ओ तुने क्युं लगायी इती देर अरे ओ बांवरिया

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एक व्यक्ति हर रोज मंगला दर्शन अपने नजदीकी मंदिर में करता है और फिर अपने नित्य जीवन कार्य में लग जाता है। कहीं वर्ष तक यह नियम होता रहा।

एक दिन ऐसे ही वह मंदिर पहुँचा तो मंदिर के श्री प्रभु के द्वार बंद पाये। वह आकुल व्याकुल हो गया। अरे ऐसा कैसे हो सकता है? उसके हृदय को खेद पहुंचा। वह नजदीकी एक जगह पर बैठ गया। उनकी आँखों से आँसू बहने लगे, और आंतरिक पुकार उठी।
” हे बांके बिहारी जी , हे गिर्वरधारी जी।
जाए छुपे हो कहाँ, हमरी बारी जी…।।”

इतने में कहीं से पुकार आयी ओ तुने कहाँ लगायी इती देर अरे ओ बांवरिया! बांवरिया! बांवरिया मेरे प्रिय प्यारा!

वह आसपास देखने लगा, कौन पुकारता है? पर न कोई आस और न कोई पास। वह इधर उधर देखने लगा, पर कोई न था। वह बैचेन हो कर बेहोश हो गया।

काफी देर हुई, उनके पैर को जल की एक धारा छूने लगी, और वह होश में आ गया। वह सोचने लगा यह जल आया कहां से?

धीरे धीरे उठ कर वह जल के स्त्रोत को ढूंढने लगा तो देखा कि वह स्त्रोत श्री प्रभु के द्वार से आता है।
इतने में फिर से आवाज आई

ओ तुने क्युं लगायी इती देर अरे ओ बांवरिया!
वह सोच में पड गया! यह क्या! यह कौन पुकार रहा है? यहाँ तो कोई नही है? तो यह पुकार कैसी?
वह फूट फूट कर रोने लगा।

कहने लगा – प्रभु! ओ प्रभु! और फिर से बेहोश हो गया।
बेहोशी में उन्होंने श्री ठाकुर जी के दर्शन पाये और उनकी रूप माधुरी को निहारकर आनंद पाने लगा। उनके चेहरे की आभा तेज होने लगी।

इतने में मंदिर में आरती का शंख बजा।आये हूऐ दर्शनार्थी ने उन्हें जगाया।

इतने में उनकी नजर श्रीप्रभु के नयनों पर पहुंची, और वह स्थिर हो गया। श्रीप्रभु के नयनों में आंसू! ओहहह! वह अति गहराई में जा पहुँचा।।।।

ओहहह! जो जल मुझे स्पर्श किया था वह श्रीप्रभु के अश्रु! ….. नहीं नहीं! मुझसे यह क्या हो गया? श्रीप्रभु को कष्ट! वह बहुत रोया और बार बार क्षमा माँगने लगा।

श्रीप्रभु ने मुस्कराते दर्शन से कहा, तुने कयुं कर दी देर? अरे अब पल की भी न करना देर ओ मेरे बांवरिया!

” देखो अगर हम मंदिर जाके भी एक पत्थर की मूर्ति को प्रणाम कर आयें या पंडित जी को मोटी धनराशी दे आयें उससे प्रभु प्रसन्न नहीं होंगे। मेरे ठाकुर तो सम्बन्ध मानने से प्रसन्न होते हैं।
जैसे कर्मा बाई ने माना ,
जैसे धन्ना जाट ने माना…”
जैसे मीरा ने बनाया
भाव के भूखे हैं भगवान्.

  

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Every day a person does Mangala Darshan in his nearest temple and then gets engaged in his daily life work. This rule continued for some years.

One day when he reached the temple like this, he found the doors of Shri Prabhu of the temple closed. He became distraught. Hey how can this happen? His heart felt sorry. He sat down at a nearby place. Tears began to flow from his eyes, and an inner cry arose. “O Banke Bihari ji, O Girvardhari ji. Go where are you hiding, our turn ji….”

Itne me kahin se pukar aayi o tune kahan lagayi iti der are o banwaria! Banwariya! Banwaria my dear sweetheart!

He looked around, who is calling? But no hope and no pass. He started looking here and there, but there was no one there. He became restless and fainted.

After a long time, a stream of water started touching his feet, and he came to his senses. He started thinking where did this water come from?

Slowly getting up and looking for the source of water, he saw that the source comes from the door of Shri Prabhu. Then the sound came again

Said – Lord! Oh Lord! And fainted again. In unconsciousness, he found Shri Thakur ji’s darshan and began to enjoy seeing Madhuri in his form. The glow on his face started brightening.

In this, the conch shell of Aarti blew in the temple. The visitors who had come woke them up.

In this his eyes reached the eyes of Sriprabhu, and he became stable. Tears in the eyes of Sriprabhu! Ohhhh! He reached very deep.

Ohhhh! The water that touched me was the tears of Shri Prabhu! ….. No. No! What happened to me? Shriprabhu’s suffering! He cried a lot and started apologizing again and again.

Shri Prabhu said with a smiling darshan, why did you delay? Oh now don’t delay even for a moment, O my Bawariya!

“Look, the Lord will not be pleased if we go to the temple and bow down to a stone idol or give a huge amount of money to Panditji. My Thakur is happy to have a relationship. As Karma Bai believed, Like Dhanna Jatt believed…” as Meera made God is hungry for emotion.

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