एक जुलाहा और एक ब्राह्मण की आपस में गहरी मित्रता थी। दोनों वैष्णव थे। और आपसी बैठक में केवल हरि कथा हरि गुणगान करते। कारण भी ऐसा था जिससे आपसी प्रीति और श्री हरि के प्रेम में वृद्धि बढ़ने लगी। इन दोनों को श्री जगन्नाथ जी में प्रगाढ़ निष्ठा थी।
एक बार ब्राह्मण ने जुलाहे से कहा कि भैया मैं तो पुरी धाम जगन्नाथ जी के दर्शन के लिए जा रहा हूँ। यदि तुम भी चलो तो यात्रा का आनंद बढ़ जाएगा। जुलाहे ने विचार किया की मैं तो शूद्र हूँ, यदि भगवान् के किसी सेवक से स्पर्श हो गया तो अपराध बन जायेगा। वैसे भी शुद्रों का मंदिर में प्रवेश वर्जित है। जुलाहे ने कहा कि भैया आप जानें से पहले मुझसे मिलके जाना। ब्राह्मण ने कहा कि वह सातवें दिन जायेगा।
सातवें दिन ब्राह्मण जुलाहे से मिलने आया। तो जुलाहे ने एक टोकरी आम ब्राह्मण को दिए, और कहा भैया मैं तो शूद्र हूँ। मेरा मंदिर में प्रवेश उचित नहीं है। आम भी मेरे है। उनका भी मंदिर में प्रवेश उचित नहीं है। अतः तुम सिंह द्वार पर खड़े होकर कहना ठाकुर ये जुलाहा के आम हैं। खाना हो तो खाओ नहीं तो फेंक दो। ब्राह्मण सिंह द्वार के पास जाकर एक आम उठाया और बोला कि ठाकुर ये जुलाहा के आम हैं। खाना हो तो खाओ नहीं तो फेंक दो ; आम गायब हो गया। दूसरा आम लेकर फिर यही कहा, वह आम भी गायब हो गया। यह क्रिया ब्राह्मण दोहराता गया आम भी गायब होते गए। सैनिकों ने उसकी क्रिया देख कर उसे बंदी बनाकर राजा के पास ले आये। राजा ने उसका अपराध पूछा। सैनिको ने बताया कि यह जादू से आम गायब करके रास्ता जाम कर रहा था। राजा ने ब्राह्मण से सच्चाई पूछी। तो ब्राह्मण ने मित्र जुलाहे की सारी बात बता दी।
राजा ने आदेश दिया कि मुख्य पुजारी जी को सारी बात बताई जाय तब न्याय होगा। सेवकों ने पुजारी जी को सारी बात बता कर राजदरबार में उपस्थिति के लिए प्रार्थना की, पुजारी जी बोले ठाकुरजी के कपाट खोल कर आता हूँ। पुजारी जी ने जैसे ही मंदिर के कपाट खोले तो देखा एक तरफ आम की गुठली और दूसरी तरफ आम के छिलके पड़े थे।
A weaver and a Brahmin were close friends. Both were Vaishnavas. And in the mutual meeting only Hari Katha would glorify Hari. The reason was also such that mutual Preeti and Shri Hari’s love started increasing. Both of them had deep loyalty to Shri Jagannath ji. Once the Brahmin told the weaver that brother, I am going to Puri Dham for the darshan of Jagannath ji. If you also go, the joy of the journey will increase. The weaver thought that I am a Shudra, if I touch any servant of the Lord, it will become a crime. Anyway, entry of Shudras is prohibited in the temple. The weaver said that brother, go to meet me before you know. The Brahmin said that he would go on the seventh day. On the seventh day the Brahmin came to meet the weaver. So the weaver gave a basket of mangoes to the Brahmin, and said brother, I am a Shudra. It is not proper for me to enter the temple. Mango is mine too. They are also not allowed to enter the temple. So you stand at the lion’s door and say Thakur, these are weaver’s mangoes. If you want to eat then eat it otherwise throw it away. The Brahmin Singh went to the door and picked up a mango and said that Thakur these are weaver’s mangoes. If you want to eat then eat it otherwise throw it away. Mango disappeared. Taking another mango and said the same thing again, that mango also disappeared. The Brahmin kept repeating this action, the mangoes also disappeared. Seeing his action, the soldiers took him captive and brought him to the king. The king asked his crime. The soldiers told that it was blocking the way by missing mangoes by magic. The king asked the Brahmin the truth. So the brahmin told everything about the friend weaver. The king ordered that the chief priest should be told everything, then justice would be done. After telling the whole thing to the priest, the servants prayed for his presence in the court, the priest said, I come after opening the doors of Thakurji. As soon as the priest opened the doors of the temple, he saw mango kernels on one side and mango peels on the other side.