*प्रार्थना कैसे करें*

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प्रार्थना प्रेम का परिष्कार है। प्रार्थना की सुगंध है। प्रेम अगर फूल तो प्रार्थना फूल की सुवास। प्रेम थोड़ा स्थूल है, प्रार्थना बिलकुल सूक्ष्म है।

प्रेम के जगत में तो शायद शब्दों को थोड़ा लेन-देन हो जाये, प्रार्थना के जगत में तो शब्द बिलकुल ही व्यर्थ हो जाते हैं। वहां तो मौन ही निवेदन करना होता है।

पूछते हो : प्रार्थना कैसे करें ?

प्रार्थना कोई विधि नहीं है। ध्यान की तो विधि होती है, प्रार्थना की कोई विधि नहीं होती। प्रार्थना तो स्वस्फूर्त है, सहज भाव है। जो विधि से करेगा प्रार्थना, उसकी प्रार्थना तो व्यर्थ हो गयी; उसकी प्रार्थना तो नकली हो गयी; प्रथम से ही झूठी हो गयी।

प्रार्थना तो आंख खोलकर, हृदय को खोलकर इस जगत में जो महा-उत्सव चल रहा है, इसके साथ सम्मिलित हो जाने का नाम है। वृक्ष हरे हैं, तुम भी हरे हो जाओ-प्रार्थना हो गयी! फूल खिले हैं, तुम भी खिल जाओ-प्रार्थना हो गयी। सूर्य निकला है, तुम भी जग जाओ-प्रार्थना हो गयी। हवाएं नाच रही हैं, तुम भी नाचो-प्रार्थना हो गयी।

प्रार्थना का कोई ढंग नहीं, रूप नहीं, आकार नहीं, व्यवस्था नहीं। प्रार्थना तो मस्ती है, उन्मत्तता है, दीवानगी है। प्रार्थना तो परमात्मा की शराब को पी लेने का नाम है।

प्रार्थना है अपने भिक्षापात्र को अस्तित्व के सामने फैला देना प्रार्थना है अपने आचल को चाद -तारों के सामने फैला देना।

कहने की बात नहीं। प्रार्थना एक भाव-दशा है, वक्तव्य नहीं। कोई हरे कृष्ण हरे राम, ऐसा कहने से प्रार्थना नहीं होती। कि ‘ अल्ला ईश्वर तेरे नाम, सबको सनमति दे भगवान’, ऐसा कहने से प्रार्थना नहीं होती! प्रार्थना मौन निवेदन है।

प्रार्थना झुकने की कला है। जहां झुक जाओ घुटने टेककर पृथ्वी पर, वहीं प्रार्थना है।

प्रार्थना अंतरतम की बात है। शायद आंसू टपके, या शायद गीत फूटे-कौन जाने! कि शायद नाच उठो, के पैरों में घूंघर बौध लो, कि बासुरी उठाकर बजाने लगो-कौन जाने! कि चुप हो जाओ, कि बिलकुल चुप जाओ, कि वाणी सदी को खो जाये-कौन जाने!

प्रत्येक को प्रार्थना अनूठे ढंग से घटती है। एक की प्रार्थना दूसरे की प्रार्थना नहीं होती। इसलिए प्रार्थना की नकल मत करना। और वहीं अड़चन हो गयी है। हमें प्रार्थनाएं सिखा दी गयी हैं-हिंदुओं की, मुसलमानों की, जैनों की, ईसाइयों की। कोई पढ़ रहा है गायत्री; दोहराये जा रहा है तोतों की तरह। कोई पढ़ रहा है नमोकार मंत्र; दोहराये जा रहा है तोतों की तरह। कोई पढ़ रहा है कुरान की आयतें। सुंदर हैं वे आयतें और सुंदर हैं वे मंत्र और प्यारे हैं उनके अर्थ; मगर प्रार्थना इतने से नहीं होती। उधार नहीं होती प्रार्थना। प्रार्थना तो तुम्हारे हृदय का बहाव है।

🌹OSHO 🌹

Prayer is the refinement of love. There is the fragrance of prayer. If love is a flower then prayer is the fragrance of a flower. Love is a bit gross, prayer is very subtle.

In the world of love, words may be of some use, but in the world of prayer, words become completely useless. There, one has to make a silent request.

You ask: how to pray?

Prayer is not a method. There is a method for meditation, there is no method for prayer. Prayer is spontaneous, it is a spontaneous feeling. The one who prays according to the method, his prayer becomes futile; His prayer turned out to be fake; It was false from the very first.

Prayer is the name of joining with the great festival that is going on in this world by opening the eyes and heart. Trees are green, you also become green – prayer fulfilled! Flowers have blossomed, you also blossom – prayer is done. The sun has risen, you also wake up – the prayer is done. The winds are dancing, you also dance – it has become a prayer.

Prayer has no method, no form, no shape, no system. Prayer is fun, madness, madness. Prayer is the name of drinking the wine of God.

Prayer is to spread your begging bowl in front of existence Prayer is to spread your achal in front of the moon and stars.

Nothing to say Prayer is an attitude, not a statement. Saying someone Hare Krishna Hare Ram does not lead to prayer. Saying ‘Allah Ishwar tere naam, sabko sanmati de Bhagwan’ is not prayer! Prayer is silent request.

Prayer is the art of bowing down. Wherever you kneel down on the earth, there is prayer.

Prayer is a matter of the innermost. Maybe tears will fall, or maybe songs will break out – who knows! Maybe you can dance, tie a curl around your feet, or pick up the flute and start playing – who knows! Whether you should be silent, or be completely silent, that the speech may be lost for centuries – who knows!

Prayer happens to everyone in a unique way. One’s prayer is not another’s prayer. So don’t copy prayers. And there is a problem. We have been taught prayers – of Hindus, of Muslims, of Jains, of Christians. Someone is reading Gayatri; Repeating like parrots. Someone is reciting Namokar Mantra; Repeating like parrots. Someone is reciting verses from Quran. Beautiful are those verses and beautiful are those mantras and lovely are their meanings; But prayer is not like this. Prayer is not borrowed. Prayer is the flow of your heart.

🌹OSHO 🌹

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