कर भला हो भला

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एक माँ थी उसका एक बेटा था। माँ-बेटे बड़े गरीब थे। एक दिन माँ ने बेटे से कहा – बेटा !! यहाँ से बहुत दूर तपोवन में एक दिगम्बर मुनि पधारे हैं वे बड़े सिद्ध पुरुष हैं और महाज्ञानी हैं। तुम उनके पास जाओ और पूछो कि हमारे ये दु:ख के दिन और कब तक चलेंगे। इसका अंत कब होगा।

बेटा घर से चला। पुराने समय की बात है, यातायात की सुविधा नहीं थी। वह पद यात्रा पर था। चलते-चलते सांझ हो गई। गाँव में किसी के घर रात्रि विश्राम करने रुक गया। सम्पन्न परिवार था। सुबह उठकर वह आगे की यात्रा पर चलने लगा तो घर की सेठानी ने पूछा – बेटा कहाँ जाते हो ? उसने अपनी यात्रा का कारण सेठानी को बताया। तो सेठानी ने कहा – बेटा एक बात मुनिराज से मेरी भी पूछ आना कि मेरी यह इकलौती बेटी है, वह बोलती नहीं है। गूंगी है। वह कब तक बोलेगी ? तथा इसका विवाह किससे होगा ? उसने कहा – ठीक है और वह आगे बढ़ गया।

रास्ते में उसने एक और पड़ाव डाला। अबकी बार उसने एक संत की कुटिया में पड़ाव डाला था। विश्राम के पश्चात्‌ जब वह चलने लगा तो उस संत ने भी पूछा – कहाँ जा रहे हो ? उसने संत श्री को भी अपनी यात्रा का कारण बताया। संत ने कहा – बेटा! मेरी भी एक समस्या है, उसे भी पूछ लेना। मेरी समस्या यह है कि मुझे साधना करते हुए 50 साल हो गये। मगर मुझे अभी तक संतत्व का स्वाद नहीं आया। मुझे कब संतत्व का स्वाद आयेगा, मेरा कल्याण कब होगा। बस इतना सा पूछ लेना। युवक ने कहा – ठीक है। और संत को प्रणाम करके आगे चल पड़ा।

युवक ने एक पड़ाव और डाला। अबकी बार का पड़ाव एक किसान के खेत पर था। रात में चर्चा के दौरान किसान ने उससे कहा मेरे खेत के बीच में एक विशाल वृक्ष है। मैं बहुत परिश्रम और मेहनत करता हूँ, लेकिन उस बड़े वृक्ष के आस-पास दूसरे वृक्ष पनपते नहीं हैं। पता नहीं क्या कारण है। किसान ने युवक से कहा – मेरी भी इस समस्या का समाधान कर लेना। युवक ने स्वीकृति में सिर हिला दिया और सुबह आगे बढ़ गया।

अगले दिन वह मुनिराज के चरणों में पहुँच गया। मुनिराज के दर्शन किये। दर्शन कर उसने अपने जीवन को धन्य माना। मुनिराज से प्रार्थना की कि प्रभु! मेरी कुछ समस्याएं हैं, जिनका मैं समाधान चाहता हूँ। आप आज्ञा दें तो श्री चरणों में निवेदन करूं। मुनि ने कहा – ठीक है !! मगर एक बात का विशेष ख्याल रखना कि तीन प्रश्न से ज्यादा मत पूछना। मैं तुम्हारे किन्हीं भी तीन प्रश्नों का ही समाधान दूंगा। इससे ज्यादा का नहीं।
🟨युवक तो बड़े धर्म-संकट में फंस गया। अब क्या करूं,
प्रश्न तो चार हैं. तीन कैसे पूछूं। तीन प्रश्न दूसरों के हैं और एक प्रश्न मेरा खुद का है। अब किसका प्रश्न छोड़ दूं। क्या लड़की का प्रश्न छोड़ दूं ? नहीं, यह तो ठीक नहीं है, यह उसकी जिन्दगी का सवाल है। तो क्या महात्मा के प्रश्न को छोड़ दूं ? यह भी नहीं हो सकता। तो क्या किसान का प्रश्न छोड़ दूं ? नहीं, यह भी ठीक नहीं है। बेचारा खून-पसीना एक करता है, तब भी उसे कुछ भी नहीं मिलता है। अंत में काफी उहापोह के बाद उसने तय किया कि वह खुद का प्रश्न नहीं पूछेगा। उसने अपना प्रश्न छोड़ दिया और शेष तीनों प्रश्नों का समाधान लिया और वापिस अपने घर की ओर चल दिया।

