एक समय इंद्रदेव से किसी बात पर रूष्ट होकर देव गुरू ‘बृहस्पति’ स्वर्गलोक त्याग कर चले गए ! असुरों ने इस सुअवसर का लाभ उठाकर स्वर्गलोक पर आक्रमण कर दिया ! देवताओं तथा असुरों में युद्ध आरम्भ हो गया, जिसमें देवता पराजित हुए तथा असुरों ने स्वर्गलोक पर कब्जा कर लिया !
इंद्रदेव स्वर्गलोक छोड़कर निकल गए तथा एक सरोवर के भीतर ‘कमल’ की कली के भीतर स्वयँ को छिपा लिया ! ओर वहीं से वे देवी लक्ष्मी की एक स्तुति करने लगे ! यह स्तुति ‘महालक्ष्म्यष्टक स्तोत्र’ के नाम से विख्यात हुयी ! जो वीस्तव में आठ श्लोकों की एक स्तुति है ! आठ श्लोकों से युक्त होने के कारण ही यह स्तुति ‘महालक्ष्यमष्टक स्तोत्र’ कहलाती है !
इस स्तुति अथवा स्तोत्र के पाठ के फलस्वरूप इंद्रदेव को खोया हुआ ऐश्वर्य पुन: प्राप्त हुआ ! यह स्तुति हर प्रकार की दरिद्रता का नाश करने वाली है, तनिक इसका पाठ तो आरम्भ करके देखिए ! महालक्ष्मी जी के चित्र अथवी विग्रह के समक्ष शुद्ध घी का दीपक प्रज्जवलित करके स्तोत्र पाठ करना चाहिए !
नित्य स्तोत्र पाठ करने से हर प्रकार की दरिद्रता अथवा आर्थिक संकट दूर हो जाते हैं तथा ऐश्वर्यादि की प्राप्ति होती है-
स्तोत्रं-
नमस्तेस्तु महामाये श्री पीठे सुरपूजिते।
शंख चक्र गदाहस्ते महालक्ष्मी नमोस्तुते।।
नमस्ते गरूडारूढे कोलासुर भयंकरि।
शंख चक्र गदाहस्ते महालक्ष्मीनमोस्तुते।।
सर्वज्ञे सर्व वरदे सर्व दुष्ट भयंकरि।
सर्व दु:ख हरे देवि महालक्ष्मी नमोस्तुते।।
सिद्धि बुद्धि प्रदे देवि भुक्ति मुक्ति दायिनी।
मंत्र मूर्ति सदा देवि महालक्ष्मी नमोस्तुते।।
आद्यंतर्हिते देवि आद्यशक्ति महेश्वरी।
योगजे योग सम्भूते महालक्ष्मी नमोस्तुते।।
स्थूल सूक्ष्म महारौद्रे महाशक्ति महोदरे।
महापाप हरे देवि महालक्ष्मी नमोस्तुते।।
पद्मासनस्थिते देवि परब्रह्म स्वरूपिणी।
परमेशि जगन्नमातर्महालक्ष्मी नमोस्तुते।।
श्वेतांबर धरे देवि नानालंकारभूषिते।
जगत्स्थिते जगन्नमातर्महालक्ष्मी नमोस्तुते।।
फलश्रुति-
महालक्ष्म्यष्टकं स्तोत्रं य: पठेन्नभक्ति मान्नर:।
सर्वसिद्धिमवाप्नोति राज्यं प्राप्नोति सर्वदा।।
एककाले पठेन्नित्यं महापातक नाशनम्।
द्विकालं य: पठेन्नित्यं धनधान्यसमन्वित:।।
त्रिकालं य: पठेन्नित्यं महाशत्रु विनाशनं।
महालक्ष्मीर्भवेन्नित्यं प्रसन्नावरदा शुभा।।
फलप्राप्ति-
महालक्ष्मी स्तोत्र का जो भक्तिपूर्वक पाठ करता है, उसे समस्त सिद्धियों की प्राप्ति होती है तथा उसका खोया हुआ उसे पुन: प्राप्त हो जाता है ! एक समय पाठ करने से पाप नष्ट होते हैं ! दो समय (प्रात: तथा साँयकाल) पाठ करने से धनधान्य आदि की प्राप्ति होती है ! तीन समय (प्रात: मध्याह्न तथा साँयकाल) अर्थात त्रिकाल संध्या में पाठ करने से शत्रुओं का नाश होता है तथा महालक्ष्मी उस पर सदा प्रसन्न रहती हैं।
।। श्री महालक्ष्म्यै नमो नमः ।।
Once upon a time, being angry with Lord Indra on some matter, Dev Guru ‘Jupiter’ left the heaven! The Asuras took advantage of this opportunity and attacked the heavenly world. A war started between the deities and the asuras, in which the deities were defeated and the asuras captured the heaven.
Indradev left heaven and hid himself inside a ‘lotus’ bud inside a lake. And from there they started praising Goddess Lakshmi! This praise became famous by the name of ‘Mahalakshmyashtak Stotra’. Which is a praise of eight verses in Vistav! This praise is called ‘Mahalakshyamashtak Stotra’ because it consists of eight verses.
As a result of the recitation of this praise or stotra, Indradev regained his lost wealth. This praise is going to destroy all kinds of poverty, at least start reciting it! In front of Mahalakshmi ji’s picture or idol, a lamp of pure ghee should be lit and hymns should be recited.
By reciting hymns daily, all kinds of poverty or economic crisis go away and wealth is attained.
Stotram-
O great illusion, O Sri Peeth, worshiped by the gods, I offer my obeisances to you. O great Lakshmi holding conch, wheel and club, I offer my obeisances to you.
O terrible Kolasura riding on an eagle, I salute you. O great Lakshmi holding a conch, wheel and club, I offer my obeisances to you.
Omniscient, all-giving, all-evil, all-terrible. O Goddess Mahalakshmi, remover of all sufferings, I offer my obeisances to you.
Siddhi Buddhi Prade Devi Bhukti Mukti Dayini. Mantra idol always O Goddess Mahalakshmi I offer my obeisances to you.
O Goddess of the beginning and the end, O Goddess of the original power. O great Lakshmi, born of Yoga, originator of Yoga, I offer my obeisances to you.
Gross, subtle, great, terrible, great, powerful, great. O Goddess of great sins, O great Lakshmi, I offer my obeisances to you.
O Goddess, seated on the lotus seat, you are the embodiment of the Supreme Brahman. O Supreme Goddess, mother of the universe, great Lakshmi, I offer my obeisances to you.
O goddess wearing white robes and adorned with various ornaments O great Lakshmi, mother of the universe, dwelling in the universe, I offer my obeisances unto thee.
Phalashruti- A man who recites the Mahalakshmyashtakam stotra with devotion. He attains all perfection and attains the kingdom at all times.
One should recite it daily at one time for the destruction of great sins. He who daily recites this mantra twice a day is endowed with wealth and grain.
He who recites this mantra three times daily will destroy the great enemy. May the great Lakshmi always be happy and auspicious and bestower of blessings.
fruition The one who recites Mahalakshmi Stotra with devotion, he gets all the achievements and he gets back what he had lost. Sins are destroyed by reciting once! By reciting it twice a day (morning and evening) one gets wealth etc. Enemies are destroyed by reciting three times (morning, midday and evening) i.e. Trikal in the evening and Mahalakshmi is always pleased with it.
।। Ome Namah Sri Mahalakshmi.