प्रयाग जब यह शब्द किसी आम व्यक्ति के जेहन में आता है, तो बरबस ही ध्यान उत्तर प्रदेश के शहर इलाहाबाद की तरफ चला जाता है। असल में इलाहाबाद का मूल नाम प्रयाग ही है और उसका यह नाम इसलिए पड़ा, क्योंकि वहाँ पर गंगा और यमुना का संगम होता है। यह भी कहा जाता है कि एक तीसरी नदी सरस्वती भी वहाँ पर मिलती है, लेकिन वह अदृश्य है। भारत में दो नदियों के संगम पर कई तीर्थस्थल हैं और इनके नाम से प्रयाग जुड़ा हुआ है। भारत में इस तरह के 14 प्रयाग हैं और इनमें पाँच प्रयाग उत्तराखंड के गढ़वाल क्षेत्र में हैं। देवप्रयाग, रूद्रप्रयाग, कर्णप्रयाग, नंदप्रयाग और विष्णु प्रयाग। इन पाँचों तीर्थस्थलों पर विभिन्न नदियाँ अलकनंदा नदी से मिलती हैं, जिसका उद्गम स्थल सतोपंथ और भगीरथ खड़क ग्लेशियर को माना जाता है। पाँचों प्रयागों का उत्तराखंड में खास महत्व है और लोग किसी पर्व या आम दिनों में भी इन स्थलों पर स्नान करने के लिये आते हैं। तो तैयार हैं आप हमारे साथ उत्तराखंड के इन पंचप्रयाग में डुबकी लगाने के लिये …
1 देवप्रयाग : अलकनंदा और भागीरथी का संगम स्थल
उत्तराखंड के पाँचों प्रयागों में सबसे अधिक महत्वपूर्ण माना जाता है देवप्रयाग। यह वह स्थल है, जहाँ पर शांत, सौम्य अलकनंदा से रौद्र रूप और कोलाहल के साथ बहने वाली भागीरथी का मिलन होता है। यहीं पर से ये दोनों नदियाँ मिलकर ‘गंगा’ बन जाती हैं, जो आगे अलकनंदा का सौम्य स्वरूप ही ग्रहण करती है। गढ़वाल में भागीरथी के रौद्र रूप को देखकर उसे ‘सास’ और अलकनंदा के शांत स्वरूप के कारण उसे ‘बहू’ कहा जाता है। इससे यह सीख देने की भी कोशिश की गयी है, कि यदि बहू सर्वगुण संपन्न हो, तो वह अपनी ‘सास’ से भी माँ जैसा वात्सल्य पा सकती है, जैसा कि अलकनंदा से मिलने के बाद भागीरथी अपना क्रोध त्याग देती है। यह भी कहा जाता है कि जब भगीरथ के प्रयासों से गंगा धरती पर आने के लिये सहमत हुई, तो सबसे पहले वह देवप्रयाग में ही प्रकट हुई थी और तब इस ऐतिहासिक घटना का गवाह बनने के लिये 33 कोटि देवी-देवता भी यहाँ पर पहुँचे थे। बद्रीनाथ से आगे माणा गांव के पास अलकनंदा में विलुप्त होने वाली सरस्वती नदी के बारे में कहा जाता है कि वह देवप्रयाग के रघुनाथ मंदिर में भगवान रघुनाथ के पाँव से फिर अवतरित होती है।
पाँचों प्रयाग भगवान बद्रीनाथ के दर्शन के मार्ग में पड़ते हैं और इनमें पहला देवप्रयाग है। रामायण, नारद पुराण और स्कंदपुराण आदि में भी देवप्रयाग का वर्णन मिलता है, जिसका नाम एक मुनि देवशर्मा के नाम पर रखा गया है। पौराणिक कथाओं के अनुसार मुनि देवशर्मा ने इसी स्थान पर भगवान विष्णु की तपस्या की थी। उनके कठिन तप से प्रसन्न होकर उनसे कहा था, कि इस स्थल की ख्याति तीनों लोकों में फैलेगी और यह देवप्रयाग के नाम से जाना जाएगा।