जब भगवान् श्री कृष्ण ने सुदामा जी को तीनों लोकों का स्वामी बना दिया तो…
सुदामा जी की संपत्ति देखकर यमराज से रहा न गया और यम भगवान् को नियम कानूनों का पाठ पढ़ाने के लिए अपने बहीखाते लेकर द्वारिका पहुंच गये…
और भगवान् से कहने लगे कि- अपराध क्षमा करें भगवन लेकिन सत्य तो ये है कि यमपुरी में शायद अब मेरी कोई आवश्यकता नही रह गयी है।
इसलिए में पृथ्वी लोक के प्राणियों के कर्मों का बही खाता आपको सौंपने आया हूँ।
इस प्रकार यमराज ने सारे बहीखाते भगवान् के सामने रख दिये।
भगवान् मुस्कुराए और बोले यमराज जी आखिर ऐसी क्या बात है जो इतना चिंतित लग रहे हो।
यमराज कहने लगे कि प्रभु आपके क्षमा कर देने से अनेक पापी एक तो यमपुरी आते ही नही है वे सीधे ही आपके धाम को चले जाते हैं और..
फिर आपने अभी अभी सुदामा जी को तीनों लोक दान दे दिए हैं सो अब हम कहाँ जाएं।
यमराज भगवान् से कहने लगे कि प्रभु सुदामा जी के प्रारब्ध में तो जीवन भर दरिद्रता ही लिखी हुई थी,,लेकिन आपने उन्हें तीनों लोकों की संपत्ति देकर विधि के बनाये हुए विधान को ही बदलकर रख दिया है अब कर्मों की प्रधानता तो लगभग समाप्त ही हो गयी है।
भगवान् बोले कि यम तुमने कैसे जाना कि सुदामा के भाग्य में आजीवन दरिद्रता का योग है।
यमराज ने अपना बही खाता खोला तो सुदामा जी के भाग्य वाले स्थान पर देखा तो चकित रह गए।
देखते हैं कि जहां ‘श्रीक्षय’ सम्पत्ति का क्षय लिखा हुआ था, वहां स्वयं भगवान् श्रीकृष्ण ने उन्ही अक्षरों को उलटकर उनके स्थान पर ‘यक्षश्री’ लिख दिया अर्थात कुबेर की संपत्ति !!
भगवान् बोले कि यमराज जी शायद आपकी जानकारी पूरी नही है….☺️
क्या आप जानते हैं कि सुदामा ने मुझे अपना सर्वस्व अपर्ण कर दिया था तो मैने तो सुदामा के केवल उसी उपकार का प्रतिफल उसे दिया है।
यमराज बोले कि भगवान् ऐसी कोन सी सम्पत्ति सुदामा ने आपको अर्पण कर दी उसके पास तो कुछ भी नही।
भगवान् बोले कि सुदामा ने अपनी कुल पूंजी के रूप में बड़े ही प्रेम से मुझे चावल अर्पण किये थे जो मैंने और देवी लक्ष्मी ने बड़े प्रेम से खाये थे और जो मुझे प्रेम से कुछ खिलाता है उसे सम्पूर्ण विश्व को भोजन कराने जितना पुण्य प्राप्त होता है, बस उसी का प्रतिफल सुदामा को मैंने दिया है।
ऐसे दयालु हैं हमारे प्रभु श्री द्वारिकाधीश भगवान्.. जिन्होंने न केवल सुदामा जी पर कृपा की…
बल्कि द्रौपदी की बटलोई से बचे हुए साग के पत्ते को भी बड़े चाव से खाकर दुर्वासा ऋषि और उनके शिष्यों सहित सम्पूर्ण विश्व को तृप्त कर दिया था ओर पांडवो को श्राप से बचाया था।
जय श्री कृष्ण, राधे राधे जी🙌☺️
The fruit of offering food to God ☺️
When Lord Shri Krishna made Sudama ji the lord of all the three worlds…
Seeing the wealth of Sudama ji, Yamraj could not resist and reached Dwarka with his books to teach Lord Yama the lesson of rules and regulations…
And started saying to God that God forgive the crime but the truth is that there is probably no need for me in Yampuri now.
That’s why I have come to hand over the account of the deeds of the creatures of the earth to you.
In this way Yamraj placed all the accounts in front of God.
God smiled and said Yamraj ji, what is the matter that you are looking so worried.
Yamraj started saying that Lord, after your forgiveness, many sinners do not come to Yampuri at all, they go directly to your abode and..
Then you have just given all the three public donations to Sudama ji, so where should we go now.
Yamraj said to God that poverty was written in Lord Sudama ji’s destiny throughout his life, but by giving him the property of all the three worlds, you have changed the law made by law, now the priority of deeds has almost ended. Is.
God said Yama, how did you know that Sudama’s fate has the sum of poverty for life.
When Yamraj opened his account book, he was surprised to see Sudama ji’s fateful place.
Let us see that where ‘Shrikshay’ was written as the decay of wealth, Lord Krishna himself reversed those letters and wrote ‘Yakshashri’ in its place, that is Kuber’s wealth!!
God said that Yamraj ji maybe your information is not complete….☺️
Do you know that Sudama had given me his everything, so I have given him the reward of only that favor of Sudama.
Yamraj said that God, what kind of wealth has Sudama offered to you, he has nothing.
God said that Sudama had offered me rice with great love as his total capital, which I and Goddess Lakshmi ate with great love and the one who feeds me with love gets as much virtue as feeding the whole world. , I have given the same reward to Sudama.
Our Lord Shri Dwarkadhish Bhagwan is so kind.. who not only showed mercy to Sudama ji…
Rather, by eating the left over leaves of greens from Draupadi’s bowl, he satisfied the whole world including Durvasa Rishi and his disciples and saved the Pandavas from curse.
Jai Shri Krishna, Radhe Radhe Ji🙌☺️