अहोई अष्टमी व्रत कथा, पूजा विधि व उद्यापन विधि!!!!!!

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कार्तिक कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को अहोई अष्टमी का व्रत किया जाता है। इसे अहोई आठे के नाम से भी जाना जाता है। जिस वार की दीपावली होती है अहोई आठें भी उसी वार की पड़ती है। इस व्रत को वे स्त्रियाँ ही करती हैं जिनके सन्तान होती हैं। यह व्रत संतान की लम्बी आयु और सुखमय जीवन की कामना से किया जाता है।

अहोई अष्टमी !!!!! मित्रो कल 17अक्टूबर को अहोई अष्टमी है, आज हम आपको अहोई अष्टमी से जुड़ी कथा बतायेंगे!!!!!!

अहोई अष्टमी व्रत की मुख्यतः दो कथाये है जो निम्न प्रकार है!!!!!

पहली कथा- प्राचीन काल में एक साहुकार था, जिसके सात बेटे और सात बहुएं थी। इस साहुकार की एक बेटी भी थी जो दीपावली में ससुराल से मायके आई थी। दीपावली पर घर को लीपने के लिए सातों बहुएं मिट्टी लाने जंगल में गई तो ननद भी उनके साथ हो ली। साहुकार की बेटी जहां मिट्टी काट रही थी उस स्थान पर स्याहु (साही) अपने साथ बेटों से साथ रहती थी। मिट्टी काटते हुए ग़लती से साहूकार की बेटी की खुरपी के चोट से स्याहू का एक बच्चा मर गया। स्याहू इस पर क्रोधित होकर बोली मैं तुम्हारी कोख बांधूंगी।

स्याहू के वचन सुनकर साहूकार की बेटी अपनी सातों भाभीयों से एक एक कर विनती करती हैं कि वह उसके बदले अपनी कोख बंधवा लें। सबसे छोटी भाभी ननद के बदले अपनी कोख बंधवाने के लिए तैयार हो जाती है। इसके बाद छोटी भाभी के जो भी बच्चे होते हैं वे सात दिन बाद मर जाते हैं। सात पुत्रों की इस प्रकार मृत्यु होने के बाद उसने पंडित को बुलवाकर इसका समाधान पूछा।

पंडित ने कहा तुम सुरही गाय की सेवा किया करो। सुरही गाय रिश्ते में स्याहू की भायली लगती है। वह यदि तेरी कोख छोड़ दे तो बच्चे जीवित रह सकते है। पंडित की बात सुनकर छोटी बहु ने दूसरे दिन से सुरही गाय की सेवा काना प्रारम्भ कर दिया। वह प्रतिदिन सुबह सवेरे उठकर गाय का गोबर आदि साफ़ कर देती। गाय ने अपने मन में सोचा कि, यह कार्य कौन कर रहा है, इसका पता लगाउंगी।

दूसरे दिन गाय माता तड़के उठकर देखती है कि उस स्थान पर साहूकार की छोटी बहु झाड़ू-बुहारी करके सफाई कर रही है। सुरही गाय ने छोटी बहु से पूछा कि तू किस लिए मेरी इतनी सेवा कर रही है और वह उससे क्या चाहती है ? जो कुछ तेरी इच्छा हो वह मुझ से मांग लें। साहूकार की बहु ने कहा कि स्याहु माता ने मेरी कोख बाँध दी है जिससे मेरे बच्चे नहीं बचते है। यदि आप मेरी कोख खुलवा दे तो मैं आपका उपकार मानूंगी। गाय माता ने उसकी बात मान ली और उसे साथ लेकर सात समुद्र पार स्याहु माता के पास ले चली। रास्ते में कड़ी धुप से व्याकुल होकर दोनों एक पेड़ के नीचे बैठ गई।

जिस पेड़ के नीचे दोनों बैठी थी उस पेड़ पर गरुड़ पक्षी का एक बच्चा रहता था। थोड़ी देर में ही एक सांप आकर उस बच्चे को मारने की कोशिश करने लगा। इस दृश्य को देखकर साहूकार की बहु ने उस सांप को मारकर एक डाल के नीचे उसे छिपा दिया और उस गरुड़ के बच्चे को मरने से बचा लिया। कुछ देर पश्चात उस बच्चे की माँ वहां आई। जब उसने वहां खनन पड़ा देखा तो उसने सोचा कि साहूकार की बहु ने ही उसके बच्चे को मारा है। ऐसा सोचकर वो साहूकार की बहु को चोंच से मारने लगी।