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार भगवान राम जब लंका पर विजय प्राप्त करके लौटे, तो वे रावण वध के ब्रह्महत्या के पाप से मुक्त होने के लिये लक्ष्मण और सीता सहित यहाँ पर तपस्या करने के लिये आये थे। राम के पिता राजा दशरथ ने भी यहाँ पर तपस्या की थी। अलकनंदा और भागीरथी के संगम स्थल के अलावा देवप्रयाग में तीर्थयात्रियों के लिये कई अन्य आकर्षण भी हैं। इनमें रघुनाथजी का मंदिर प्रमुख है। बड़ी शिला पर स्थित इस मंदिर के बारे में कहा जाता है, कि इसका निर्माण दस हजार साल पहले किया गया था। यह मंदिर चार अन्य छोटे मंदिरों अन्नपूर्णा देवी, नृसिंह, हनुमान और गरूड़ महादेव से घिरा है। रघुनाथ मंदिर में भगवान राम की मूर्ति रखी गयी है, जिसके बारे में कहा जाता है कि यह लगभग 1250 वर्ष पूर्व यहाँ स्थापित की गयी थी। यह मंदिर द्रविड़ शैली में तैयार किया गया है। रामनवमी, बसंत पंचमी और बैशाखी आदि पर्वों पर यहाँ पर विशेष पूजा अर्चना होती है। इसके अलावा डांडा नागराज मंदिर और चंद्रबदनी मंदिर भी यहाँ पर स्थित हैं। देवप्रयाग में पितरों का श्राद्ध भी किया जाता है। यहाँ भागीरथी नदी पर वशिष्ठ कुंड और अलकनंदा के किनारे पर ब्रह्मकुंड है। यहाँ पर एक स्थान बैतालशिला भी है, जिसके बारे में कहा जाता है कि वहाँ पर स्नान करने से कोढ़ रोग से मुक्ति मिल जाती है।
कैसे जाएँ देवप्रयाग ?
देवप्रयाग दिल्ली और बद्रीनाथ राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 58 पर स्थित है। यह दिल्ली से 295 किमी और ऋषिकेश से लगभग 73 किमी दूर है। ऋषिकेश से देवप्रयाग पहुँचने में ढाई से तीन घंटे का समय लग जाता है। ऋषिकेश से बस या टैक्सी लेकर देवप्रयाग तक पहुँचा जा सकता है। देवप्रयाग में बहुत कम होटल हैं और यहां पार्किंग की भी बहुत अच्छी व्यवस्था नहीं है। इसलिए तीर्थयात्री देवप्रयाग में स्नान करने के बाद श्रीनगर की तरफ आगे बढ़ जाते हैं या फिर वापस ऋषिकेश आ जाते हैं। यहाँ मुख्य सड़क कस्बे के ऊपर से होकर जाती है, जहाँ से सँकरे रास्ते से होकर संगम स्थल पर जाया जा सकता है। यहाँ पर नदी पार करने के लिये एक छोटा सा पुल भी है।
2…. रुद्रप्रयाग : जहाँ भगवान शिव ने बजायी थी वीणा
बद्रीनाथ के चरणों से होकर आने वाली अलकनंदा और केदारनाथ के दर्शनों से अभिभूत मंदाकिनी का संगम स्थल है रुद्रप्रयाग। यहां दोनों नदियों का मिलन बेहद मनमोहक दृश्य पैदा करता है। इस छोटे से शहर को प्राकृतिक और धार्मिक दोनों महत्व के लिये जाना जाता है। रुद्र भगवान शिव का एक नाम है और उनके इस नाम पर ही रुद्रप्रयाग को अपना यह नाम मिला। इसके पीछे भी एक कहानी है।
