शादी के लिऐ देखने गई मां ने समधन से कहा, सुयश मेरा एकलौता बेटा है, जैसा नाम वैसा गुण । जब जब मैं दूसरा बच्चा न होने के लिए उदास होती तो विशाल कहते, ईश्वर ने दस बेटों के गुण दिए है हमारे सुयश में । लेकिन मेरा मन एक बेटी की चाहत में हमेशा कलपता रहा । सोचती थी बहू को ही बेटी का प्यार दूँगी। अपनी बहू की जो छवि मैंने सोची थी स्निग्धा उसकी बिल्कुल विपरीत थी। उसकी माँ ने ही हँसते हुए कहा, अपने नाम के विपरीत है स्निग्धा ! लड़कों की तरह वेश भूषा, हँसना, बोलना,अक्खड़पना भरा हुआ था उसमें, जाने सुयश को क्या दिखा इसमें ।
जीन्स और टी शर्ट में आकर उसने हैलो आंटी कहा। मैंने भी प्रत्युत्तर में हैलो ही कहा। तभी उसकी माँ बोली, आंटी के पैर छुओ बेटा। उसको असहज देख कर मैंने कह दिया, रहने दो बेटा, उसकी कोई जरूरत नहीं है। बातों से एकदम बिंदास, खिलखिलाकर हँसने वाली, अपनी माँ से हर बात पर तर्क वितर्क करती “स्निग्धा” मेरे बेटे “सुयश” की पसंद ही नहीं प्यार भी थी ।
शादी की रस्मों के बाद स्निग्धा हमारे घर आ गयी, और सुयश स्निग्धा अपना हनीमून मना कर वापस भी आ गए ।
अगले दिन से दोनों को आफिस जाना था। सुबह की नींद मुझे बहुत प्यारी थी, सोचती थी बहू आ जायेगी तो उसके हाथों की चाय पीकर अपने सुबह की शुरुआत करूँगी। लेकिन स्निग्धा को देख कर मैंने अपना ये सपना भुला दिया और सुबह 6 बजे का अलार्म लगा कर सो गई ।
पूजा की घंटियाँ सुन मेरी नींद खुली, अभी छः भी नहीं बजे थे। बाहर निकल कर देखा, स्निग्धा आरती की थाल लिए, पूरे घर में घूम रही थी। मुझे लगा मैं सपना देख रही हूँ, तब तक वो पास आकर बोली मम्मा प्रसाद लीजिये ।
फ्रेश होकर बाथरूम से निकली तो मैडम चाय के दो कप लिए हाजिर थीं। चाय पीने के बाद बोली मम्मा मुझे नाश्ते में बस सैंडविच और चीला बनाना ही आता है। आप लोग नाश्ते में क्या खाते हैं? पीछे से सुयश आकर बोला, जो भी तुम बनाओ हम वही खायेंगे।
सुयश ने मेरा हैरान चेहरा देख कर पूछा,” क्या हुआ माँ, चाय पसन्द नहीं आयी !
नहीं रे इतनी अच्छी चाय तो खुद मैंने ही नहीं बनाई कभी !”
फिर मैंने स्निग्धा से कहा,”तुम्हें ऑफिस जाना है बेटा, तैयार हो जाओ। अभी मेड आ रही होगी मैं उसके साथ मिलकर नाश्ता बना लूँगी।”
अरे नहीं मम्मा नाश्ता तो मैं ही बनाऊँगी, फिर तो मैं पूरा दिन आफिस में रहूँगी तो घर पर सब आपको ही देखना पड़ेगा।
स्निग्धा कभी कोई मौका नहीं देती थी कमी निकालने का, साडी बहुत कम पहनती है, वो हर रोज हमारे पैर भी नहीं छूती, उसकी आवाज भी धीमी नहीं है, उसे घर के काम भी नहीं आते, रोटी तो भारत के नक्शे जैसी बनाती है,और जब गुस्साती है तो….उफ्फ पूछिये ही मत ! वो एक आदर्श बहू की छवि से बिल्कुल जुदा है लेकिन ये कमी दुर हो सकती है।
खुशियों को भी कभी-कभी नजर लग जाती है ! सब कुछ बहुत अच्छा चल रहा था कि विशाल को हार्ट अटैक आ गया, मैं उन्हें आई सी यू के बाहर से देख घंटों रोती रहती, उस समय मेरी स्निग्धा ने मुझे सास से बेटी बना दिया। मुझे अपनी बाहों में भरकर चुप कराती, जबरदस्ती अपने हाथों से खाना खिलाती। हर वक़्त यही कहती पापा बिल्कुल ठीक हो जायेंगे। हॉस्पिटल के बिल, दवाइयों का खर्चा इस तरह से देती जैसे उसके अपने पापा का इलाज हो रहा हो ।
सुयश और मेरे सामने मजबूत चट्टान बनी मेरी स्निग्धा वास्तव में बहुत कोमल थी। घर आने के बाद भी विशाल का ख्याल हम दोनों से ज्यादा रखती । अपनी नई नवेली शादी के बावजूद देर रात तक हमारे साथ बैठी रहती । मासूम गुड़िया सी बहू का सपना देखने वाली सास को एक मजबूत बेटी मिल गयी थी। जिसका चोला पाश्चात्य था पर दिल एकदम देशी था ।
आज मेरे जन्मदिन पर सुयश ने कहा,”माँ, तैयार हो जाइए,आपकी पसन्द की साड़ी खरीदने चलते हैं। “मुझे कुछ नहीं चाहिए सुयश ! तूने स्निग्धा के रूप में मेरी जिंदगी का सबसे बड़ा तोहफा दे दिया ! मेरी भीगी आँखे पोछ कर सुयश ने पूछा, वैसे है कहाँ आपकी दबंग बहू? जिसने अपनी दबंगई से आपका भी दिल जीत लिया ! तब तक स्निग्धा ने मेरे गले में अपनी बाहें डाल कर कहा, हैप्पी बर्थडे मम्मा और एक पैकेट पकड़ाते हुए कहा, ये दुनिया की बेस्ट मम्मा के लिए, पैकेट खोल कर देखा, तो उसमें कांजीवरम साड़ी थी, बिल्कुल वैसी ही जैसी मैं हमेशा से लेना चाहती थी ! मेरे आश्चर्य चकित चेहरे को देखकर बोली, वो जब आप रेखा की तस्वीर गूगल पर सर्च करके घंटों देखती थीं तभी मुझे समझ आ गया कि आप उनकी तस्वीरों में देखती क्या हैं ! अपनी जोरदार हँसी के साथ उसने फिर से मुझे गले लगा लिया। खुशी में बहते आँसुओं को पोछकर उसने कहा, “एक माँ के दिल की बात एक बेटी तो समझ ही जाती है ना मम्मा”! हाँ मेरी स्निग्धा बेटी
*विशाल जी भी बोले आदर्शों नियमों पर पड़ गयी भारी, सबसे प्यारी बहू हमारी
