*हे नाथ! पुत्र, मित्र, गृह, आदि से घिरे हुए संसार-सागर से आप ही मेरी रक्षा करते हैं। आप ही शरणागत जनों का भय भंजन करते हैैं । यह मैं, मेरा, यह देह और इहलोक-परलोक में जो कुछ भी मेरा है, आज वह सब मैं आपके श्री चरणों में समर्पण करता हूं। मैं अपराधों का घर हूँ। मेरे अन्य कोई साधन नही है, मेरी कोई गति नही है। हे नाथ! आप ही मेरी गति हैं। श्रीराधिका रमण ! श्री कृष्ण कान्ते ! मैं तन, मन, वचन, से आपका ही हूं , आप युगल सरकार ही मेरी अनन्य गति हैं। मैं आपके शरण हूँ, आपके चरणों मे पड़ा हूँ, आप करुणा की खान हैं। मुझ दुष्ट अपराधी पर कृपा करके, मुझे अपना दास बना लीजिए।*
* Hey Nath! You protect me from the world-ocean surrounded by sons, friends, homes, etc. You destroy the fear of the refugees. This I, mine, this body and whatever is mine in the hereafter, today I surrender all at your feet. I am the house of crimes. I have no other means, I have no speed. Oh Nath! You are my speed. Sri Radhika Raman! Shri Krishna Kante! I am yours in body, mind, speech, you couple government is my unique movement. I am your refuge, lying at your feet, you are a mine of compassion. Have mercy on my wicked criminal, make me your slave.*
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