रास्ते में सबसे पहले किसान से मुलाकात हुई। किसान से युवक ने कहा – मुनिराज ने कहा है – कि तुम्हारे खेत में जो विशाल वृक्ष है, उसके नीचे चारों तरफ सोने के कलश दबे हुए हैं। इसी कारण से तुम्हारी मेहनत सफल नहीं होती है। किसान ने वहाँ खोदा तो सचमुच सोने के कलश निकले। किसान ने कहा – बेटा यह धन-सम्पदा तेरे कारण से निकली है। इसलिए इसका मालिक भी तू है। और किसान ने वह सारा धन उस युवक को दे दिया। युवक आगे बढ़ा।

अब संत के आश्रम आया। संत ने पूछा – मेरे प्रश्न का क्या समाधान बताया है। युवक ने कहा – स्वामी जी! माफ करना मुनिराज ने कहा है कि आपने अपनी जटाओं में कोई कीमती मणि छुपा रखी है। जब तक आप उस मणि का मोह नहीं छोड़ेंगे, तब तक आपका कल्याण नहीं होगा। साधु ने कहा – बेटा तू ठीक ही कहता है, सच में मैंने एक मणि अपनी जटाओं में छिपा रखी है, और मुझे हर वक्त इसके खो जाने का, चोरी हो जाने का भय बना रहता है। इसलिए मेरा ध्यान भजन-सुमिरण में भी नहीं लगता। ले अब इसे तू ही ले जा, और साधु ने वह मणि उस युवक को दे दी।

युवक दोनों चीजों को लेकर फिर आगे बढ़ा। अब वह सेठानी के घर पहुँचा। सेठानी दौड़ी-दौड़ी आई और पूछा – बेटा ! बोल क्‍या कहा है मुनिराज ने। युवक ने कहा कि माँ जी मुनिजी ने कहा है कि तुम्हारी बेटी जिसको देखकर ही बोल पड़ेगी, वही इसका पति होगा। अभी सेठानी और युवक की बात चल ही रही थी कि वह लड़की अन्दर से बाहर आई और उस युवक को देखते ही एकदम से बोल पड़ी। सेठानी ने कहा – बेटा आज से तू इसका पति हुआ। मुनिराज की वाणी सच हुई। और उसने अपनी बेटी का विवाह उस युवक से कर दिया।
🟨अब वह युवक धन,मणि और कन्या को साथ लेकर अपने घर पहुँचा। माँ ने पूछा – बेटा तू आ गया। क्या कहा है मुनिश्री ने। कब हमें इन दु:खों से मुक्ति मिलेगी। बेटा ने कहा – माँ मुक्ति मिलेगी नहीं, मुक्ति मिल गई। मुनिराज के दर्शन कर मैं धन्य हो गया। उनके तो दर्शन मात्र से ही जीवन के दु:ख, पीड़ाएं और दर्द खो जाते हैं। माँ ने पूछा – तो क्या मुनिराज ने हमारी समस्याओं का समाधान कर दिया है। बेटे ने कहा – हाँ माँ ! मैंने तो अपनी समस्‍या उनसे पूछी ही नहीं और समाधान भी हो गया। माँ ने पूछा वो कैसे ? बेटे ने कहा -👉माँ मैंने सबकी समस्या को अपनी समस्या समझा तो मेरी समस्या का समाधान स्वत: हो गया। जब दूसरों की समस्या अपनी खुद की समस्या बनने लगती है तो फिर अपनी समस्या कोई समस्या ही नहीं रहती।*
जो दूसरों के लिए सोचता है। ईश्वर स्वयं उसके लिए करतें है।
हम बदलेंगे,युग बदलेगा।



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There was a mother who had a son. Mother and son were very poor. One day the mother said to the son – Son!! Far away from here in Tapovan, a Digambar sage has come, he is a very accomplished man and a great scholar. You go to them and ask how long these days of our sorrow will continue. When will it end?

