ग्रीष्मकी भयंकर ज्वालासे प्राणिमात्र संतप्त थे। सरोवरों, नालों और बावलियोंका जल सूख गया था; वृक्ष तपनसे दग्ध थे, जीव -जन्तु आकुल थे। कपिलवस्तु और कोलिय नगरकी सीमा, रोहिणी नदी जेठ मासके प्रकोपसे सिमिटकर अत्यन्त क्षीणकाय हो गयी थी। धरती इन्द्रकी कृपा – जलवृष्टिसे वञ्चित थी। ऐसी स्थिति में एक दिन अचानक रोहिणीके तटपर शाक्यों और कोलियोंमें रोहिणीके पानीके उपयोगपर विवाद छिड़ गया।
सरितामें पानी कम रह गया है। केवल हमारी खेतोंके ही लिये इतना पानी पर्याप्त है। बाँधके द्वारा पानी दो भागों में बँट जानेसे हम दोनोंकी खेती सूख जायगी। शाक्य मजदूरों (कर्मकरों) ने कहा-
‘यही स्थिति हमारी भी है; हम पानीका उपयोग कर लेंगे तो हानिकी क्या बात है?’ कोलियोंने अपना पक्ष दृढ़ किया।कलह बढ़ गया। यह बात दोनों राजकुलोंमें पहुँच गयी। तनातनी बढ़ गयो। दोनों एक-दूसरेके प्राणोंके शत्रु हो गये। द्वेषको आग प्रज्वलित हो उठी।
‘किस बातका कलह है, महाराजो!’ भगवान् बुद्ध उस समय कपिलवस्तुमें हो रोहिणीके तटपर चारिका कर रहे थे। प्रातः कालका समय था। दोनों औरके सैनिकोंने शस्त्र अलग रखकर तथागतकी वन्दना की। वे कलहका कारण नहीं बता सके।
“रोहिणीके पानीका झगड़ा है, भन्ते। दोनों ओरके मजदूरोंने भगवान्के प्रश्नका सम्मिलित उत्तर दिया।
‘उदकों (पानी) का क्या मूल्य है, महाराजो!’ भगवान् ने दोनों ओरके सेनापतियों और सैनिकों तथा मजदूरोंसे प्रश्न किया।
‘कुछ भी नहीं है, भन्ते । पानी बिना मूल्यके ही प्रत्येक स्थानपर आसानीसे मिल जाता है।’ शाक्यों और कोलियोंको अपनी करनीपर पश्चात्ताप हुआ।उन्होंने दृष्टि नत कर ली।
‘क्षत्रियों (सैनिकों) का क्या मूल्य है, महाराजो ?’ भगवान् तथागतके इस प्रश्नसे लोग अत्यन्त लज्जित हुए ।
‘क्षत्रियोंका मूल्य लगाया ही नहीं जा सकता, भन्ते !
वे नितान्त अनमोल हैं!’ दोनों पक्षोंने अपनी भूल स्वीकार की।
‘अनमोल क्षत्रियोंका खून साधारण उदकके लियेबहाना क्या उचित है, महाराजो!’ प्रश्न था ।
‘नहीं, भन्ते! हमें प्रकाश मिल गया। समझौतेका पथ प्राप्त हो गया।’ उन्होंने सुगतकी चरण-वन्दना की।
‘शत्रुओंमें अशत्रु होकर जीना परम सुख है। वैरियोंमें अवैरी होकर रहना चाहिये।’ भगवान् बुद्धने अपनी शीलमयी वाणीसे लोगोंको आप्लावित किया। समझौता हो गया शाक्यों और कोलियोंमें।
-रा0 श्री0 (बुद्धचर्या)
The creatures were scorched by the terrible flames of summer. The waters of the lakes, streams, and ponds had dried up; The trees were burnt by the heat, the animals were anxious. The river Rohini, the border of Kapilvastu and Koliya city, had become very weak due to the floods of the month of Jeth. The earth was deprived of Indra’s grace – rain. In such a situation, one day suddenly a dispute broke out between the Shakya and the Kolis on the banks of the Rohini over the use of the water of the Rohini.
There is less water in the river. Only enough water for our fields. The water will be divided by the dam and our farms will dry up. The Shakya workers said:
‘The same is our situation; What’s the harm if we use water?’ The Collies strengthened their side.The quarrel escalated. This reached both the royal families. The tension increased. They became enemies of each other’s lives. The fire of hatred was kindled.
‘What is the quarrel, sir!’ Lord Buddha was in Kapilavastu at that time and was grazing on the banks of the Rohini. It was early in the morning. The soldiers of both sides put aside their weapons and worshiped the Tathagata. They could not explain the cause of the quarrel.
“There is a quarrel over the water of the Rohini, you say. The workers on both sides gave a joint answer to the Lord’s question.
‘What is the value of water, sirs!’ The Lord asked the commanders and soldiers and laborers on both sides.
‘There is nothing, Bhanthe. Water is readily available in every place without any price,” he said. The Shakya and Kolis repented of their actions.They bowed their gaze.
‘What is the value of the Kshatriyas (soldiers), Maharajas?’ People were very embarrassed by this question of Lord Tathagata.
‘Kshatriyas cannot be valued, Bhanthe!
They are absolutely precious!’ Both sides admitted their mistakes.
‘What is it proper to shed the blood of precious Kshatriyas for ordinary water, Maharaja!’ The question was.
‘No, Bhanthe! We got the light. The path of compromise has been reached,” he said. He bowed at the feet of Sugat.
‘To live without enemies among enemies is the supreme happiness. One should be hostile to enemies. Lord Buddha flooded the people with his virtuous speech. The agreement was reached between the Shakya and the Kolis.