शुक्राचार्य की पुत्री देवयानी और कच की कथा

IMG

|शुक्राचार्य की पुत्री #देवयानी की प्रेम कहानी
शुक्राचार्य की पुत्री देवयानी के प्रेम और विवाह की ये कहानी बहुत ही रोचक है। आइए ये पौराणिक कहानी जाने प्राचीनकाल में देवताओं और राक्षसों के कई युद्ध हुए। इन युद्धों में कभी देवता जीतते और कभी राक्षस। लेकिन एक समय ऐसा आया कि राक्षसों की शक्ति तेजी से बढ़ने लगी। इसका कारण था मृतसंजीवनी विद्या।

राक्षसों के गुरु शुक्राचार्य को भगवान शिव के आशीर्वाद से मृतसंजीवनी विद्या का ज्ञान मिल गया था।

अब युद्ध में जो राक्षस मर जाते, शुक्राचार्य उन्हें फिर से जीवित कर देते। देवताओं के लिए यह बड़ी समस्या बन गयी। क्या उपाय किया जाये। देवताओं के गुरु बृहस्पति भी इस विद्या से अनजान थे। देवगुरु बृहस्पति को एक उपाय सूझा।उन्होंने अपने पुत्र कच से कहा कि वो जाकर गुरु शुक्राचार्य का शिष्य बन जाए और मृतसंजीवनी विद्या सीखने का प्रयास करे। बृहस्पति जानते थे कि यह कार्य इतना आसान नहीं होगा। उन्होंने अपने पुत्र कच से कहा कि अगर वो किसी प्रकार शुक्राचार्य की सुन्दर पुत्री देवयानी को प्रभावित या आकर्षित कर लेता है तो संभवतः काम आसान हो जाये।

कच जाकर गुरु शुक्राचार्य का शिष्य बन गया। कच एक तेजस्वी युवक था। देवयानी को मन ही मन चाहने लगी पर यह बात उसने किसी से कही नही। इसी बीच राक्षसों को यह बात पता चल गयी कि देवताओं के गुरु का पुत्र कच शुक्राचार्य से शिक्षा ले रहा है। राक्षस समझ गये कि कच का उद्देश्य तो मृतसंजीवनी विद्या का ज्ञान पाना है। राक्षसों ने निर्णय लिया कि कच का जीवित रहना विनाश कारी हो सकता है अतः वो चुपचाप कच को मारने की योजना बनाने लगे।

एक दिन राक्षसों ने कच को पकड़कर उसका वध कर दिया। देवयानी ने जब यह जाना तो उसने रो-रोकर पिता से कच को पुनर्जीवित करने की याचना की। शुक्राचार्य देवयानी का कच के प्रति प्रेम समझ गये, हारकर उन्होंने कच को जीवित कर दिया। इस बात से राक्षस चिढ गये, उन्होंने कुछ दिन बाद पुनः कच को मृत्यु के घाट उतार दिया। लेकिन शुक्राचार्य भी क्या करते,

पुत्री मोह में उन्हें पुनः कच को जीवित करना पड़ा। अब तो राक्षस क्रोधित ही हो गये। उन्होंने सोचा जो भी हो जाये कच को रास्ते से हटाना ही होगा। उन्होंने तीसरी बार कच को मार डाला। इस बार राक्षसों ने चालाकी की। राक्षसों ने कच को मारकर उसके शरीर को जला दिया और राख को एक पेय में मिलाकर अपने गुरु शुक्राचार्य को ही पिला दिया। राक्षसों ने सोचा चलो अब तो छुट्टी हो गयी कच की। लेकिन देवयानी ?

देवयानी ने जब कच को कहीं न पाया तो वो समझ गयी कि क्या हुआ होगा। देवयानी ने पुनः अपने पिता शुक्राचार्य से विनती की कि वो कच का पता करें।

शुक्राचार्य महान ऋषि थे। उन्होंने अपने तपोबल की शक्ति से कच का आवाहन किया तो उन्हें खुद के पेट से कच की आवाज़ आई।शुक्राचार्य दुविधा में पड़ गये। अगर वो कच को जीवित करते हैं तो वो स्वयं मर जायेंगे। अतः उन्होंने कच की आत्मा को👉 मृतसंजीवनी का ज्ञान दे दिया। कच अपने गुरु शुक्राचार्य का पेट फाड़कर बाहर आ गया और शुक्राचार्य मर गये। कच ने मृतसंजीवनी विद्या का प्रयोग किया और गुरु शुक्राचार्य को जीवित कर दिया।

कच ने शुक्राचार्य को जीवित करके शिष्य के धर्म को निभाया अतः शुक्राचार्य ने कच को आशीर्वाद दिया। देवयानी कच को देखकर अत्यंत प्रसन्न हुई और उसने कच से विवाह करने की इच्छा जताई। जवाब में कच ने सत्य का उद्घाटन किया कि यहाँ आने का उसका उद्देश्य (मृतसंजीवनी विद्या का ज्ञान) तो पूरा हो चुका, अब वो वापस देवलोक जा रहा है। इसके साथ ही कच ने यह भी कहा कि चूंकि वो शुक्राचार्य के पेट से निकला है

अतः 👉शुक्राचार्य उसके पिता समान हुए। इस प्रकार देवयानी कच की बहन हुई इसलिए वो अपनी बहन से शादी कैसे कर सकता है।

देवयानी को इस बात से गहरा आघात पहुंचा। क्रोध और शोक में देवयानी ने कच को श्राप दिया कि वो कभी भी मृतसंजीवनी विद्या का प्रयोग नही कर पायेगा। कच इस बात से चकित रहा गया, चिढ़कर उसने भी देवयानी को श्राप दिया कि वो जिस भी व्यक्ति से विवाह करेगी उसका चरित्र अच्छा नहीं होगा।

अगले शुक्रवार को आगे पढ़े देवयानी का विवाह प्रसंग

|| शुक्राचार्य जी महाराज की जय हो ||

Share on whatsapp
Share on facebook
Share on twitter
Share on pinterest
Share on telegram
Share on email

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *