मानस -चिंतन
जब सभी देवता यहाँ तक स्वयं ब्रह्मा और विष्णु जी असमंजस में थे कि वो परब्रह्म परमात्मा मिलेगा कहाँ ? उस समय त्रिभुवन गुरु भगवान शिव ने एक मंत्र दिया –
हरि व्यापक सर्वत्र समाना।
प्रेम ते प्रकट होहिं मैं जाना।।
ईश्वर सर्व जगह सर्व व्यापी है ये बात मैं जानता हूँ सभी ने इस बात का समर्थन भी किया,
इस बात को आधार बना कर ही कौतुकी मुनि नारद जी ने कौतुकी कृपा निधान भगवान को कौतुकी नगर में ही प्रकट कर लिया
मोरें हित हरि सम नहिं कोऊ।
एहि अवसर सहाय सोइ होऊ॥
बहुविधि बिनय कीन्ह तेहि काला।
प्रकटउ प्रभु कौतुकी कृपाला।।
अब विस्मय इस बात का है कि भगवान शंकर की बात याद है उस नारद के साथ कितना बड़ा कौतुक हो गया कारण? कारण बस इतना सा है कि नारद जी ने इस बात को तो मान लिया लेकिन एक बात भगवान शंकर बिनती करके कह रहे थे नारद जी!उसे नारद जी नहीं माना
बार बार बिनवउँ मुनि तोही।
जिमि यह कथा सुनायहु मोही॥
तिमि जनि हरिहि सुनावहु कबहूँ।
चलेहुँ प्रसंग दुराएहु तबहूँ॥
भगवान शिव ने प्रार्थना की थी फिर भी नारद जी अनसुना कर दिया नहीं माने परिणाम उनके साथ कौतुक हो गया।
यहीं हम लोगों के साथ होता है हम संतो/गुरुओं की बात अपने स्वार्थ के हिसाब से मानते है परिणाम स्वरूप उसका जो वास्तविक फल होता है वो हमें मिल नहीं पाता है
इसलिए ही कहा गया है –
मातु पिता गुरु प्रभु की बानी।
बिनहि विचार करिए शुभ जानी।।
सादर जय सियाराम