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इतना शौक मत रखो,वृन्दावन की गलियों में जाने का सही में रास्ता नहीं है,वापस आने का
भगवान श्रीकृष्ण का,निजधाम ‘श्रीवृन्दावन-
ब्रज चौरासी कोस में, चारगाम निजधाम।
वृन्दावन अरू मधुपुरी, बरसानो नन्दगाम॥
श्रीवृन्दावन, मथुरा और द्वारका
भगवान के नित्य लीलाधाम हैं।
परन्तु पद्मपुराण के अनुसार वृन्दावन ही भगवान का सबसे प्रिय धाम है।भगवान श्रीकृष्ण ही वृन्दावन के अधीश्वर हैं, वे व्रज के राजा हैं और व्रज वासियों के प्राणवल्लभ हैं।
उनकी चरण-रज का स्पर्श होने के कारण
वृन्दावन पृथ्वी पर नित्यधाम के नाम से प्रसिद्ध है।
सनत्कुमार संहिता में गोविन्द की अतिशय प्रिय भूमिवृन्दावन का विस्तार पंचयोजन बताया गया है।और पंचयोजन विस्तृत वृन्दावन स्वयं श्रीकृष्ण का देहरूप माना गया है।भगवान की इच्छा से इसमें संकुचन और विस्तार हुआ करता है।
छोटे से वृन्दावन में जितनी गोपियों, ग्वालों और गौओं के होने का वर्णन आता है, वह स्थूल दृष्टि से देखने से सम्भव प्रतीत नहीं होता; फिर भी भगवान की महिमा से वह सब सत्य ही है।
वृन्दावन की एक झाड़ी में ही ब्रह्माजी को सहस्त्र-
सहस्त्र ब्रह्माण्ड और उनके निवासी दिख गये थे।
यहां के नग, खग, मृग, कुंज, लता आदि काल और प्रकृति के प्रभाव से अतीत दिव्य स्वरूप हैं।यहां के रजकणों के समान तो वैकुण्ठ भी नहीं माना गया, क्योंकि यहां कि भूमि का चप्पा-चप्पा श्रीप्रिया-प्रियतम के चरण चिह्नों से महिमामण्डित है।
सांसारिक दृष्टि से यह वृन्दावन कदापि दर्शनीय नहीं है, पर यदि श्रीराधाकृष्ण की कृपा हो जाये तो वृन्दावन के इस रूप का दर्शन भी साधकों को हो जाता है।
नित्य छबीली राधिका, नित छविमय ब्रजचंद।
विहरत वृंदाबिपिन दोउ लीला-रत स्वच्छन्द॥
श्रीमद्भागवत के अनुसार अत्याचारी कंस के उत्पातों से दु:खी होकर नन्द-उपनन्द आदि गोपों की सभा में अपने तत्कालीन निवास बृहद्वन को छोड़कर सुरक्षा के लिए जिस वृन्दावन में बसने का प्रस्ताव स्वीकृत हुआ था, वह वृन्दावन अपने स्वरूप में छोटे-छोटे अनेक वनों का समूह था।
इस क्षेत्र में पुण्य पर्वत श्री गिरिराज था, स्वच्छ सलिला श्रीयमुना थीं (जो आज भी मौजुद है) और यह सम्पूर्ण क्षेत्र अपनी वनश्री की शोभा से समृद्ध होने के कारण गोप-गोपी और गायों की सुख-सुविधा से युक्त था।
इसी बृहद् वृन्दावन में गोप-गोपी
एवं गोपाल की अनेक लीलाएं हुईं।
वृन्दावन के इसी क्षेत्र में श्रीकृष्ण द्वारा वत्सासुर,
वकासुर एवं अघासुर का वध हुआ।
इसी क्षेत्र में यमुना-पुलिन पर ग्वालबालों की मण्डली में जूठन खाते श्रीकृष्ण को देखकर ब्रह्माजी मोहग्रसित हुए।
वृन्दावन के इसी बृहद् क्षेत्र में श्रीकृष्ण द्वारा कालियनाग
को नाथे जाने पर यमुना प्रदूषण से मुक्त हुई थी।
यहीं मुज्जावटी क्षेत्र में श्रीकृष्ण
द्वारा दावानल का पान किया गया।
भाण्डीर वन में ही प्रलम्बासुर नामक दैत्य ग्वालबालों व श्रीकृष्ण की क्रीड़ा में ग्वाल के वेष में सम्मिलित हुआ था।
यमुनातट पर व्रजांगनाओं के चीरहरण का साक्षी वह कदम्ब का वृक्ष आधुनिक स्यारह गांव के पास स्थित था।
वृन्दावन के गिरिराज क्षेत्र में
ही इन्द्र का मानमर्दन हुआ।
वरुणदेव ने नन्दबाबा का हरण आधुनिक
भयगांव नाम से प्रसिद्ध स्थान पर किया था।
राधाकुण्ड का भूभाग अरिष्टासुर
के उद्धार से सम्बन्धित है।
राधाकुण्डे श्यामकुण्डे गिरि गोवर्धन।
मधुर मधुर वंशी बाजे, ऐई तो वृन्दावन॥
श्रीगर्ग संहिता के उल्लेख के आधार पर श्रीराधाकृष्ण के रास का क्षेत्र वृन्दावन के सैकत पुलिन से शुरु होकर गिरि गोवर्धन,चन्द्रसरोवर,तालवन,मधुवन,कामवन,बरसाना,नन्दगांव,कोकिलावन एवं रासौली तक विस्तृत माना जाता है।
इस प्रकार बृहद् वृन्दावन की सीमा दक्षिण पश्चिम में गोवर्धन तक तथा उत्तर में वर्तमान छाता तहसील के दक्षिणी भाग तक मानी जाती है।वृन्दावन को भगवान का स्वरूप ही मानना चाहिए, यहां कि धूलि का स्पर्श होने मात्र से ही मोक्ष हो जाता है।
वृन्दावन धाम को जय हो
, Don’t be so fond of it, there is no right way to go to the streets of Vrindavan, there is no way to come back
