पराधीनतामें सुख कहाँ?
एक मोटे-ताजे पालतू कुत्तेके साथ एक भूखे दुबले-पतले बाघकी भेंट हुई। प्रथम परिचय हो जानेके -‘भाई, एक बात पूछता हूँ, बाद बाघने कुत्तेसे कहा- ” जरा बताओ, तुम कैसे इतने सबल तथा मोटे-तगड़े हुए, तुम प्रतिदिन क्या खाते हो और कैसे उसकी प्राप्ति करते हो? मैं तो दिन-रात भोजनकी खोजमें घूमकर भी भरपेट खा नहीं पाता। किसी-किसी दिन तो मुझे
उपवास भी करना पड़ जाता है। भोजनके इस कष्टके कारण ही मैं इतना कमजोर हो गया हूँ।’
कुत्तेने कहा-‘मैं जो कुछ करता हूँ, तुम भी यदि वैसा ही कर सको, तो तुम्हें मुझ जैसा ही भोजन मिल जायगा।’
बाघ बोला- ‘सचमुच ? अच्छा भाई, तुम्हें क्या करना पड़ता है, जरा बताओ तो।’
बाघ बोला-‘ इतना तो मैं भी कर सकता हूँ। मैं भोजनकी तलाशमें वन-वन भटकता हुआ धूप तथा वर्षासे बड़ा कष्ट पाता हूँ। अब और यह क्लेश सहा नहीं जाता। यदि धूप और वर्षाके समय घरमें रहनेको मिले और भूखके समय भरपेट खानेको मिले, तब तो मेरे प्राण बच जायेंगे।”
बाघके दुःखकी बातें सुनकर कुत्तेने कहा- ‘तो फिर मेरे साथ आओ। मैं मालिकसे कहकर तुम्हारे लिये सारी व्यवस्था करवा देता हूँ।’
बाघ कुत्तेके साथ चल पड़ा। थोड़ी देर चलनेके बाद बाघको कुत्तेकी गरदनपर एक दाग दिखायी पड़ा। उसके विषयमें जिज्ञासा उठनेके कारण उसने व्यग्रतापूर्वक
कुत्तेसे पूछा- ‘भाई, तुम्हारी गरदनपर यह कैसा दाग है ? ‘
कुत्ता बोला-‘अरे, यह कुछ भी नहीं है।’
बाघने कहा – ‘नहीं भाई, मुझे बताओ। मुझे
जाननेकी बड़ी इच्छा हो रही है।’
कुत्ता बोला- ‘मैं कहता हूँ न, वह कुछ नहीं है,
लगता है पट्टेका दाग होगा।’
बाघने कहा- ‘पट्टा क्यों ?’
कुत्ता बोला-‘पट्टेमें जंजीर फँसाकर दिनके समय मुझे बाँधकर रखा जाता है।’
यह सुनकर बाघ विस्मित होकर कह उठा
‘जंजीरसे बाँधकर रखा जाता है ? तब तो तुम जब जहाँ जानेकी इच्छा हो, जा नहीं सकते ?’
कुत्ता बोला-‘ऐसी बात नहीं है, दिनके समय भले ही बँधा रहता हूँ, लेकिन रातके समय जब मुझे छोड़ दिया जाता है, तब मैं जहाँ चाहूँ, खुशीसे जा सकता हूँ। इसके अतिरिक्त मालिकके नौकर लोग मेरी कितनी देखभाल करते हैं, अच्छा खाना देते हैं, स्नान कराते हैं और कभी-कभी मालिक भी स्नेहपूर्वक मेरे शरीरपर हाथ फेर दिया करते हैं। जरा सोचो तो, मैं कितने सुखमें रहता हूँ।’
बाघने कहा- ‘भाई, तुम्हारा सुख तुम्हींको मुबारक हो, मुझे ऐसे सुखकी जरूरत नहीं है। अत्यन्त पराधीन होकर राजसुख भोगनेकी अपेक्षा स्वाधीन रहकर भूखका कष्ट उठाना हजारोंगुना अच्छा है। मैं अब तुम्हारे साथ नहीं जाऊँगा।’
यह कहकर बाघ फिर जंगलमें लौट गया।
Where is the happiness in being dependent?
A hungry skinny tiger met with a fat pet dog. After the first introduction – ‘Brother, let me ask you one thing’, the tiger said to the dog – “Just tell me, how did you become so strong and fat, what do you eat everyday and how do you get it? I am hungry for food day and night. I am not able to eat my fill even after roaming around in search.
Fasting also has to be done. It is because of this pain of food that I have become so weak.’
The dog said – ‘If you can do what I do, you will get the same food as me.’
The tiger said – ‘Really? Good brother, what do you have to do, just tell me.’
The tiger said – ‘ I can also do this much. Wandering from forest to forest in search of food, I suffer more than the sun and the rain. Can’t bear this tribulation anymore. If I get to stay at home during the sun and rain and eat well in times of hunger, then my life will be saved.
Hearing the words of the tiger’s sorrow, the dog said – ‘ Then come with me. I will get all the arrangements done for you by asking the owner.’
The tiger walked with the dog. After walking for a while the tiger saw a spot on the dog’s neck. Being curious about him, he anxiously
Asked the dog – ‘Brother, what kind of stain is this on your neck? ,
The dog said – ‘Hey, it is nothing.’
The tiger said – ‘No brother, tell me. Me
There is a great desire to know.
The dog said – ‘I say no, he is nothing,
Looks like the lease will be stained.
The tiger said – ‘Why the leash?’
The dog said – ‘I am kept tied during the day with a chain tied to the leash.’
Hearing this, the tiger was surprised and said
‘Is kept tied with chains? Then why can’t you go wherever you want to go?’
The dog said – ‘It is not like that, even though I am tied during the day, but when I am released at night, I can go wherever I want happily. Apart from this, the servants of the master take care of me so much, give me good food, give me a bath and sometimes the master also affectionately touches my body. Just think, I live in so much happiness.’
The tiger said- ‘Brother, congratulations for your happiness, I do not need such happiness. It is a thousand times better to suffer hunger while being free than to enjoy the pleasures of the kingdom by being extremely dependent. I will not go with you now.’
Saying this the tiger again returned to the forest.