।। श्रीहरि स्तोत्रं ।।

जगज्जाल पालम् कचत् कण्ठमालं
शरच्चन्द्र भालं महादैत्य कालम्।
नभो-नीलकायम् दुरावारमायम्
सुपद्मा सहायं भजेऽहं भजेऽहं।।

सदाम्भोधिवासं गलत्पुष्हासं
बजगत्सन्निवासं शतादित्यभासम्।
गदाचक्रशस्त्रं लसत्पीत-वस्त्रं
हसच्चारु-वक्रं भजेऽहं भजेऽहं।।

रमाकण्ठहारं श्रुतिवातसारं
जलान्तर्विहारं धराभारहारम्।
चिदानन्दरूपं मनोज्ञस्वरूपं
धृतानेकरूपं भजेऽहं भजेऽहं।।

जराजन्महीनम् परानन्द पीनम्
समाधान लीनं सदैवानवीनम्।
जगज्जन्म हेतुं सुरानीककेतुम्
त्रिलोकैकसेतुं भजेऽहं भजेऽहं।।

कृताम्नाय गानम् खगाधीशयानं
विमुक्तेर्निदानं हरारातिमानम्।
स्वभक्तानुकूलम् जगद्दृक्षमूलम्
निरस्तार्तशूलम् भजेऽहं भजेऽहं।।

समस्तामरेशम् द्विरेफाभ केशं
जगद्विम्बलेशम् हृदाकाशदेशम्।
सदा दिव्यदेहं विमुक्ताखिलेहम्
सुवैकुन्ठगेहं भजेऽहं भजेऽहं।।

सुराली-बलिष्ठं त्रिलोकीवरिष्ठं
गुरूणां गरिष्ठं स्वरूपैकनिष्ठम्।
सदा युद्धधीरं महावीर वीरम्
महाम्भोधि तीरम् भजेऽहं भजेऽहं।।

रमावामभागम् तलनग्ननागम्
कृताधीनयागम् गतारागरागम्।
मुनीन्द्रैः सुगीतं सुरैः संपरीतं
गुणौगैरतीतं भजेऽहं भजेऽहं।।

हिंदी अर्थ-
जो समस्त जगत के रक्षक हैं, जो गले में चमकता हार पहने हुए हैं, जिनका मस्तक शरद ऋतु में चमकते चन्द्रमा की तरह है और जो महादैत्यों के काल हैं। नभ (आकाश) के समान जिनका रंग नीला है, जो अजेय मायावी शक्तियों के स्वामी हैं, देवी लक्ष्मी जिनकी साथी हैं उन भगवान् विष्णु को मैं बारम्बार भजता हूँ।

जो सदा समुद्र में वास करते हैं, जिनकी मुस्कान खिले हुए पुष्प की भाँति है, जिनका वास पूरे जगत में है, सौ सूर्यों के सामान प्रतीत होते (दिखते) हैं। जो गदा, चक्र और शस्त्र धारण करते हैं, जो पीले वस्त्रों में सुशोभित हैं, जिनके सुन्दर चेहरे पर प्यारी मुस्कान है, उन भगवान् विष्णुको मैं बारम्बार भजता हूँ।

जिनके गले के हार में देवी लक्ष्मी का चिन्ह बना हुआ है, जो वेद वाणी के सार हैं, जो जल में विहार करते हैं और पृथ्वी के भार को धारण करते हैं। जिनका सदा आनंदमय रूप रहता है और मन को आकर्षित करता है, जिन्होंने अनेकों रूप धारण किये हैं, उन भगवान् विष्णु को मैं बारम्बार भजता हूँ।

जो जन्म और उम्र से मुक्त हैं, जो परमानन्द से भरे हुए हैं, जिनका मन सदैव स्थिरऔर शांत रहता है, जो हमेशा नवीन (नये) प्रतीत होते हैं। जो इस जगत के जन्म के कारक हैं, देवताओं की सेना के रक्षक हैं और तीनों लोकों के बीच सेतु हैं, उन भगवान् विष्णु को मैं बारम्बार भजता हूँ।

जो वेदों के गायक हैं, पक्षीराज गरुड़ की जो सवारी करते हैं, जो मुक्तिदाता हैं और शत्रुओं का जो मान हरते हैं। जो अपने भक्तों के प्रिय हैं, जो जगत रुपी वृक्ष की जड़ हैं, जो सभी दुखों को निरस्त (ख़त्म) कर देते हैं, उन भगवान् विष्णु को मैं बारम्बार भजता हूँ।

जो सभी देवों के स्वामी हैं, काली मधु मक्खी के समान जिनके केश (बालों) का रंग है, पृथ्वी जिनके शरीर का हिस्सा है और जिनका शरीर आकाश के समान स्पष्ट है। जिनकी देह (शरीर) सदा दिव्य है, जो संसार के बंधनों से मुक्त हैं, बैकुंठ जिनका निवास है, उन भगवान् विष्णु को मैं बारम्बार भजता हूँ।

जो सुरों (देवताओं) में सबसे बलशाली हैं, त्रिलोकों में सबसे श्रेष्ठ हैं, जिनका एक ही स्वरुप है (परमात्मा या परब्रह्म रूप)। जो युद्ध में सदा वीर हैं, जो महावीरों में भी वीर हैं, जो सागर के किनारे पर वास करते हैं, उन भगवान् विष्णु को मैं बारम्बार भजता हूँ।