तब साहूकार की बहु ने कहा कि मैंने तेरे बच्चे को नहीं मारा है। तेरे बच्चे को डसने एक सांप आया था मैंने उसे मारकर तेरे बच्चे की रक्षा की है। मरा हुआ सांप डाल के नीचे दबा हुआ है। बहु की बातों से वह प्रसन्न हो गई और बोली जो कुछ भी तू मुझ से चाहती है मांग ले। बहु ने उससे कहा कि सात समुन्द्र पर स्याहू माता रहती है तू मुझे उस तक पहुंचा दे। तब उस गरुड़ पंखिनी ने उन दोनों को अपनी पीठ पर बैठा कर समुद्र के उस पार स्याहू माता के पास पहुंचा दिया।

स्याहू माता उन्हें देखकर बोली – आ बहिन, बहुत दिनों के बाद आई है। वह पुनः बोली मेरे सर में जू पड़ गई है, तू उसे निकाल दे। तब सुरही गाय के कहने पर साहूकार की बहु ने सिलाई से स्याहू माता की साड़ी जूँओं को निकाल दिया। इस पर स्याहू माता अत्यंत खुश हो गई। स्याहू माता ने उसे साहूकार की बहु से कहा कि तेरे साथ बेटे और साथ बहुएँ हो। यह सुनकर साहूकार की बहु ने कहा कि मुझे तो एक भी बेटा नहीं है सात कहा से होंगे। जब स्याहू माता ने इसका कारण पूंछा तो छोटी बहु ने कहा कि यदि आप वचन दे तो मैं इसका कारण बता सकती हूँ। स्याहू माता ने उसे वचन दे दिया। वचन बद्ध करा लेने के बाद छोटी बहु ने कहा कि मेरी कोख तो आपके पास बंद पड़ी है, उसे खोल दे।

स्याहू माता ने कहा कि मैं तेरी बातों में आकर धोखा खा गई। अब मुझे तेरी कोख खोलनी पड़ेगी। इतना कहने के साथ ही स्याहू माता ने कहा कि तू अब अपने घर जा। तेरे सात बेटे और सात बहुएं होंगी। घर जाने पर तू अहोई माता का उद्यापन करना। सात सात अहोई बनाकर सात कड़ाही देना। उसने घर लौट कर देखा तो उसके सात बेटे और सात बहुएं बेटी हुई मिली। वह ख़ुशी के मारे भाव-भिवोर हो गई। उसने सात अहोई बनाकर सात कड़ाही देकर उद्यापन किया।

उधर उसकी जेठानियाँ परस्पर कहने लगी कि सब लोग पूजा का कार्य शीघ्र पूरा कर लो। कही ऐसा न हो कि, छोटी बहु अपने बच्चो का स्मरण कर रोना-धोना न शुरू कर दे। नहीं तो रंग में भंग हो जाएगा। लेकिन जब छोटी बहु के घर से रोने-धोने की आवाज़ नहीं आई तो उन्होंने अपने बच्चों को छोटी बहु के घर पता लगाने भेजा। बच्चो ने घर आकर बताया कि वहां तो उद्यापन का कार्यक्रम चल रहा है।

इतना सुनते ही सभी जेठानियाँ आकर उससे पूंछने लगी कि, तूने अपनी कोख कैसे खुलवायी। इसने कहा कि स्याहू माता ने कृपा कर उसकी खोख खोल दी। सब लोग अहोई माता की जय-जयकार करने लगे। जिस तरह अहोई माता ने उस साहूकार की बहु की कोख को खोल दिया उसी प्रकार इस व्रत को करने वाली सभी नारियों की अभिलाषा पूर्ण करे।