Son left home. It is a matter of old times, there was no transport facility. He was on a pilgrimage. It was evening while walking. Stopped for night rest at someone’s house in the village. Had a prosperous family. When he woke up in the morning and started walking on the journey ahead, the sister-in-law of the house asked – Son, where do you go? He told Sethani the reason for his visit. So Sethani said – Son, ask Muniraj for one thing that she is my only daughter, she does not speak. Is dumb Till when will she speak? And to whom will he be married? He said – ok and he went ahead.

On the way he made another halt. This time he had camped in a saint’s cottage. When he started walking after rest, that saint also asked – where are you going? He also told Saint Shri the reason for his visit. The saint said – Son! I also have a problem, ask him too. My problem is that I have been doing spiritual practice for 50 years. But I haven’t got the taste of sainthood yet. When will I get the taste of sainthood, when will I be blessed. Just ask. The young man said – it’s okay. And went ahead after saluting the saint.

The young man made one more stop. This time the stop was on a farmer’s farm. During the discussion at night the farmer told him that there is a huge tree in the middle of my field. I work very hard and work hard, but other trees do not grow around that big tree. Don’t know what is the reason. The farmer said to the young man – solve my problem too. The young man nodded in approval and went ahead in the morning.

The next day he reached at the feet of Muniraj. Visited Muniraj. He considered his life blessed by having darshan. Prayed to Muniraj that Lord! I have some problems which I want to solve. If you allow, then I will request at the feet of Shri. Muni said – ok!! But take special care of one thing that do not ask more than three questions. I will give you the solution of any three questions. Not more than this. 🟨 The young man got trapped in a big religious crisis. what to do now There are four questions. How to ask three Three questions are from others and one question is my own. Whose question should I leave now? Should I leave the question of the girl? No, it is not right, it is a question of his life. So should I leave the question of Mahatma? This too cannot be. So should I leave the question of the farmer? No, that’s not right either. The poor man unites with blood and sweat, even then he does not get anything. Finally, after much hesitation, he decided not to ask his own question. He left his question and solved the remaining three questions and went back to his home.

First of all met the farmer on the way. The young man said to the farmer – Muniraj has said – that under the huge tree in your field, gold urns are buried all around it. This is the reason why your hard work does not bear fruit. When the farmer dug there, he really found urns of gold. The farmer said – Son, this wealth has emerged because of you. That’s why you are its owner too. And the farmer gave all that money to that young man. The young man went ahead.

Now came the saint’s ashram. The saint asked – What is the solution to my question? The young man said – Swamiji! Excuse me Muniraj has said that you have hidden some precious gem in your hair. Till you don’t leave the fascination of that gem, you will not be well. The monk said – Son, you are right, really I have hidden a gem in my hair, and I am always in fear of losing it, getting stolen. That’s why I don’t even concentrate on chanting hymns. Take it now you yourself, and the monk gave that gem to that young man.

The young man went ahead with both the things. Now he reached Sethani’s house. Sethani came running and asked – Son! What has Muniraj said? The young man said that Maaji Muniji has said that the one whom your daughter will speak upon seeing, he will be her husband. Right now Sethani and the young man were talking that the girl came out from inside and on seeing the young man she immediately spoke up. Sethani said – Son, from today you are her husband. Muniraj’s words came true. And he married his daughter to that young man. 🟨 Now that young man reached his home with money, gem and girl. Mother asked – Son, have you come? What has Munishree said? When will we get freedom from these sorrows? The son said – Mother, you will not get freedom, you have got freedom. I was blessed after seeing Muniraj. The sorrows, pains and pains of life disappear just by his darshan. Mother asked – So has Muniraj solved our problems. Son said – Yes mother! I didn’t even ask my problem to him and it got resolved. Mother asked how is that? The son said – 👉 Mother, I understood everyone’s problem as my problem, so my problem was solved automatically. When the problem of others starts becoming your own problem, then your problem is not a problem at all.* One who thinks for others. God himself does it for him. We will change, the era will change.

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