कहा जाता है कि नारद को अपने वीणा वादन पर बहुत घमंड हो गया था। इससे देवता चिंतित थे। उन्होंने भगवान कृष्ण से विनती की वे नारद का घमंड चकनाचूर करे। भगवान कृष्ण ने सरल उपाय अपनाया। वे नारद के पास गये और उनसे कहा कि भगवान शिव और पार्वती उनके वीणा वादन से बेहद प्रभावित हैं। नारद फूल कर कुप्पा हो गये और चल पड़े हिमालय की तरफ भगवान शिव को अपना वीणा वादन सुनाने। रास्ते में जब वह एक स्थान पर रूके, तो वहाँ उन्हें कई युवतियाँ मिली जो किसी कारणवश कुरूप हो गयी थीं। नारद ने जब उनसे इसका कारण पूछा तो उन्होंने जवाब दिया कि नारद जब अपनी वीणा की तान छेड़ते हैं, तो उसका उन दुष्प्रभाव पड़ता है, जिसके कारण वे कुरूप हो गयीं। मतलब साफ था कि नारद को वीणा बजानी नहीं आती। नारद यह सुनकर हताश हो गये। उनका घमंड चूर-चूर हो गया और उन्होंने वहीं पर एक चट्टान या शिला पर बैठकर भगवान शिव की तपस्या शुरू कर दी। भगवान शिव ने तब रुद्र रूप में आकर नारद को दर्शन दिये। वह वीणा वादन करते हुए प्रकट हुए और फिर नारद को वीणा वादन की शिक्षा भी दी। कहते हैं कि तभी से इस जगह को रुद्रप्रयाग कहा जाने लगा।
भगवान शिव के रुद्र रूप को समर्पित एक मंदिर भी यहाँ अलकनंदा और मंदाकिनी के संगम पर स्थित है, जिसे रुद्रनाथ का मंदिर कहा जाता है। संगम पर यहाँ हर शाम छह बजे आरती होती है। यहाँ नारद शिला भी है, जिसके बारे में हमने पहले जिक्र किया है कि यहाँ बैठकर नारद मुनि ने शिव की तपस्या की थी।
यहाँ चामुंडा देवी का मंदिर है, जो माँ दुर्गा का ही एक अन्य रूप है। रुद्रप्रयाग से लगभग तीन किमी की दूरी पर कोटेश्वर महादेव का मंदिर भी है। कहा जाता है कि भगवान शिव ने रुद्रप्रयाग आने से पहले यहाँ की गुफाओं में साधना की थी।
कैसे जाएँ रुद्रप्रयाग ?
रुद्रप्रयाग आप ऋषिकेश से बस या टैक्सी लेकर जा सकते हैं। यह ऋषिकेश से लगभग 140 किमी और श्रीनगर (गढ़वाल) से 34 किमी की दूरी पर स्थित है। बद्रीनाथ के लिये राष्ट्रीय राजमार्ग 58 और केदारनाथ के लिये राष्ट्रीय राजमार्ग 109 यहीं से जाते हैं। कहने का मतलब है कि बद्रीनाथ और केदारनाथ दोनों धार्मिक स्थलों पर जाने के लिये आपको रुद्रप्रयाग जाना होगा। समुद्र तल से 610 मीटर की ऊँचाई पर स्थित रुद्रप्रयाग में सर्दियों में काफी सर्द मौसम रहता है, लेकिन गर्मियों में यहाँ का मौसम सुहावना हो जाता है। यहाँ रात्रि विश्राम करने के लिये अच्छे और सस्ते दर पर होटलों, लॉज आदि की व्यवस्था है।
3…. कर्णप्रयाग : कर्ण ने जहाँ सूर्य भगवान से प्राप्त किया था कवच
अलकनंदा और पिंडर नदी के संगम पर बसा है खूबसूरत शहर कर्णप्रयाग। पिंडर नदी कुमाऊँ के बागेश्वर स्थित पिंडारी ग्लेशियर से होकर यहाँ तक पहुँचती है। बद्रीनाथ मार्ग पर पड़ने वाला यह महत्वपूर्ण स्थल है। महाभारत के महान योद्धा और दानवीर कर्ण के नाम पर कर्णप्रयाग का नाम पड़ा है। कर्ण को सूर्य और कुंती का पुत्र माना जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार कर्ण ने उमा देवी की शरण में रहकर यहाँ सूर्य भगवान की तपस्या की, जिन्होंने उन्हें अभेद्य कवच, कुंडल और अक्षय धनुष प्रदान किया था। यहाँ पर कर्ण का मंदिर भी है। इसलिए इस स्थान पर स्नान के बाद दान करना पुण्यकारी माना जाता है। यह भी कहा जाता है कि भगवान कृष्ण ने इसी स्थान पर कर्ण का अंतिम संस्कार किया था और इसलिए यहाँ पर पितरों को तर्पण देना भी महत्वपूर्ण माना जाता है।