दूसरी कथा- एक समय की बात है किसी गांव में एक साहूकार रहता था। उसके सात बेटे थे। दीपावली से पहले साहूकार की पत्नी घर की पुताई करने के लिए मिट्टी लेने खदान गई। वहां वह कुदाल से मिट्टी खोदने लगी। दैवयोग से साहूकार की पत्नी को उसी स्थान पर एक “साही” की मांद दिखाई दी। अचानक कुदाल स्त्री के हाथों से “साही” के बच्चे को लग गई, जिससे उसकी मृत्यु हो गई। “साही” के बच्चे की मौत का साहूकारनी को बहुत दुख हुआ। परंतु वह अब कर भी क्या सकती थी, वह पश्चाताप करती हुई अपने घर लौट आई।

कुछ समय बाद सहूकारनी के एक बेटे की मृत्यु हो गई। इसके बाद लगातार उसके सातों बेटों की मौत हो गई। इससे वह बहुत दुखी रहने लगी। एक दिन उसने अपनी एक पड़ोसी को “साही” के बच्चे की मौत की घटना कह सुनाई और बताया कि उसने जानबूझ कर कभी कोई पाप नहीं किया। यह हत्या उससे गलती से हुई थी जिसके परिणाम स्वरूप उसके सातों बेटों की मौत हो गई। यह बात जब सबको पता चली तो गांव की वृद्ध औरतों ने साहूकार की पत्नी को दिलासा दिया।

वृद्ध औरतों साहूकार की पत्नी को चुप करवाया और कहने लगी आज जो बात तुमने सबको बताई है, इससे तुम्हारा आधा पाप नष्ट हो गया है। इसके साथ ही, उन्होंने साहूकारनी को अष्टमी के दिन भगवती माता तथा “साही” और “साही” के बच्चों का चित्र बनाकर उनकी आराधना करने को कहा। इस प्रकार क्षमा याचना करने से तुम्हारे सारे पाप धुल जाएंगे और कष्ट दूर हो जाएंगे।

साहूकार की पत्नी उनकी बात मानते हुए कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी को व्रत रखा व विधि पूर्वक पूजा कर क्षमा याचना की। इसी प्रकार उसने प्रतिवर्ष नियमित रूप से इस व्रत का पालन किया। जिसके बाद उसे सात पुत्र रत्नों की प्राप्ति हुई। तभी से अहोई व्रत की परम्परा चली आ रही है।

अहोई अष्टमी पूजा विधि !!!!!

जिन स्त्रियों वह व्रत करना होता है वह दिनभर उपवास रखती हैं। सायंकाल भक्ति-भावना के साथ दीवार अहोई की पुतली रंग भरकर बनाती हैं। उसी पुतली के पास सेई व सेई के बच्चे भी बनाती हैं। आजकल बाजार से अहोई के बने रंगीन चित्र कागज भी मिलते हैं। उनको लाकर भी पूजा की जा सकती है।

संध्या के समय सूर्यास्त होने के बाद जब तारे निकलने लगते हैं तो अहोई माता की पूजा प्रारंभ होती है। पूजन से पहले जमीन को स्वच्छ करके, पूजा का चौक पूरकर, एक लोटे में जलकर उसे कलश की भांति चौकी के एक कोने पर रखें और भक्ति भाव से पूजा करें। बाल-बच्चों के कल्याण की कामना करें। साथ ही अहोई अष्टमी के व्रत कथा का श्रद्धा भाव से सुनें।

इसमें एक खास बात यह भी है कि पूजा के लिए माताएं चांदी की एक अहोई भी बनाती हैं जिसे बोलचाल की भाषा में स्याऊ भी कहते हैं और उसमें चांदी के दो मोती डालकर विशेष पूजन किया जाता है। जिस प्रकार गले में पहनने के हार में पैंडिल लगा होता है उसी प्रकार चांदी की अहोई डलवानी चाहिए और डोरे में चांदी के दाने पिरोने चाहिए। फिर अहोई की रोली, चावल, दूध व भात से पूजा करें।

जल से भरे लोटे पर सातिया बना लें, एक कटोरी में हलवा तथा रुपए का बायना निकालकर रख दें और सात दाने गेहूं के लेकर अहोई माता की कथा सुनने के बाद अहोई की माला गले में पहन लें, जो बायना निकाल कर रखा है उसे सास की चरण छूकर उन्हें दे दें। इसके बाद चंद्रमा को जल चढ़ाकर भोजन कर व्रत खोलें।

