मानकोजी बोधला भगवान्के परम भक्त थे, उनको भगवान्के दर्शन तथा उनसे वार्तालापका सौभाग्य प्राप्त था। एक बार बातचीतमें भगवान्ने कहा-‘मुझे भक्तका प्रेम-प्रसाद बड़ा अच्छा लगता है। बड़ी-बड़ी दिखावटी जेवनारोंमें मैं नहीं जाता; क्योंकि वहाँ मुझे कौन पूछता है।’ बोधलाने कहा- ‘महाराज! ऐसा क्यों होगा।’ भगवान् बोले- ‘अच्छा, कल अमुक सेठके यहाँ एक हजार ब्राह्मण भोजनका आयोजन है। मिठाइयाँ बन रही हैं। तुम कल जाकर कौतुक देखना।’
आज्ञानुसार दूसरे दिन ठीक समयपर बोधला वहाँ जा पहुँचे। देखा पंक्तियाँ लगी हैं, हजार पत्तलें परसी गयी हैं, सेठके मुनीम निमन्त्रित ब्राह्मणोंको सूची- नाम देख-देखकर बैठा रहे हैं। सेठजी खड़े हैं, कोई फालतू आदमी न आ जाय – इस निगरानीमें! इतनेमें ही वही बूढ़ा कुबड़ा ब्राह्मण कमरमें एक टाटका टुकड़ा लपेटे लाठी टेकता हुआ वहाँ आ पहुँचा। उसने सेठसे कहा ‘सेठजी! बड़ी भूख लगी है!’ सेठजीने कहा—’आपको निमन्त्रण थोड़े ही मिला था, यहाँ तो निमन्त्रित ब्राह्मणोंको छोड़कर और कोई नहीं जीम सकता।’ ब्राह्मणने कहा- ‘सेठजी! गरीब हूँ, बहुत ही भूखा हूँ। आपके यहाँ तो पूरे हजार ब्राह्मण भोजन करेंगे, एक।ज्यादा ही हो गया तो क्या हर्ज है।’ सेठजीने जरा घुड़ककर कहा- ‘नहीं-नहीं, यों बिना बुलाये आनेवाले भिखमंगोंको खिलाने लगें तो फिर क्या पता लगे । जाओ, जाओ! यहाँ कुछ नहीं मिलेगा।’ ब्राह्मणने कहा- ‘भूखके मारे प्राण जा रहे हैं, चला नहीं जाता; मैं तो खाकर ही जाना चाहता हूँ।’ यों कहकर ब्राह्मण एक पत्तलपर जाकर बैठ गया। यह देखकर सेठजी जामेसे बाहर हो गये। उन्होंने पुकारकर कहा – ‘ है कोई? इस बुढ़वाको पकड़कर बाहर तो निकालो।’ जमादार दौड़े, बूढ़े ब्राह्मणको पकड़कर लगे घसीटने । ब्राह्मणने कहा- ‘भूखों मर रहा हूँ, भाई! दया करो।’ सेठजीका गुस्सा और भी बढ़ गया, उन्होंने कहा ‘निकालो धक्के देकर बाहर। इसका बाप यहाँ रकम जमा करवा गया था सो यह उसे लेने आया है। कमबख्त कहींका, बड़ा शैतान है, अपने मनसे ही जाकर पत्तलपर बैठ गया है, मानो इसके बापका घर है।’ बोधला दूर खड़े यह सारा तमाशा देख रहे थे। सेठके चौकीदारोंने ब्राह्मणको घसीटकर बाहर निकाल दिया। ब्राह्मण बाहर निकलकर बोधलाकी ओर देखकर मुसकराया और बोला-‘देखा न ! यहाँ हम सरीखोंको कौन जिमाता है।’
Mankoji Bodhala was an ardent devotee of God, he had the good fortune of seeing and talking to God. Once in a conversation, God said – ‘I like the love-prasad of the devotee very much. I don’t go to big showy banquets; Because who asks me there.’ Bodhlan said – ‘ Maharaj! why will.’ God said – ‘ Well, tomorrow there is a meal organized for one thousand Brahmins at Amuk Seth’s place. Sweets are being prepared. You go and see the praise tomorrow.’
Bodhla reached there at the right time on the second day as ordered. Saw the lines, thousands of leaves have been sifted, Seth’s accountant is sitting after seeing the list of invited Brahmins. Sethji is standing, no useless person should come – under this watch! Meanwhile, the same old hunchbacked Brahmin came there leaning on a stick with a piece of sack wrapped around his waist. He said to Seth ‘Sethji! Very hungry!’ Sethji said – ‘You had only received the invitation, no one else can live here except the invited Brahmins.’ Brahmin said – ‘Sethji! I am poor, I am very hungry. Whole thousand Brahmins will eat at your place, if one is too much then what is the problem.’ Sethji muttered a little and said – ‘No-no, if those who come uninvited start feeding the beggars, then what would be known. go Go! Nothing will be found here. The Brahmin said – ‘He is dying due to hunger, he does not go away; I want to go after eating.’ Having said this, the Brahmin went and sat on a leaf. Seeing this, Sethji got out of his jam. He called out and said – ‘Is there anyone? Catch this old man and take him out.’ Jamadar ran, caught hold of the old Brahmin and started dragging him. Brahmin said – ‘I am dying of hunger, brother! Have mercy.’ Sethji’s anger increased even more, he said, ‘Get out by pushing out. His father had got the money deposited here, so he has come to collect it. Damn, he is a big devil, he has gone and sat on the stone, as if it is his father’s house.’ Bodhla was watching the entire spectacle from a distance. Seth’s watchmen dragged the Brahmin out. The Brahmin came out and looked at Bodhla, smiled and said – ‘Did you see? Who gets people like us here.’