डॉक्टर प्राणजीवन मेहता गांधीजीके मित्रोंमेंसे थे। रेवाशंकर जगजीवनदास इनके भाई थे। पहले गांधीजी जब बम्बई जाते तब प्रायः इनके ही मकानमें ठहरते थे। एक दिन वहीं आनन्दस्वामी भी गांधीजीके साथ थे। उनकी रेवाशंकरजीके रसोइयेके साथ कुछ बोल-चाल हो गयी। बात-बातमें उसने आनन्दस्वामीका अपमान कर दिया। स्वामीजीने क्रोधावेशमें कसकर उसे एक चाँटा जड़ दिया। शिकायत बापूतक पहुँची। बापूनेस्वामीजीसे कहा-‘अगर बड़े लोगोंसे तुम्हारा ऐसा झगड़ा हो जाता तो उन्हें तो तुम थप्पड़ नहीं लगाते। वह नौकर है, इसलिये तुमने उसे चाँटा जड़ दिया। अभी जाकर उससे क्षमा माँगो।’ जब आनन्दस्वामीने आनाकानी की तब आपने कहा- ‘यदि तुम अन्यायका परिमार्जन नहीं कर सकते तो तुम मेरे साथ नहीं रह सकते।’ आनन्दस्वामी सीधे गये और उन्होंने रसोइयेसे क्षमा माँगी।
Dr. Pranjeevan Mehta was one of Gandhiji’s friends. Revashankar Jagjivandas was his brother. Earlier, when Gandhiji used to go to Bombay, he often used to stay in his house. One day Anandswamy was also there with Gandhiji. He had some conversation with Revashankarji’s cook. He insulted Anandswamy in every talk. Swamiji gave him a tight slap in anger. The complaint reached Baput. Bapu said to Swamiji – ‘If you had such a quarrel with big people, you would not have slapped them. He is a servant, that’s why you slapped him. Now go and apologize to him. When Anandaswamy refused, you said – ‘If you cannot rectify the injustice, then you cannot be with me.’ Anandswamy went straight and apologized to the cook.