इतना ही नहीं इस व्रत पर धारण की गई माला को दिवाली के बाद किसी शुभ दिन अहोई को गले से उतारकर उसको गुड़ से भोग लगा और जल से छीटें देकर मस्तक झुकाकर रख दें। सास को रोली तिलक लगाकर चरणस्पर्श करते हुए आशीर्वाद लें।



Ahoi Ashtami fast is observed on the Ashtami date of Kartik Krishna Paksha. It is also known as Ahoi Athe. Ahoi Eights also falls on the same day as the day of Diwali. Only those women who have children do this fast. This fast is done with the wish of long life and happy life of the children.

Ahoi Ashtami !!!!! Friends, tomorrow is October 17th, Ahoi Ashtami, today we will tell you the story related to Ahoi Ashtami!!!!!!

There are mainly two stories of Ahoi Ashtami Vrat which are as follows!!!!!

First story- In ancient times there was a moneylender, who had seven sons and seven daughters-in-law. This moneylender also had a daughter who came to her maternal home from her in-laws’ house during Diwali. When all the seven daughters-in-law went to the forest to bring soil to cover the house on Diwali, the sister-in-law also joined them. Syahu (porcupine) lived with her sons at the place where the moneylender’s daughter was cutting the soil. A child of ink died due to the injury of the moneylender’s daughter’s scabbard accidentally while cutting the soil. Syahu got angry on this and said I will tie your womb.

Hearing the words of Inyahu, the moneylender’s daughter requests her seven sisters-in-law one by one to get her womb tied up instead. The youngest sister-in-law agrees to have her womb tied in exchange for her sister-in-law. After this, all the children of the younger sister-in-law, they die after seven days. After the death of seven sons in this way, he called the Pandit and asked for its solution.

The pundit said that you should serve the surhi cow. Surhi looks like ink in a cow relationship. If he leaves your womb, the children can live. After listening to the pundit, the younger daughter-in-law started serving the surhi cow from the second day. She would wake up early in the morning and clean the cow dung etc. The cow thought in her mind that, who is doing this work, I will find out.

On the second day, the cow mother wakes up early to see that the little daughter-in-law of the moneylender is cleaning the place with a broom. Surhi cow asked the younger daughter-in-law that for what are you serving me so much and what does she want from her? Ask me whatever you want. The moneylender’s daughter-in-law said that Syahu Mata has tied my womb so that my children do not survive. If you can open my womb, I will do you a favor. The cow mother agreed to her and took her along with her and took her across the seven seas to Syahu Mata. On the way, both of them sat under a tree after getting disturbed by the harsh sun.

On the tree under which both were sitting, there lived a child of the Garuda bird. Within a short time a snake came and started trying to kill that child. Seeing this scene, the moneylender’s daughter-in-law killed that snake and hid it under a branch and saved that Garuda’s child from dying. After some time the mother of that child came there. When he saw the mining lying there, he thought that the moneylender’s daughter-in-law had killed his child. Thinking so, she started hitting the moneylender’s daughter-in-law with a beak.

Then the moneylender’s daughter-in-law said that I have not killed your child. A snake had come to bite your child, I have saved your child by killing him. The dead snake is buried under the branch. She was pleased with the words of the daughter-in-law and said whatever you want from me, ask for it. The daughter-in-law told him that there is a mother of ink living on the seven seas, you should bring me to her. Then that Garuda Pankhini seated both of them on his back and took them across the sea to Mother Syahu.

Seeing them, Syahu Mata said – Oh sister, she has come after a long time. She said again that I have got a lice in my head, you get it out. Then at the behest of the surahi cow, the moneylender’s daughter-in-law removed the lice from the sari of Syahu Mata by sewing. Syahu Mata became very happy on this. Syahu mother told him to the moneylender’s daughter-in-law that you should have sons and daughters-in-law with you. Hearing this, the moneylender’s daughter-in-law said that I do not have even a single son, where will the seven be from. When Syahu Mata asked the reason for this, the younger daughter-in-law said that if you promise, I can tell the reason. Syahu Mata gave him a promise. After making the promise, the younger daughter-in-law said that my womb is lying closed with you, open it.