एक और कहानी के अनुसार शिव के अपमान के बाद जब पार्वती अग्निकुंड में कूद गयी थीं, तो उन्होंने हिमालय की पुत्री के रूप में अपना दूसरा जन्म लिया। उनका नाम उमा देवी था और उन्होंने शिव को फिर से पाने के लिये यहाँ कठिन तपस्या की थी। यहाँ पर माँ उमा का प्राचीन मंदिर भी है। महान कवि कालिदास ने मेघदूत और अभिज्ञान शांकुतलम में भी इस स्थान का जिक्र किया है। स्वामी विवेकानंद जब अपने अनुयायियों के साथ हिमालय की यात्रा पर निकले थे, तो उन्होंने 18 दिन यहाँ रुककर साधना की थी।
कर्णप्रयाग राष्ट्रीय राजमार्ग 58 पर स्थित है, जो बद्रीनाथ और माणा को दिल्ली से जोड़ता है। यह ऋषिकेश से लगभग 170 किमी, श्रीनगर (गढ़वाल) से 65 किमी और रुद्रप्रयाग से 31 किमी दूर है। बद्रीनाथ के लिये जाने वाली सभी बसें और टैक्सियाँ आदि इसी रास्ते से होकर गुजरती हैं। यहाँ से बद्रीनाथ 127 किमी दूर है। कर्णप्रयाग से एक मार्ग रानीखेत, अल्मोड़ा के लिये भी जाता है। यहाँ से अल्मोड़ा 160 किमी दूरी पर स्थित है।
4…. नंदप्रयाग : अलकनंदा और नंदाकिनी का संगम स्थल
पंच प्रयागों में चौथे नंद प्रयाग अलकनंदा और नंदाकिनी नदी का संगम स्थल है। नंदाकिनी नदी का उदगम स्थल नंदादेवी पर्वत का ग्लेशियर है और यह कहा जा सकता है कि इस पर्वत और वहाँ से निकली नदी के नाम पर इस स्थान का नाम नंदप्रयाग पड़ा होगा, लेकिन पौराणिक कथाओं में इसका संबंध भगवान कृष्ण से जोड़ा जाता है। कहा जाता है कि राजा नंद ने पुत्र रत्न की प्राप्ति के लिये इसी स्थल पर तपस्या की थी। भगवान विष्णु ने उन्हें वरदान दिया कि वह उनके पुत्र के रूप में जन्म लेंगे। विष्णु को हालाँकि जल्द ही अपनी गलती का अहसास हो गया, क्योंकि वह ऐसा ही वचन देवकी और उनके पति वासुदेव को दे चुके थे। आखिर उन्होंने इस गलती का समाधान इस तरह से निकाला कि वह जन्म तो देवकी की कोख से लेंगे, लेकिन उनका लालन-पालन नंद और उनकी पत्नी यशोदा करेगी। यह भी कहा जाता है कि राजा नंद ने यहां पर महायज्ञ भी करवाया था और इसी वजह से इस स्थान का नाम नंदप्रयाग पड़ा।
एक और कहानी के अनुसार ऋषि कण्व का आश्रम भी इस स्थान पर था और शकुंतला भी यहीं रहती थी। राजा दुष्यंत से उनका विवाह नंदप्रयाग में हुआ था।
राजा नंद से जुड़े संदर्भ को जीवंत करने के लिये यहाँ पर गोपाल जी का मंदिर है। गोपाल भगवान कृष्ण का ही एक नाम है। कहा जाता है कि यह मंदिर उसी स्थल पर बना है, जहाँ पर राजा नंद ने तपस्या की थी। तीर्थयात्री संगम पर स्थान करने के बाद गोपालजी के मंदिर में दर्शन के लिये आते हैं। इसके अलावा यहाँ चंडिका देवी का मंदिर है। यह इस क्षेत्र के सात गाँवों की देवी मानी जाती है। यहाँ नवरात्र के अवसर पर बड़ा मेला लगता है।
