परमात्मा के द्वारा होने लगे

एक संत के बाबत मैंने सुनी है एक कहानी। यूरोप में एक फकीर हुआ, उसके बाबत बहुत सी कहानियां हैं, अगस्तीन के बाबत।

उसके संबंध में एक कहानी है कि उसने इतनी प्रार्थना की, इतना प्रेम किया, इतनी साधना की कि कथा कहती है कि देवताओं ने उससे पूछा कि तुम कोई वरदान मांग लो!

तो उसने कहा, पागलो, वरदान के लिए तो मैंने कुछ भी किया नहीं।

पर वे नहीं माने, उन्होंने कहा, कुछ मांग ही लो, क्योंकि भगवान चाहता है कि तुम्हें कुछ मिले।
जब वह किसी तरह राजी नहीं हुआ, तो उन्होंने कहा, कुछ ऐसा मांग लो जिससे दूसरों को फायदा हो।

उसने कहा, वह भी नहीं मांगूंगा, क्योंकि मेरे द्वारा दूसरों का फायदा हो रहा है, यह खयाल भी अहंकार ला सकता है। वह मैं नहीं मांगता।

लेकिन देवता पीछे पड़ गए तो उसने कहा, फिर कुछ ऐसा करो कि मेरे द्वारा फायदा भी हो तो भी मुझे पता न चले कि मेरे द्वारा हुआ है। तो उन्होंने कहा, क्या करें? तो उसने कहा, ऐसा कर दो कि मैं जहां से निकलूं, मेरी छाया जो पीछे पड़ती है, उससे किसी का कुछ लाभ हो सके तो हो जाए। अगर मेरी छाया किसी बीमार पर पड़े तो वह स्वस्थ हो जाए; अगर किसी कुम्हलाए हुए पौधे पर पड़े तो वह हरा हो जाए; लेकिन मुझे पता न चले कि मेरे द्वारा हुआ। क्योंकि मेरे द्वारा मैं कुछ भी नहीं चाहता, मैं सब परमात्मा के द्वारा चाहता हूं।

तो कहानी है कि अगस्तीन की छाया को वरदान मिल गया। अगस्तीन की छाया जिस जगह पड़ जाती, वहां फूल खिल जाते। अगस्तीन की छाया बीमार पर पड़ जाती, वह स्वस्थ हो जाता। अगस्तीन की छाया अंधे पर पड़ जाती, उसकी आंख आ जाती। लेकिन अगस्तीन को कभी पता नहीं चला। क्योंकि वह तो आगे बढ़ता जाता, छाया पीछे से पड़ती। और किसी को खयाल में भी न आता कि इसकी छाया से यह हुआ होगा।

यह तो कहानी है, लेकिन अगस्तीन ने बात ठीक मांगी कि कुछ ऐसा करो कि मुझे यह भी पता न चले कि मेरे द्वारा हो रहा है।

और धार्मिक व्यक्ति से जो भी होता है, उसे पता नहीं चलता कि उसके द्वारा हो रहा है।

धार्मिक व्यक्ति तो वह व्यक्ति है जो मिट गया।

अब जो भी हो रहा है, परमात्मा के द्वारा हो रहा है।

न वह सेवक है, न वह साधु है, वह कोई भी नहीं है, अब वह है ही नहीं।

वह सिर्फ एक द्वार है, जिस द्वार से जीवन की रश्मियां बाहर आती हैं और लोगों तक फैल जाती हैं।

तो वैसा द्वार बनो, समाज-वमाज सेवा की फिकर छोड़ो।

ऐसा धार्मिक द्वार बनना चाहिए। उससे सेवा अपने आप होती है।
ओशो

Share on whatsapp
Share on facebook
Share on twitter
Share on pinterest
Share on telegram
Share on email

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *