स्वामी विवेकानन्दके पूर्वाश्रमकी बात है। उस समय उनका नाम नरेन्द्र था। वे कभी-कभी परमहंस रामकृष्णदेवके दर्शनके लिये दक्षिणेश्वर मन्दिरमें भी जाया करते थे वे कहा करते थे कि ‘बूढ़े संन्यासीके पास मैं उपदेश सुनने नहीं जाता हूँ, मुझे प्रेमकी शक्ति उनके पास अपने-आप खींच ले जाती है। ‘
अचानक नरेन्द्र के पिताका देहान्त हो गया। वे बी0 ए0 की परीक्षा में उत्तीर्ण हुए। वकालत पढ़नेके लिये उन्होंने कालेजमें प्रवेश किया ही था कि परिवारके भरण-पोषणका भार उन्हींके कंधोंपर आ पड़ा। आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी। नौकरीके लिये कलकत्तेकी एक-एक गली छान डाली, पर कहीं सफलता नहीं मिली। भूखों मरनेतककी नौबत आ गयी।
एक दिन वे अपने मित्रोंके साथ दक्षिणेश्वर मन्दिरमें परमहंस रामकृष्णके सामने बैठे हुए थे।
“नरेन्द्र के पिताका देहान्त हो गया है। आजकलइसकी दशा अच्छी नहीं है। घरपर लोग भूखों मर रहे हैं। भक्तोंको चाहिये कि इसकी सहायता करें।’ परमहंसदेवने अपने प्रेमियोंको प्रोत्साहित किया। वे नरेन्द्रकी दीन अवस्थासे बहुत चिन्तित थे। रात-दिन सोचा करते थे कि किस प्रकार उनकी चिन्ता दूर हो।
भक्त चले गये। मन्दिरमें रह गये केवल नरेन्द्र । ‘महाराज! आपने ऐसा क्यों कहा। न जाने ये लोग मेरे सम्बन्धमें कैसी धारणा बनायेंगे।’ नरेन्द्र लज्जासे त थे।
‘तुम यह क्या कहते हो, नरेन्द्र ! प्यारे नरेन्द्र ! मैं तुम्हारे लिये सब कुछ कर सकता हूँ। मैं तुम्हें सुखी रखनेके लिये झोली लेकर गली-गलीमें और दरवाजे दरवाजेपर भीख माँग सकता हूँ।’ उनके नेत्रोंसे अश्रु बरस पड़े। उन्होंने नरेन्द्रके कंधेपर अपना हाथ रखा। परमहंस रामकृष्णके स्पर्शसे वे धन्य हो गये।
It is a matter of Swami Vivekananda’s Purvashram. At that time his name was Narendra. Sometimes he also used to go to Dakshineswar temple to see Paramhansa Ramakrishnadev, he used to say that ‘I do not go to the old monk to listen to the sermon, the power of love automatically pulls me to him. ,
Suddenly Narendra’s father passed away. He passed the B.A. examination. He had entered college to study law when the burden of maintaining the family fell on his shoulders. The economic condition was not good. Searched every street of Calcutta for a job, but did not get success anywhere. It came to the point of dying of hunger.
One day he was sitting in front of Paramhansa Ramakrishna in Dakshineswar temple with his friends.
“Narendra’s father has passed away. His condition is not good these days. People are dying of hunger at home. Devotees should help him.” Paramhansdev encouraged his lovers. He was very worried about Narendra’s poor condition. He used to think day and night how to remove his worries.
The devotees left. Only Narendra remained in the temple. ‘King! Why did you say so? Don’t know what impression these people will make about me.’ Narendra was ashamed.
‘What do you say, Narendra! Dear Narendra! I can do everything for you. I can take a bag and beg from door to door to keep you happy.’ Tears flowed from his eyes. He put his hand on Narendra’s shoulder. He was blessed by the touch of Paramhansa Ramakrishna.