मेरे भगवान नाथ मेरे स्वामी हे प्राण नाथ क्या मिलन भी होगा या ये जीवन ऐसे ही बह जाऐगा। हे प्रभु आज दिल में तङफ की लहर दौड़ जाती है कि हे नाथ अभी तक मेरे स्वामी आये कयों नहीं। मेरे भगवान मै जैसी भी हूं हूं तो तुम्हारी ही। हे परमात्मा जी तुम नहीं अपनाओगे तो मुझे कोन अपनायेगा। मेरे मालिक ऐसे तो तुम मुझे हर स्पर्श में कहते मैं हूँ, मेरे सर्वेश्वर दिल तुम मे पुरणतः समाना चाहता है। मेरे परमेशवर स्वामी भगवान् मै तुम्हे कभी प्राण प्रिय कहती मेरे मालिक कहती मेरे प्रभु भगवान कहती हे परमात्मा जी तुम मेरे भीतर समाए हुए हो बाहर कण कण में तुम्हारी झलक पाती पर तुम्हें दिल में बिठा कर मै खो जाऊं।
स्वामी भगवान नाथ के प्रेम में अनुभुति, विस्वास, धर्य, लग्न, त्याग और तृप्ति है। प्रेम प्राणी परमात्मा से करता है। संसार में जो प्रेम दिखाई देता है वह मोह का रूप है ।भक्त जब भगवान के प्रेम में डुबा हुआ कहता है कि हे प्रभु प्राण नाथ मै तुम्हारे किसी काबिल तो नहीं हूँ। फिर भी तुम्हारे दर पर आ गया हूँ। मेरे स्वामी मेरे भगवान नाथ तुम्ही मेरे मालिक हो ।तुम्हे छोड़ प्रभु मै जाऊं कहाँ। हे हरि इस दिल में नैनो में तुम्ही समाए हुए हो ।मैं तो मैं हूँ ही नहीं प्रभु प्राण नाथ तुम बहुत तङफाते हो अपने पन अहसास करा छीप जाते हो फिर से प्रकट होते हो दिल की क्या बताऊँ नाथ दिल स्वामी के चरणों में समर्पित है ।
एक भक्त जब सच्चे मन से भगवान की भक्ति करता है। तब वह स्वयं मिट जाना चाहता है। सांस सांस से श्री राम श्री राम श्री राम श्री राम राम राम राम पुकारते हुए अपने आप को भुल जाता है।भक्त भगवान मे हर क्षण समा जाना चाहता है ।एक समय के बाद भक्त स्वयं है ही नहीं सब कुछ प्रभु प्राण नाथ है।इन सब प्रार्थना में भक्त शरीर रूप से गौण है। जय श्री राम
अनीता गर्ग
One Response
It’s hard to find educated people on this topic, but you seem like you know what you’re talking about! Thanks