जिनके वाम (बाएं) भाग में लक्ष्मी विराजित होती हैं, जो नग्न नाग पर विराजित हैं, जो यज्ञों से प्राप्त किये जा सकते हैं और जो राग-रंग से मुक्त हैं। ऋषि-मुनि जिनके गीत गाते हैं, देवता जिनकी सेवा करते हैं और जो गुणों से परे हैं, उन भगवान् विष्णु को मैं बारम्बार भजता हूँ।

फलश्रुति-
इदम् यस्तु नित्यं समाधाय चित्तम् पठेदष्टकम् कष्टहारं मुरारेः।
स विष्णोर्विशोकं ध्रुवम् याति लोकम् जराजन्म शोकं पुनर्विदन्ते नो।।

भगवान हरि का यह अष्टक जो कि मुरारी के कंठ की माला के समान है, जो भी इसे सच्चे मन से पढता है वह वैकुण्ठ लोक को प्राप्त होता है। वह दुःख, शोक, जन्म-मरण से मुक्त होता है इसमें कोई संदेह नहीं है।

।। इति श्रीहरि स्तोत्रं सम्पूर्णम् ।।
।। इस प्रकार श्रीहरि का यह स्तोत्र समाप्त हुआ ।।

  • ॐ नमो नारायणाय *


The necklace of the world cut the sail The autumn moon is the spear of the great demon time The sky-blue body is difficult to overcome I worship the help of Supadma I worship her.

Sadambhodhivasam galtpushhasam The dwelling place of the elephant, the brightness of a hundred suns. A shiny yellow robe with a mace and wheel weapon I worship the smiling, beautiful-curved, I worship.

Ramakanthaharam shrutivatasara Underwater recreation is the loss of the weight of the earth. The form of the bliss of consciousness is the pleasant form I worship I worship the many forms assumed.

Devoid of old age and birth, thick with bliss The solution is absorbed and always innovative. The cause of the birth of the universe, the star of the gods I worship I worship the one bridge of the three worlds.

Singing to the name of the deed, the bird-lord The diagnosis of liberation is the measure of Hararati. The root of the universe, favorable to His devotees I worship the trident of distress I worship.

Samastamaresham dvirefabha hair Jagadvimblesham hridakasadesam. Always the divine body, the liberated whole body I worship the house of Suvaikuntha I worship.

Surali-strong, the greatest of the three worlds The greatest of the teachers, devoted to the form alone. Always brave in battle, a mighty hero I worship the shore of the great ocean I worship.

Rama’s left side is a naked snake on the floor The sacrifice undertaken is gone and the passion is gone. It was well sung by the great sages and accompanied by the gods I worship Him who is transcended by the two virtues I worship Him.

Hindi meaning- Who is the protector of the whole world, who is wearing a shining necklace around his neck, whose head is like the moon shining in autumn and who is the death of the great demons. I repeatedly worship Lord Vishnu, whose color is blue like the sky, who is the master of invincible illusory powers, whose companion is Goddess Lakshmi.

Who always resides in the ocean, Whose smile is like a flower in bloom, Who resides in the whole world, Looks like a hundred suns. I worship Lord Vishnu again and again, who wears mace, disc and weapon, who is adorned in yellow clothes, who has a lovely smile on his beautiful face.

Whose necklace has the symbol of Goddess Lakshmi, who is the essence of Veda speech, who walks in water and bears the weight of the earth. I repeatedly worship Lord Vishnu, who always has a blissful form and attracts the mind, who has assumed many forms.

One who is free from birth and age, who is full of bliss, whose mind is ever steady and calm, who always appears to be new. I repeatedly worship Lord Vishnu who is the cause of the birth of this world, the protector of the army of the gods and the bridge between the three worlds.

The one who sings the Vedas, who rides on the king of birds Garuda, who is the liberator and who defeats the enemies. I repeatedly worship Lord Vishnu, who is dear to his devotees, who is the root of the world-like tree, who destroys all sorrows.

Who is the lord of all devas, whose hair is as black as a honey bee, of whom the earth is a part and whose body is as clear as the sky. I repeatedly worship Lord Vishnu, whose body is always divine, who is free from the bonds of the world, whose abode is Vaikunth.

Who is the most powerful of the Suras (gods), the best of the three worlds, who has only one form (Paramatma or Parabrahma form). I repeatedly worship Lord Vishnu who is always brave in battle, who is brave even among great heroes, who resides on the banks of the ocean.

On whose left side Lakshmi resides, who sits on a naked snake, who can be obtained by sacrifices and who is free from attachment and color. I repeatedly worship Lord Vishnu, whose songs are sung by sages, whom the deities serve and who is beyond qualities.

Phalashruti- But he who recites this eightfold mantra of Murari with his mind fixed daily. He certainly goes to the world without the sorrow of Vishnu. They know us again from the sorrow of old age and birth.

This Ashtaka of Lord Hari, which is like a rosary on Murari’s neck, whoever recites it with a true heart, attains Vaikunth Lok. There is no doubt that he is free from sorrow, grief, birth and death.

।। This is the complete Sri Hari Stotram. ।। Thus this stotra of Sri Hari is completed. Om Namo Narayanaya *

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