The mother who went to see him for marriage said to Samdhan, Suyash is my only son, like the name like the quality. Whenever I was sad for not having another child, Vishal would say, God has given the qualities of ten sons in our Suyash. But my mind always wandered in the desire of a daughter. I used to think that I will give my daughter’s love only to my daughter-in-law. Snigdha was the exact opposite of the image I had imagined of my daughter-in-law. His mother laughingly said, Snigdha is opposite to her name! Dressing like boys, laughing, talking, arrogance was full in her, don’t know what Suyyash saw in her.
Coming in jeans and T-shirt, he said hello aunty. I also said hello in response. That’s why his mother said, touch the feet of the aunt, son. Seeing him uncomfortable, I said, leave it son, there is no need for him. “Snigdha” was not only liked by my son “Suyash” but also loved. Snigdha came to our house after the wedding rituals, and Suyash Snigdha also came back after celebrating his honeymoon. From the next day both had to go to office. I used to love my morning sleep very much, I used to think that if my daughter-in-law comes, I will start my morning by drinking tea from her hands. But after seeing Snigdha, I forgot my dream and went to sleep setting an alarm at 6 am. I woke up hearing the worship bells, it was not even six o’clock yet. Went out and saw, Snigdha was roaming around the whole house carrying the Aarti plate. I thought I was dreaming, till then she came near and said, “Mama, take the prasad”. When she left the bathroom after getting fresh, madam was present with two cups of tea. After drinking tea, Mama said, I only know how to make sandwich and cheela for breakfast. What do you guys eat for breakfast? Suyyash came from behind and said, we will eat whatever you make. Suyash looked at my surprised face and asked, “What’s the matter mom, I didn’t like the tea! No, I myself have never made such good tea! Then I said to Snigdha,” You have to go to office son, get ready. The med will be coming now, I will cook breakfast with her.” Oh no mamma, I will cook breakfast, then I will be in the office for the whole day, so you will have to look after everything at home.
Snigdha never gives any chance to find fault, she wears very few saris, she doesn’t even touch our feet everyday, her voice is not even soft, she doesn’t even do household chores, she cooks bread like a map of India, And when she gets angry….oops don’t even ask! She is completely different from the image of an ideal daughter-in-law but this shortcoming can be overcome. Sometimes even happiness gets overlooked! Everything was going great that Vishal had a heart attack, I used to cry for hours watching him from outside the ICU, at that time my Snigdha made me a daughter from mother-in-law. She used to keep me silent by filling me in her arms, forcefully feeding me with her hands. Every time she used to say that father will be completely fine. She used to pay for the hospital bills and medicines as if her own father was being treated.
In front of Suyesh and me, my snigdha, which became a strong rock, was actually very soft. Even after coming home, she used to take care of Vishal more than both of us. Despite her newly married marriage, she used to sit with us till late night. The mother-in-law who dreamed of an innocent doll-like daughter-in-law had got a strong daughter. Whose dress was western but the heart was very native. Today on my birthday, Suyash said, “Mother, get ready, let’s go buy a saree of your choice.” I don’t want anything, Suyash! You have given me the biggest gift of my life in the form of Snigdha! Wiping my wet eyes, Suyash asked, by the way, where is your domineering daughter-in-law? The one who won your heart with his bullying! Till then Snigdha put her arms around my neck and said, Happy birthday mumma and holding a packet said, this is for the best mumma in the world, opened the packet and saw Kanjeevaram saree in it, exactly the same as I always take Wanted! Seeing my surprised face, she said, when you used to search for Rekha’s picture on Google and watch it for hours, only then I understood what you see in her pictures! He hugged me again with his loud laugh. Wiping the tears flowing in happiness, she said, “A daughter understands the heart of a mother, doesn’t she?”! Yes, my sweet daughter
* Vishal ji also said that ideals were heavy on rules, our most beloved daughter-in-law