कर्णप्रयाग से नंदप्रयाग की दूरी केवल 21 किमी है। यह स्थान चमोली और कर्णप्रयाग के बीच में पड़ता है। बद्रीनाथ जाने के मार्ग पर यदि आप सभी प्रयागों के दर्शन करके जाना चाहते हो, तो नंदप्रयाग आपको प्राकृतिक या धार्मिक किसी भी दृष्टि से निराश नहीं करेगा। नंदप्रयाग में स्नान करने के बाद आप इससे 11 किमी दूरी पर स्थित चमोली में जाकर रूक सकते हैं। यहाँ से जोशीमठ 69 किमी दूर है और इसलिए वहाँ भी जाकर पड़ाव डाला जा सकता है। जोशीमठ में रूकने के लिये बेहतर होटल और लॉज हैं। नंदप्रयाग और चमोली में भी सस्ते होटल और लॉज की व्यवस्था है। यह दिल्ली से 428 और ऋषिकेश से 190 किमी दूर है। नंदप्रयाग के पास से ही रूपकुंड के लिये ट्रेकिंग का मार्ग भी निकलता है।
5…. विष्णु प्रयाग : लगाइये विष्णु कुण्ड में डुबकी
गढ़वाल के पंच प्रयाग में बद्रीनाथ के सबसे करीब स्थित है विष्णु प्रयाग, जहाँ अलकनंदा नदी और धौलीगंगा या विष्णुगंगा नदी का मिलन होता है। अलकनंदा के बारे में हम पहले भी बता चुके हैं कि उसका उदगम स्थल सतोपंथ है। धौलीगंगा नदी का उद्गम स्थल नीति पास है और यह बड़े वेग से अलकनंदा में मिलती है।
नाम से ही स्पष्ट हो जाता है कि विष्णु प्रयाग का नाम भगवान विष्णु के नाम पर पड़ा है। कहा जाता है कि नारद मुनि ने इसी स्थल पर भगवान विष्णु की तपस्या की थी। उन्होंने पंचाक्षरी मंत्र का जाप किया और स्वयं विष्णु भगवान उनको दर्शन देने के लिये यहाँ पधारे थे। विष्णुप्रयाग में भगवान विष्णु का मंदिर भी है, जिसके निर्माण का श्रेय इंदौर की महारानी अहिल्याबाई को दिया जाता है। उन्होंने 1889 में यह मंदिर बनवाया था। संगम पर लहर तेज होने के कारण वहाँ पर स्नान करना मुश्किल होता है। पास में ही विष्णु कुण्ड है, जहाँ पर श्रद्वालु स्नान करते हैं और इसके बाद भगवान विष्णु के दर्शन करने के लिये मंदिर में जाते हैं।
विष्णुप्रयाग जोशीमठ से आगे बद्रीनाथ मार्ग पर स्थित है। ऋषिकेश से विष्णुप्रयाग की दूरी लगभग 272 किमी है। जोशीमठ से नीचे उतरने के बाद कुछ दूरी पर यह पवित्र स्थल स्थित है। जोशीमठ से यहाँ की दूरी 10 किमी है, जबकि विष्णुप्रयाग से बद्रीनाथ लगभग 35 किमी आगे है। विष्णुप्रयाग से कागभुसुंडी ताल के लिये भी रास्ता जाता है। बद्रीनाथ यात्रा पर जाने वाले तीर्थयात्री विष्णुप्रयाग में कुछ देर के लिये रूकते हैं। यहाँ पर विष्णु कुण्ड में स्नान करने और भगवान विष्णु के दर्शन करने के बाद वे आगे बद्रीनाथ के लिये निकल पड़ते हैं। यदि विष्णुप्रयाग जाना है, तो जोशीमठ या बद्रीनाथ में रूकना सही विकल्प रहेगा।
Out of which five Prayag is in Garhwal, Uttarakhand only.