Lord Krishna’s, Nijdham ‘Sri Vrindavan-Braj in eighty-four kilometers, Chargam Nijdham. Vrindavan and Madhupuri, Barsano Nandagam.
Sri Vrindavan, Mathura and Dwarka They are the eternal pastimes of God.
But according to Padma Purana, Vrindavan is the most beloved abode of God. Lord Shri Krishna is the lord of Vrindavan, he is the king of Vraj and the life of the people of Vraj.
Because of the touch of his feet Vrindavan is famous on earth as Nityadham.
In the Sanatkumar Samhita, the expansion of Govinda’s much-loved Bhumi Vrindavan has been described.
The number of gopis, cowherds and cows that are described in a small Vrindavan, it is not possible to see it from a physical point of view; Yet by the glory of God all that is true.
In a bush of Vrindavan, Brahmaji was given a thousand- The thousand universes and their inhabitants were visible.
The nagas, khag, deer, kunj, creeper etc. are divine forms of the past due to the influence of time and nature. Vaikuntha is not even considered like the Rajakanas here, because here every piece of land is filled with the footprints of Shripriya-Priyatam. is glorified.
This Vrindavan is never visible from the worldly point of view, but if by the grace of Shri Radha Krishna, then this form of Vrindavan is also visible to the seekers.
Nitya Chhabili Radhika, always imaginative Brajchand. Viharat Vrindabipin Dou Leela-Rat Swachhand
According to Shrimad Bhagwat, being saddened by the misdeeds of the tyrannical Kansa, in the assembly of Gopas like Nand-Upanand etc., leaving his then abode, Brihadwan, the proposal to settle in Vrindavan was accepted for safety, that Vrindavan in its form was composed of many small forests. was a group.
In this area there was a virtuous mountain Shri Giriraj, clean Salila was Shriyamuna (which is present even today) and this entire area was blessed with the comforts of Gopis and Cows due to the beauty of its Vanashree.
In this great Vrindavan the gopis and gopis And Gopal had many pastimes.
Vatsasura by Shri Krishna in the same area of Vrindavan, Vakasur and Aghasur were killed.
In this area, Brahmaji was fascinated to see Shri Krishna eating leftovers in the congregation of cowherds on Yamuna-Pulin.
Kaliyanag by Shri Krishna in this vast area of Vrindavan Yamuna was freed from pollution on going to Nathe.
Here in the Mujhavati area, Shri Krishna The betel leaf was served by.
In the Bhandir forest itself, a demon named Pralambasura had participated in the game of cowherds and Shri Krishna in the guise of a cowherd.
The Kadamba tree was situated near the modern village of Syarah, witnessing the dismemberment of the Vrajanganas on the banks of the Yamuna.
In the Giriraj area of Vrindavan This was the honor of Indra.
Nand Baba’s abduction by Varundev It was done at a famous place called Bhaygaon.
Arishtasur of Radhakund related to salvation.
Radhakunde Shyamakunde Giri Govardhana. Sweet sweet flutes play, come to Vrindavan.
On the basis of the mention of Shri Garga Samhita, the area of Ras of Shri Radhakrishna is considered to be wide starting from Saikat Pulin of Vrindavan to Giri Govardhan, Chandrasarovar, Talavan, Madhuvan, Kamavan, Barsana, Nandgaon, Kokilavan and Rasauli.
In this way, the boundary of the great Vrindavan is considered to be up to Govardhan in the south-west and up to the southern part of the present Umbrella tehsil in the north.
Hail to Vrindavan Dham