Syahu Mata said that I was deceived by coming to your words. Now I have to open your womb. With this saying, Syahu Mata said that you now go to your home. You will have seven sons and seven daughters-in-law. When you go home, do the Udyapan of Ahoi Mata. Make seven seven Ahoi and give seven pans. When he returned home, he found seven sons and seven daughters-in-law daughters. She was overwhelmed with happiness. He made seven Ahoi and performed Udyapan by giving seven cauldrons.

On the other hand, his sisters-in-law started telling each other that everyone should complete the work of worship soon. It should not happen that the little daughter-in-law does not start crying after remembering her children. Otherwise the color will dissolve. But when there was no sound of crying and washing from the house of the younger daughter-in-law, she sent her children to find out the house of the younger daughter-in-law. The children came home and told that there is a program of Udyapan going on.

On hearing this, all the sisters came and started asking him, how did you get your womb opened. It said that Syahu Mata had kindly opened its hollow. Everyone started cheering Ahoi Mata. Just as Ahoi Mata opened the womb of that moneylender’s daughter-in-law, in the same way fulfill the wishes of all the women who observe this fast.

Second story- Once upon a time there lived a moneylender in a village. He had seven sons. Before Diwali, the moneylender’s wife went to the quarry to get soil for the house. There she started digging the soil with a spade. By luck, the moneylender’s wife saw the den of a “porcupine” at the same place. Suddenly the spade hit the child of the “porcupine” from the hands of the woman, due to which she died. The moneylender was deeply saddened by the death of the “porcupine” child. But what could she do now, she returned to her home repenting.

After some time one of the sons of Sahukarni died. After this, his seven sons died continuously. This made her very sad. One day he narrated the incident of the death of a “porcupine” child to a neighbor and told that he had never committed any sin intentionally. This murder was committed by her mistake, as a result of which all her seven sons died. When everyone came to know about this, the old women of the village consoled the moneylender’s wife.

Old women silenced the moneylender’s wife and started saying that what you have told everyone today, half your sins have been destroyed by this. Along with this, he asked the moneylender to worship the mother goddess and the children of “porcupine” and “porcupine” on the day of Ashtami by drawing them. By asking for forgiveness in this way, all your sins will be washed away and your sufferings will go away.

The moneylender’s wife, obeying him, kept a fast on the Ashtami of Krishna Paksha of Kartik month and prayed for forgiveness after worshiping. Similarly, he observed this fast every year regularly. After which he was blessed with seven sons. Since then the tradition of Ahoi fasting is going on.

Ahoi Ashtami Puja Vidhi !!!!!

The women who have to observe that fast, they keep fast for the whole day. In the evening, with devotion-feeling, the effigy of Ahoi fills the wall with color. Sei and Sei’s children are also made near the same effigy. Nowadays, colored picture papers made of Ahoi are also available from the market. Worship can also be done by bringing them.

After sunset in the evening, when the stars start coming out, then the worship of Ahoi Mata begins. Before worshiping, clean the ground, fill the square of worship, burn it in a pot like an urn and place it on one corner of the outpost and worship with devotion. Pray for the welfare of the children. Also listen to the fast story of Ahoi Ashtami with reverence.

There is also a special thing in this that for worship, mothers also make a silver Ahoi, which is also colloquially called Syau and special worship is done by putting two silver pearls in it. Just as a pendant is attached to the necklace to be worn around the neck, in the same way, silver Ahoi should be put and silver grains should be threaded in the string. Then worship Ahoi with roli, rice, milk and rice.

Make a satiya on a lotus filled with water, take out the pudding and money in a bowl and after listening to the story of Ahoi Mata with seven grains of wheat, wear the garland of Ahoi around the neck, the bayana which has been kept by the mother-in-law. Touch the feet and give it to them. After this, after offering water to the moon and eating food, break the fast.

Not only this, after Diwali the garland worn on this fast should be removed from the neck of Ahoi on an auspicious day and enjoy it with jaggery and sprinkle it with water and keep the head bowed. Take blessings by touching the feet of mother-in-law by applying roli tilak.

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