चार्ली, तूने यह क्या किया ?
भारतकी सेवामें अपनेको खपा देनेवाले-‘दीनबन्धु’ एण्ड्रजका प्यारका नाम था ‘चार्ली’। गाँधीजी उन्हें इसी नामसे पुकारते थे। यों उनका नाम था चार्ल्स फ्रेयर एण्डूज।
उनके बचपनकी बात है। तब वे बारह बरसके थे। एक दिन वे घरसे सात मील दूर सट्टन पार्कमें घूमने गये। बड़े भाई साथमें थे। दोनों भाई देरतक पार्कमें खेलते रहे। वहीं एक पेड़पर उन्होंने देखा कि एक चिड़ियाके घोंसलेमें तीन अण्डे रखे हैं। नीले-नीले अण्डे । ऊपर छोटे-छोटे काले धब्बे ।
चार्लीको बहुत अच्छे लगे वे अण्डे। उन्होंने उन्हें उठाकर अपनी टोपीमें रख लिया। घर लाकर माँको अण्डे दिखाये – ‘देखो माँ! कैसे बढ़िया रंगके अण्डे हैं।’ माँ उन्हें देखकर बोली-‘अरे चार्ली ! तूने यह क्या किया, बेटा !’ चार्ली तो हैरान !
माँ बोली- ‘बेटा! जरा सोच तो उस चिड़ियाकी
बात, जिसके अण्डे तू चुरा लाया। कितनी आशासे वह अपने घोंसलेपर लौटी होगी और तीनों अण्डोंको न पाकर कितनी बिलखी होगी। पता नहीं, वह अपने घोंसलेके आस-पास कितने चक्कर काट रही होगी। छटपटा रही होगी! प्यारे बेटे, तू उसके तीनों अण्डे उठा लाया! एक भी नहीं छोड़ा उसके लिये ?’
बड़े होनेपर एण्डूज साहबने लिखा- ‘यद्यपि मैं बुरी तरह थका हुआ था, पर चिड़ियाकी बात सोच सोचकर मुझे उस रात नींद नहीं आयी। बादमें क्या हुआ, मुझे याद नहीं। पर मेरा विश्वास है कि दूसरे दिन उन अण्डोंको लेकर मैं जरूर उस पार्कमें गया होऊँगा। पर शायद मुझे वह घोंसला नहीं मिला और इसलिये मेरी आत्मा अपने अपराधके बोझसे मुक्त न हो सकी। माँकी बात सुनकर मुझे जो मर्मान्तक पीड़ा हुई, उसे मैं कभी नहीं भूला।’
Charlie, what have you done?
The one who spent himself in the service of India – ‘Deenbandhu’ Andrew’s name was ‘Charlie’. Gandhiji used to call him by this name. Thus his name was Charles Freire Andrews.
It is about his childhood. Then he was twelve years old. One day he went for a walk in Sutton Park, seven miles away from home. Elder brother was with him. Both the brothers kept playing in the park till late. There, on a tree, he saw three eggs laid in a bird’s nest. Blue-blue eggs. Small black spots on top.
Charlie liked those eggs very much. He picked them up and put them in his hat. Bring home and show the eggs to mother – ‘Look mother! What a beautiful colored eggs.’ Seeing them, the mother said – ‘Hey Charlie! What have you done, son!’ Charlie is surprised!
Mother said – ‘ Son! just think about that bird
Talk, whose eggs you stole. With how much hope she must have returned to her nest and how much she must have cried for not getting all the three eggs. Don’t know how many rounds she must have been making around her nest. She must be shivering! Dear son, you brought all three of her eggs! Didn’t leave even one for him?’
On growing up, Mr. Andrews wrote- ‘Though I was very tired, I could not sleep that night thinking about the bird. I don’t remember what happened afterwards. But I believe that the next day I must have gone to that park with those eggs. But perhaps I could not find that nest and therefore my soul could not be freed from the burden of its guilt. I have never forgotten the heart-wrenching pain I felt after listening to my mother.’