वृंदावन में एक भक्त रहते थे जो स्वभाव से बहुत ही भोले थे। उनमे छल, कपट, चालाकी बिलकुल नहीं थी। बचपन से ही वे वृंदावन में रहते थे। श्रीकृष्ण स्वरुप में उनकी अनन्य निष्ठा थी और वे भगवान् को अपना सखा मानते थे। बहुत शुद्ध आत्मा वाले थे, जो मन में आता है, वही भगवान से बोल देते है।
एक दिन भोले भक्त जी को कुछ लोग “श्री जगन्नाथ पुरी” में भगवान् के दर्शन करने ले गए। पुराने दिनों में बहुत भीड़ नहीं होती थी। अतः वे सब लोग श्री जगन्नाथ भगवान् के बहुत पास दर्शन करने गए।
भोले भक्त जी ने श्री जगन्नाथजी का स्वरुप कभी देखा नहीं था। उसे जगन्नाथजी का स्वरूप बड़ा अटपटा लगा। उसने पूछा – ये कौन से भगवान् हैं, ऐसे डरावने क्यों लग रहे हैं ?
सब पण्डा पूजारी लोग कहने लगे, ये भगवान् श्रीकृष्ण ही है, प्रेम भाव में इनकी ऐसी दशा हो गयी है। जैसे ही उसने सुना वो जोर जोर से रोने लग गया और ऊपर जहाँ भगवान् विराजमान हैं वहाँ जाकर चढ़ गया। सब पण्डा पुजारी देखकर भागे और उससे कहने लगे कि नीचे उतरो परन्तु वह नीचे नहीं उतरा उसने भगवान् को आलिंगन देकर कहा, “अरे कन्हैया ! ये क्या हालात बना रखी है तूने ? ये चेहरा कैसे फूल गया है तेरा, तेरे पेट की क्या हालत हो गयी है। यहाँ तेरे खाने पीने का ध्यान नहीं रखा जाता क्या ? मैं प्रार्थना करता हूँ, तू मेरे साथ अपने ब्रज में वापस चल। मै दूध, दही, माखन खिलाकर तुझे बढ़िया पहले जैसा बना दूँगा, सब ठीक हो जायेगा तू चल।”
पण्डा पुजारी उन भक्त जी को नीचे उतारने का प्रयास करने लगे, कुछ तो नीचे से पीटने भी लगे परन्तु वह रो-रो कर बार-बार यही कह रहा था कि कन्हैया, तू मेरे साथ ब्रज में चल, मै तेरा अच्छी तरह ख्याल करूँगा। तेरी ऐसी हालत मुझसे देखी नहीं जा रही।
अब वहाँ गड़बड़ मच गयी तो भगवान् ने अपने माधुर्य श्रीकृष्ण रूप के उसे दर्शन करवाये और कहा, भक्तों के प्रेम में बँध कर मैंने कई अलग-अलग रूप धारण किये हैं, तुम चिंता मत करो। जो जिस रूप में मुझे प्रेम करता है मेरा दर्शन उसे उसी रूप में होता है, मै तो सर्वत्र विराजमान हूँ।
उसे श्री जगन्नाथजी ने समझा बुझाकर आलिंगन वरदान किया और आशीर्वाद देकर वृंदावन वापस भेज दिया। इस लीला से स्पष्ट है कि जिसमे छल कपट नहीं है। जो शुद्ध हृदय वाला भोला भक्त है, उसे भगवान् सहज मिल जाते हैं।
All the panda worshipers started saying, this is Lord Shri Krishna, they have become in such a state of love. As soon as he heard it, he started crying loudly and went upstairs to the place where the Lord is seated. All the pandas ran after seeing the priest and started telling him to get down but he did not come down, he hugged the Lord and said, “Oh Kanhaiya! What is the situation you have created? How has your face swollen, what is the condition of your stomach.” Are you not taking care of your food and drink here? I pray, you come back to your Braj with me. I will make you like before by feeding milk, curd, butter, everything will be fine, you walk.” The panda priest started trying to bring down those devotees, some even started beating them from below, but he was crying repeatedly saying that Kanhaiya, you come with me to Braj, I will take good care of you. I can’t see your condition like this. Now there was a mess, so the Lord showed him His melodious form of Shri Krishna and said, I have taken many different forms in the love of the devotees, don’t you worry. The one who loves me sees me in that form, I am everywhere. Shri Jagannathji understood and extinguished him and blessed him with a hug and sent him back to Vrindavan with his blessings. It is clear from this Leela that there is no deceit and deceit. One who is a gullible devotee with a pure heart finds the Lord easily.