संत बहिणाबाई और उनके पति गंगाधरराव अपनी प्यारी कपिलाके साथ देहूमें तुकाराम महाराजके दर्शनार्थ आये थे। रास्तेमें एक दिन गंगाधररावको तुकारामसे जलनेवाले वहींके एक ब्राह्मण मंबाजी मिले। रावके आनेके कारणका पता चलते ही वे आपसे बाहर हो उठे और लगे तुकोबाको अनाप-शनाप कहने। गंगाधररावसे सहा नहीं गया, उन्होंने कहा-‘महाराज! आप मेरी निन्दा प्रसन्नतासे कीजिये पर भगवद्भक्त तुकोबाकी निन्दा कर व्यर्थ ही पापकी गठरी क्यों बाँध रहे हैं?’
यह सुनकर मंबाजी रावपर आगबबूला हो उठे और बदला लेनेपर उतारू हो गये।
एक दिन बहिणा और राव तुकोबाके भजनमें मग्र थे। मौका पाकर मंबाजी धीरेसे उनकी कपिलाको खोल ले गये और उसे बेदम मारकर तहखानेमें छिपा दिया।
भजनके बाद कपिलाको न देखकर बहिणा शोक करने लगी। गाँवभर खोजवाया गया, आस-पासके गाँवॉर्म भी लोग भेजे गये, पर कपिलाका कहीं पता न चला। बहिणा उसके विछोहसे विह्वल हो उठी। बहिणाकी गाय गुम होनेका तुकोबाको भी भारी क्लेश हुआ। उनका चित्त उद्विग्र हो उठा। दो दिन बाद अकस्मात् स्वप्रमें आकर कपिला फूट-फूटकररोने लगी और तुकोबासे उबारनेकी बार-बार प्रार्थना करने लगी। गायकी गुहार सुन तुकोबाकी आँखें खुलीं – गायपर पड़ी मारसे तुकोबाकी पीठपर बड़े बड़े फफोले हो गये थे और सारा शरीर बेरहमीकी मारसे दर्द कर रहा था।
तुकोबाने अपने दर्दकी कुछ परवा नहीं की और गायके लिये अपने सर्वस्व आराध्य प्रभुसे प्रार्थना की। भगवान्ने तुकाराम महाराजकी प्रार्थना सुनी। एकाएक मंबाजीके घरमें आग लगी और अग्निदेव धू-धूकर उनका सर्वस्व स्वाहा करने लगे। लोग आग बुझाने दौड़ पड़े। इसी बीच उन्हें गायका डकारना सुनायी दिया। सभी ठक्-से रह गये। गाय कहाँ ? खोज होने लगी। आखिर तहखाना खोला गया। गाय निकाली गयी। उसकी पीठ मारसे सूज गयी थी। तबतक मंबाजीको संत-निन्दा और गोघातका पूरा प्रायश्चित्त प्राप्त हो गया। उनका गगनचुम्बी प्रासाद और उसका सारा सामान राखका ढेर बन गया!
संत तुकारामको पता चलते ही वे दौड़ते आये और कपिलाको साष्टाङ्ग दण्डवत्कर उसके मुँहपर हाथ फेर आँसू बहाने लगे। संतका यह गो-प्रेम देख बहिणाबाईके शरीरपर सात्त्विक अष्टभाव उमड़ पड़े, वह रोमाञ्चित हो उठी। गो0 न0 बै0 (धेनुकथा-संग्रह)
Saint Bahinabai and her husband Gangadhar Rao had come to Dehu with their beloved Kapila to visit Tukaram Maharaj. One day on the way, Gangadhar Rao met Mambaji, a local Brahmin who was envious of Tukaram. As soon as he came to know about the reason for Rao’s arrival, he got out of his way and started cursing Tukoba. Gangadharrao could not bear it, he said – ‘ Maharaj! You criticize me with pleasure, but why are you unnecessarily tying a bundle of sins by condemning the devotee of God Tukoba?’
Hearing this, Mambaji Rao became enraged and bent on taking revenge.
One day Bahina and Rao were engrossed in Tukoba’s bhajan. Taking the opportunity, Mambaji gently untied her Kapila and hid her in the basement after killing her breathlessly.
After bhajan, sister started mourning after not seeing Kapila. The whole village was searched, people were also sent to nearby villages, but Kapila could not be found anywhere. The sister was distraught with his separation. Tukoba was also deeply troubled by the loss of his sister’s cow. His mind got agitated. After two days, suddenly coming in her dream, Kapila started crying bitterly and started praying again and again to save Tukoba. Tukoba’s eyes opened after listening to the song’s cry – Tukoba’s back was covered with blisters and the whole body was aching due to the brutal beating.
Tukobane did not care about his pain and prayed to his most adorable God for the cow. God heard the prayer of Tukaram Maharaj. Suddenly a fire broke out in Mambaji’s house and Agnidev started slaying him everything. People ran to extinguish the fire. Meanwhile, he heard the croaking of a singer. Everyone was stunned. Where’s the cow? The search started. At last the cellar was opened. The cow was taken out. His back was swollen from the beating. Till then Mambaji got full atonement for Saint-Ninda and cow slaughter. His sky-high palace and all his belongings became a heap of ashes!
As soon as Saint Tukaram came to know, he came running and prostrated himself to Kapila and started shedding tears. Seeing this saint’s cow-love, Bahinabai’s body was filled with sattvic emotions, she was thrilled. Go0 Na0 Bai0 (Dhenukatha-Collection)