एक भक्त अपने अराध्य को जब वन्दन कर रहा है तब अपने आप को परमेशवर स्वामी भगवान् नाथ के योग्य नहीं पाता है । हे परमात्मा तुम पुरण ब्रह्म परमेशवर हो मै तुम को प्रणाम करता हूँ । हे मेरे स्वामी भगवान् नाथ मै तुम्हे कर जोड़ कर शिश झुका कर प्रणाम करना चाहती हूँ। लेकिन हे परमात्मा जी मै तुमको प्रणाम नहीं कर पाती हूँ। प्रणाम करते हुए जब मैं अपने ऊपर दृष्टि डालती हूँ। तब मुझ में मुझे पवित्रता दिखाई नहीं देती। मैंने जीवन में अनेक पाप कर्म किए होगे। मेरे अंदर काम क्रोध लोभ मोह माया समायी हूई है। मेरे अन्दर और भी दोष रहे होगे। मैंने जीवन में कदम कदम पर भुल की होगी। अब तक मेरे अनेक जन्म हुए होंगे। अनेक जन्मों में मेरे पाप भी बहुत हुए होंगे। मै क्षमा के योग्य तो नहीं हूँ। हे परमात्मा जी आज मै पाप के बोझ से दबी जा रही हूं। जब मैंने अपने आप को देखा। मुझे अपने में अच्छाई दिखाई नहीं दी। मेरा दिल घबराने लगा। मानव योनि में प्राणी अपने कर्मो के क्लेश को मिटा सकता है। मै बैठ कर सोचने लगी कि मुझे पाप कर्म से मुक्ति कैसे मिले। मुझे ज्ञात हुआ कि मेरे कर्मो के क्लेश को मेरे प्रभु परमेश्वर, स्वामी भगवान् नाथ ही मिटा सकते हैं। मै मेरे प्रभु भगवान नाथ से मिलने के लिए अन्तर्मन से प्रार्थना करती हुई, अन्तर्मन से चली जा रही हूँ। हे परमात्मा जी, हे ब्रह्मानन्द जी, हे श्रद्धा रुप, हे सर्वशक्तिमान प्रभु, हे भक्ति और ज्ञान के सरोवर स्वामी तुम सब प्राणी के ह्दय मे निवास करते हो, तुम आनंद घन हो। तुम मे सम्पूर्ण जगत समाया हुआ है। तुम जगत पिता हो, हे स्वामी भगवान् नाथ निराकार होते हुए भी साकार हो।
मै स्तुति करती हुई अन्तर्मन से चली जा रही हूं। मैंने भिक्षा की झोली थाम रखी है।मै स्वामी भगवान् नाथ को नमन करती और प्रार्थना करती हूँ कि हे स्वामी भगवान् नाथ आज मैं अपने भिक्षा पात्र में आपसे अपने पापों का दण्ड मागंने आयीं हूं। जिससे मैं जन्म जन्मान्तर के पापों को भोग कर मुक्त हो जाऊं। हे स्वामी हे भगवान् नाथ मेरे पाप कर्म बहुत अधिक है। मेरे पाप क्षमा करने के योग्य नहीं है। मै शीश झुकाकर विनती करती हूं। मुझे दण्ड रूपी भिक्षा देकर कृतार्थ करे। प्रार्थना करते करते कभी झुमती, कभी शीश नवाती, कभी स्तुति करती, कभी गाती ऐसे मुझमे आनंद की लहरें समा गई। नेत्रों से जल की धारा बहने लगी।आज अन्तर्मन ने प्रायश्चित करने की ठान रखी थी। हे स्वामी भगवान् नाथ मुझ पर कृपा करके अपने अस्त्र उठाकर मुझे दण्डित किजिए।हे परम परमात्मा जी हे सर्वशक्तिमान प्रभु प्राण नाथ यदि आप मुझपर शस्त्र चलाएगे। हे परमात्मा जी आप मुझपर दृष्टि डालेगे। आपकी दृष्टि साधारण दृष्टि नहीं होगी वो जगत पिता जगत के मालिक की दृष्टि होगी। हे मेरे स्वामी भगवान् नाथ जी एक बार तो मुझपर दृष्टि डालिये। जब मैं प्रभु प्राण नाथ से बार बार प्रार्थना करने लगीं। तब मेरे स्वामी भगवान् नाथ ने कृपा दृष्टि की प्रभु की दृष्टि में पुरी सृष्टि समा गई। एक पल कोई कुछ समझ नहीं पाया। पल भर में सृष्टि का विधान बदल गया। पृथ्वी पर हरियाली छा गई।झरने बहनें लगे। प्रेम का संचार होने लगा। हे स्वामी भगवान् नाथ जी प्रकट रूप में तो मैं तुम्हें कुछ नहीं कह पायी। तुम मेरे अन्तर्मन को जान गये कि मैं तुमसे क्या प्रार्थना कर रही हुं। हे स्वामी भगवान् नाथ जी एक भक्त साधक तपस्वी और योगी की प्रार्थना कभी भी अपने तक सीमित नहीं होती। उसकी प्रार्थना में देश दुनिया और राष्ट्र का हित छुपा होता है।
अनीता गर्ग
I bow to the Supreme Father, the Supreme Soul, Swami Bhagwan Nath. O my lord Bhagwan Nath, I want to bow down and bow my head to you. But oh God, I am unable to bow down to you. When I look up to myself in salutation. Then I do not see purity in me. I must have committed many sins in my life. Lust, anger, greed, attachment, delusion, is engulfed in me. I must have had more faults. I must have made mistakes step by step in life. By now I must have had many births. My sins must have been many in many births. I am not worthy of forgiveness. Oh God, today I am being burdened by the burden of sin. When I saw myself I didn’t see the good in myself. My heart started panicking. The creature in the human vagina can eradicate the affliction of its karma. I sat and thought that how can I get rid of sinful deeds. I came to know that only my Lord God, Swami Bhagwan Nath can remove the tribulation of my karma. To meet my Lord Bhagwan Nath, I am going from within, praying deeply. O Supreme God, O Brahmanand ji, O God of faith, O Almighty Lord, O Lord of the lakes of devotion and knowledge, you reside in the heart of all beings, You are blissful. The whole world is contained in you. You are the father of the world, O Swami Bhagwan Nath, in spite of being formless, you are corporeal.