Prayag When this word comes in the mind of a common person, then suddenly the attention goes towards the city of Allahabad in Uttar Pradesh. Actually Allahabad’s original name is Prayag and got its name because there is a confluence of Ganga and Yamuna. It is also said that a third river Saraswati is also found there, but it is invisible. There are many pilgrimage centers in India at the confluence of two rivers and Prayag is associated with their name. There are 14 such Prayags in India and five of them are in the Garhwal region of Uttarakhand. Devprayag, Rudraprayag, Karnprayag, Nandprayag and Vishnu Prayag. Various rivers at these five pilgrimage sites meet with the Alaknanda River, whose origin is believed to be the Satopanth and the Bhagirath Kharak Glacier. The five Prayags have special significance in Uttarakhand and people come to take bath at these places on any festival or even on normal days. So are you ready to take a dip in these Panchprayag of Uttarakhand with us…
1 Devprayag: The confluence of Alaknanda and Bhagirathi
Devprayag is considered to be the most important of the five Prayags of Uttarakhand. It is the place where the calm, gentle Alaknanda meets the fiery Bhagirathi flowing with the furious form and tumult. From here, these two rivers join together to become ‘Ganga’, which further assumes the benign form of Alaknanda. Seeing the fierce form of Bhagirathi in Garhwal, she is called ‘mother-in-law’ and ‘Bahu’ because of the calm nature of Alaknanda. An attempt has also been made to teach from this that if a daughter-in-law is endowed with all qualities, she can get mother-like affection from her mother-in-law, as Bhagirathi gives up her anger after meeting Alaknanda. It is also said that when Ganga agreed to come to earth with the efforts of Bhagiratha, she first appeared in Devprayag itself and then 33 koti deities also reached here to witness this historical event. . The Saraswati river, which disappears at Alaknanda near Mana village beyond Badrinath, is said to descend from the feet of Lord Raghunath in the Raghunath temple of Devprayag.
The five Prayags fall on the way to see Lord Badrinath and the first one is Devprayag. The description of Devprayag is also found in Ramayana, Narada Purana and Skanda Purana etc., which is named after a sage Devsarma. According to mythology, Muni Devsharma did penance to Lord Vishnu at this place. Pleased with his hard penance, he told him that the fame of this place would spread to the three worlds and it would be known as Devprayag.
According to mythological beliefs, when Lord Rama returned after conquering Lanka, he came here to do penance along with Lakshmana and Sita to get rid of the sin of killing Ravana. King Dasharatha, the father of Rama, also did penance here. Apart from the confluence of Alaknanda and Bhagirathi, Devprayag also has many other attractions for the pilgrims. Among them the temple of Raghunathji is prominent. It is said about this temple situated on Badi Rock, that it was constructed ten thousand years ago. The temple is surrounded by four other smaller shrines Annapurna Devi, Narasimha, Hanuman and Garuda Mahadev. The idol of Lord Rama is kept in the Raghunath temple, which is said to have been established here about 1250 years ago. This temple is built in Dravidian style. Special worship is done here on festivals like Ram Navami, Basant Panchami and Baisakhi. Apart from this, Danda Nagraj Temple and Chandrabadni Temple are also located here. Shradh of ancestors is also performed in Devprayag. Here there is Vashistha Kund on the Bhagirathi River and Brahmakund on the banks of the Alaknanda. There is also a place Baitalshila, about which it is said that by taking a bath there one gets freedom from leprosy.
