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*भोर मंगल आरती होने से पहले असमय, भोग का समय नहीं है। असमय श्री ठाकुर जी को भोग लगाकर संतुष्ट किया।*
दो सूरदास हुए एक तो सूरदास जी श्रीनाथ जी के परम भक्त और एक हुए सूरदास मदन मोहन। बादशाह अकबर के सूबेदार थे। उत्तर प्रदेश में एक स्थान संडिला, वहाँ के सूबेदार मदनमोहन। सूरध्वज वैसे उनका नाम था। भक्त लोग उनको प्यार से सूरदास कहते थे। मदन मोहन जी के परम भक्त। बादशाह के दीवान लेकिन परम भक्त। श्री ठाकुर जी के रूप माधुरी की अनन्य मधुकर।
सतत् श्वास-श्वास से युगल का नाम जपते और बादशाह की नौकरी करते थे। एक बार संडिला के बाजार में गुड़ देखा। अब गुड़ देखते ही मन में आया कि इसका तो श्री ठाकुर जी को भोग लगना चाहिए। अब वृंदावन का जो ठाकुर है ना, वो राग और भोग का ठाकुर है। उसको रिझाने की विधि क्या है?
सुन्दर-सुन्दर भोग और सुन्दर-सुन्दर राग इसी से रीझते हैं। जैसे ही सुन्दर सा वो बड़ा नवीन गुड़ देखा, गुड़ देखते ही सूरदास जी के मन में आया कि ये तो श्री ठाकुर जी की सेवा में उपस्थित हो जाए। कोई मिष्ठान बने, कोई पकवान बने। ठाकुर जी को पाकर कितना सुख होगा। गुड़ बैलगाड़ियों पर लदवाकर वृंदावन भेजने लगे।
किसी ने कहा, जितने दिन में ये गुड़ वृंदावन पहुँचेगा और जितना धन आप इस गुड़ को वृंदावन पहुँचाने में खर्च करेंगे, उतने में तो वृंदावन में ही इससे 20 गुना अधिक गुड़ खरीद लिया जाएगा। इतना समय लगेगा। इतना धन आप व्यय करेंगे। इससे 20 गुना अधिक गुड़ खरीदा जा सकता है उस धन से, वहीं वृंदावन से।
सूरध्वज जी ने कहा,
प्रेमी की दुनिया अलग होती है और फिर ये प्रेम का पथ है। भगवद् रसिक, रसिक की बातें, रसिक बना कोई समझ सके ना। सूरध्वज जी ने कहा कि, तुम नहीं समझोगे कि इस गुड़ की महिमा क्या है? ये तो केवल रसिक शेखर श्याम सुन्दर जानते हैं। उसी समय बैल गाड़ियों में भरवाकर गुड़ भिजवाया। 20 दिन में वो गुड़ वहाँ संडिला से वृंदावन पहुँचा और जब वृंदावन पहुंचा तो श्री ठाकुर जी की शयन आरती हो चुकी थी। श्री ठाकुर जी का शयन हो चुका था।
श्री ठाकुर जी ने मन में विचार किया भाई सुबह तक तो हमसे प्रतीक्षा होगी नहीं। गुड़ पहुँचा है तो भोग अभी लगना चाहिए। क्या किया जाए? शयन हो चुका, ठाकुर को पौढ़ा दिया गया था शैय्या पर और यदि ये गुड़ पुजारी के हाथ लग गया तो वो तो इसे भण्डार में धरवा देगा। वो क्या जाने इस गुड़ की महिमा क्या है? उसके लिए तो क्या आया है? गुड़ आया है और ऐसा गुड़ भण्डार में पहले रखा है।
वो विचार करेगा जो वस्तु पहले रखी है, पहले भोग में उसे खर्च करना चाहिए। इसे बाद में खर्च करेंगे। श्री ठाकुर जी ने स्वप्न में पुजारी को आदेश दिया। सुनो अभी सूरध्वज के यहाँ से गुड़ आया है, पुआ बनाओ और हमें भोग लगाओ। पुजारी ने कहा कि आपकी सज्जा के पास इतना भोग रखा है। जाड़े के दिन अब आधी रात को किस प्रकार मैं रसोइये को बुलाऊँ, फिर पुआ बनवाऊँ और आपको भोग लगाऊँ।
यदि आपको पुआ पाने की इच्छा ही है तो सुबह तक प्रतीक्षा कर लीजिए। ठाकुर जी ने पुजारी से कहा तू बड़ा मूर्ख है। तुझे दिखाई नहीं पड़ता इस गुड़ की राह देखते-देखते मेरी आँखे सूज गई 20 दिन से मैं प्रतीक्षा कर रहा हूँ कि कब गुड़ आए और मैं भोग लगाऊँ और तू मुझे प्रतीक्षा करने के लिए कहता है।
मनमोहन की मनभावन वाणी सुनकर पुजारी का हृदय विचलित हो गया। दौड़कर गया, स्नान किया, रसोई में जाकर सब व्यवस्था कराई और भोर मंगल आरती होने से पहले असमय, भोग का समय नहीं है। असमय श्री ठाकुर जी को भोग लगाकर संतुष्ट किया।
꧁ श्री Զเधॆ__Զเधॆ꧂
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*।।जय जय श्री राम।।*
*।।हर हर महादेव।।*