मेरी आँखें पुनः फूट जायँ

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महात्मा श्रीसूरदासजी जन्मान्ध थे। एक बार वे अपनी मस्तीमें कहाँ जा रहे थे। रास्तेमें एक सूखा कु । वे उसमें गिर गये। सात दिन हो गये। वे भगवान्‌की बड़े करुण कण्ठसे प्रार्थना कर रहे थे, उस समय भगवान् आकर उनको बाहर निकाल दिया। बाहर आकर वे अपनी नेत्रहीनतापर पछताने लगे कि ‘मैं पास अनेपर भी भगवान के दर्शन नहीं कर सका।’

एक दिन बैठे हुए वे ऐसे ही विचार कर रहे थे कि उन्हें श्रीकृष्ण और श्रीराधाकी बातचीत सुनायी दी। श्रीकृष्ण-1 आगे मत जाना, नहीं तो यह अंधा सँग पकड़ लेगा।’

श्रीराधा- ‘मैं तो जाती हूँ’-कहकर वे सूरदाससे पूछने लगीं- ‘क्या तुम मेरी टाँग पकड़ लोगे ?’ सूरदासजीने कहा, ‘नहीं, मैं तो अंधा हूँ, क्या पकडूंगा।’ तब श्रीराधा उसके पास जाकर अपने चरणका स्पर्श कराने चलीं। श्रीकृष्णने कहा- आगे से नहीं, पीछेसे टसँग पकड़ लेगा।’

फिर तो सूरदासने मनमें सोचा कि ‘श्रीकृष्णने तो आज्ञा दे ही दी अब मैं क्यों न पकड़े।’ यह सोचकर व भी तैयार होकर बैठ गये। जैसे ही उन्होंने चरणस्पर्श कराया कि सूरदासने पकड़ लिया। किंतु श्रीजी भाग | गयी हाँ, उनकी पैंजनी खुलकर सूरदासके हाथमें।आ गयी।

श्रीराधा- ‘सूरदास! तुम मेरी पैंजनी दे दो, मुझे रास करने जाना है।’

सूरदास – ‘मैं अंधा क्या जानूँ, किसकी है। मैं | तुमको दे दूँ, फिर कोई दूसरा मुझसे माँगे तो मैं क्या करूँगा? हाँ, मैं तुमको देख लूँ तब तो मैं दे दूँगा।’ तब श्रीराधाजी हँसी और उन्होंने सूरदासको दर्शन दे दिया।

श्रीकृष्ण और श्रीराधाने प्रसन्न होकर सूरदाससे कहा – ‘सूरदास! तुम्हारी जो इच्छा हो, माँग लो।’ सूरदासने कहा- ‘आप देंगे नहीं!’

श्रीकृष्णने कहा- ‘तुम्हारे लिये कुछ भी अदेय नहीं है।’

सूरदास – ‘वचन देते हैं ?’ श्रीराधा – ‘अवश्य ।’

सूरदासने कहा- ‘जिन आँखोंसे मैंने आपको देखा, उनसे मैं संसारको नहीं देखना चाहता। मेरी आँखें पुनः फूट जायँ ।’

श्रीराधा और श्रीकृष्णकी आँखें छल-छल करने लगीं और देखते-देखते सूरदासकी दृष्टि पूर्ववत् हो गयी।

-‘राधा’

Mahatma Shrisurdasji was born blind. Once where were they going in their fun. A dry well on the way. They fell in it. Seven days have passed. He was praying to God with a very compassionate voice, at that time God came and drove him out. After coming out, he started regretting his blindness that ‘I could not see God even at close range.’
One day while sitting he was thinking like this that he heard the conversation of Shri Krishna and Shriradha. Shri Krishna-1 Don’t go ahead, otherwise this blind man will catch you.’
Shriradha- saying ‘I will go’- she started asking Surdas- ‘Will you hold my leg?’ Surdasji said, ‘No, I am blind, what will I catch?’ Then Shriradha went to him to touch his feet. Shri Krishna said – not from the front, but from behind will catch the tong.
Then Surdas thought in his mind that ‘Shri Krishna has already given permission, now why shouldn’t I catch him.’ Thinking of this, he also got ready and sat down. As soon as he touched his feet, Surdas caught hold of him. But Shreeji Bhag | Yes, her panjani came openly in the hands of Surdas.
Shriradha- ‘Surdas! You give me my panjani, I have to go to Raas.’
Surdas – ‘How can I know who is blind? i | If I give it to you, then what will I do if someone else asks for it? Yes, I will give it when I see you.’ Then Shriradhaji laughed and gave darshan to Surdas.
Shri Krishna and Shriradha were pleased and said to Surdas – ‘Surdas! Ask for whatever you want.’ Surdas said – ‘You will not give!’
Shri Krishna said- ‘Nothing is due to you.’
Surdas – ‘Do you promise?’ Śrīrādhā – ‘Certainly.’
Surdas said- ‘I don’t want to see the world with the eyes with which I saw you. May my eyes explode again.’
The eyes of Shriradha and Shri Krishna started playing tricks and Surdas’s vision was restored in no time.
-‘Radha’

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