How to reach Devprayag? Devprayag is located on Delhi and Badrinath National Highway No. 58. It is 295 km from Delhi and about 73 km from Rishikesh. It takes two and a half to three hours to reach Devprayag from Rishikesh. Devprayag can be reached from Rishikesh by taking a bus or taxi. There are very few hotels in Devprayag and there is no good parking facility. Therefore, after taking a bath in Devprayag, the pilgrims proceed towards Srinagar or come back to Rishikesh. Here the main road passes over the town, from where one can go through a narrow road to the Sangam site. There is also a small bridge to cross the river here.
2…. Rudraprayag: Where Lord Shiva played Veena Rudraprayag is the confluence of Mandakini, overwhelmed by the sights of Alaknanda and Kedarnath, coming through the feet of Badrinath. Here the meeting of the two rivers creates a very beautiful sight. This small town is known to have both natural and religious significance. Rudra is a name of Lord Shiva and it is on this name that Rudraprayag got its name. There is a story behind this too. It is said that Narada became very proud of his Veena playing. This worried the gods. He requested Lord Krishna to shatter the pride of Narada. Lord Krishna adopted a simple solution. He went to Narada and told him that Lord Shiva and Parvati were very impressed by his Veena playing. Narada became full of fury and started towards Himalayas to narrate his veena playing to Lord Shiva. On the way, when he stopped at a place, he found many young girls who had become ugly due to some reason. When Narada asked her the reason for this, she replied that when Narada tames his Veena, it has those side effects, due to which she became ugly. It was clear that Narada did not know how to play the veena. Narada was disappointed to hear this. His pride was shattered and he started worshiping Lord Shiva by sitting on a rock or rock there. Lord Shiva then appeared in the form of Rudra and appeared to Narada. He appeared while playing the veena and then also taught Narada to play the veena. It is said that since then this place came to be called Rudraprayag.
A temple dedicated to the Rudra form of Lord Shiva is also situated here at the confluence of Alaknanda and Mandakini, which is called the temple of Rudranath. Aarti is held here every evening at six o’clock at the Sangam. There is also Narada Shila, about which we have mentioned earlier that Narada Muni did penance to Shiva while sitting here.
There is a temple of Chamunda Devi, which is another form of Maa Durga. There is also a temple of Koteshwar Mahadev at a distance of about three km from Rudraprayag. Lord Shiva is said to have meditated in the caves here before coming to Rudraprayag.
How to reach Rudraprayag? You can take a bus or taxi from Rishikesh to Rudraprayag. It is situated at a distance of about 140 km from Rishikesh and 34 km from Srinagar (Garhwal). National Highway 58 to Badrinath and National Highway 109 to Kedarnath go from here. It means to say that to visit both Badrinath and Kedarnath religious places, you have to go to Rudraprayag. Situated at an altitude of 610 meters above sea level, Rudraprayag experiences very cold weather in winters, but becomes pleasant in summers. Hotels, lodges, etc. are arranged at good and cheap rates for staying the night here.
3…. Karnprayag: Where Karna received the armor from the Sun God The beautiful city of Karnprayag is situated at the confluence of the Alaknanda and Pindar rivers. Pindar River reaches here through Pindari Glacier located at Bageshwar of Kumaon. This is an important place falling on the Badrinath road. Karnprayag is named after the great warrior and philanthropist of Mahabharata, Karna. Karna is believed to be the son of Surya and Kunti. According to mythology, Karna performed penance here under the shelter of Uma Devi, the Sun God, who had provided him with impenetrable armor, a coil and an inexhaustible bow. There is also a temple of Karna here. Therefore, donating after bathing at this place is considered virtuous. It is also said that Lord Krishna performed the last rites of Karna at this place and hence offering tarpan to ancestors here is also considered important. According to another story, when Parvati jumped into the fire pit after insulting Shiva, she took her second birth as the daughter of Himalaya. Her name was Uma Devi and she did hard penance here to get Shiva again. There is also an ancient temple of Maa Uma here. The great poet Kalidasa has also mentioned this place in Meghdoot and Abhigyan Shankutalam. When Swami Vivekananda went on a journey to the Himalayas with his followers, he stayed here for 18 days and did spiritual practice.
Karnprayag is located on National Highway 58, which connects Badrinath and Mana to Delhi. It is about 170 km from Rishikesh, 65 km from Srinagar (Garhwal) and 31 km from Rudraprayag. All the buses and taxis going to Badrinath pass through this route. Badrinath is 127 km away from here. A route from Karnprayag also leads to Ranikhet, Almora. Almora is situated at a distance of 160 km from here.
4…. Nandprayag: The confluence of Alaknanda and Nandakini
The fourth of the Panch Prayag, Nand Prayag is the confluence of the Alaknanda and Nandakini rivers. The origin of the Nandakini river is the glacier of the Nanda Devi mountain and it can be said that the place would have been named Nandprayag after the mountain and the river that emanated from there, but in mythology it is associated with Lord Krishna. It is said that King Nanda did penance at this place to get the son Ratna. Lord Vishnu granted him a boon that he would be born as his son. Vishnu, however, soon realized his mistake, as he had given the same promise to Devaki and her husband Vasudeva. After all, he solved this mistake in such a way that he would take birth from Devaki’s womb, but he would be brought up by Nanda and his wife Yashoda. It is also said that King Nanda had also conducted Mahayagya here and for this reason this place was named Nandprayag.
According to another story, the ashram of sage Kanva was also at this place and Shakuntala also lived here. She was married to King Dushyanta at Nandprayag.
To bring alive the context related to King Nand, there is a temple of Gopal ji here. Gopal is a name of Lord Krishna. It is said that this temple is built on the same site where King Nanda did penance. Pilgrims come to visit Gopalji’s temple after taking their place at the Sangam. Apart from this, there is a temple of Chandika Devi. She is considered to be the goddess of the seven villages of this region. A big fair is held here on the occasion of Navratri.
The distance from Karnprayag to Nandprayag is only 21 km. This place falls between Chamoli and Karnprayag. If you want to visit all Prayag on the way to Badrinath, then Nandprayag will not disappoint you in any way, natural or religious. After taking a bath in Nandprayag, you can stop at Chamoli, which is 11 km away from it. Joshimath is 69 km away from here and hence one can make a halt there as well. There are better hotels and lodges for staying in Joshimath. There are also cheap hotels and lodges in Nandprayag and Chamoli. It is 428 km from Delhi and 190 km from Rishikesh. The trekking route to Roopkund also emerges from near Nandprayag.
5…. Vishnu Prayag: Take a dip in Vishnu Kund Vishnu Prayag is located closest to Badrinath in Panch Prayag of Garhwal, where the Alaknanda river and the Dhauliganga or Vishnuganga river meet. We have already told about Alaknanda that its place of origin is Satopanth. The origin of Dhauliganga river is near Niti and it joins the Alaknanda with great velocity.
It is clear from the name itself that Vishnu Prayag is named after Lord Vishnu. It is said that Narada Muni did penance to Lord Vishnu at this place. They chanted Panchakshari Mantra and Lord Vishnu himself had come here to give darshan to him. There is also a temple of Lord Vishnu in Vishnuprayag, whose construction is attributed to Maharani Ahilyabai of Indore. He built this temple in 1889. Due to the strong wave at the confluence, it is difficult to take a bath there. Nearby is the Vishnu Kund, where devotees take a bath and then go to the temple to have darshan of Lord Vishnu.
Vishnuprayag is situated on Badrinath road ahead of Joshimath. The distance from Rishikesh to Vishnuprayag is about 272 km. This holy place is situated at some distance after descending from Joshimath. The distance from Joshimath here is 10 km, while Badrinath is about 35 km from Vishnuprayag. There is also a road from Vishnuprayag to Kagbhusundi Tal. Pilgrims going on the Badrinath Yatra stop for a while at Vishnuprayag. Here after taking a bath in Vishnu Kund and seeing Lord Vishnu, they proceed to Badrinath. If you want to go to Vishnuprayag, then stopping at Joshimath or Badrinath would be the right option.
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भारत में 14 प्रयाग के नाम क्या है