ये सम्पूर्ण ब्रह्मांड और यहां पर रहने वाले प्रत्येक जीव का यहां रहने का आधार…… केवल और केवल सर्वनियन्ता सर्वेश्वर परमात्मा स्वयम है इस पूरी सृष्टि को चलाने वाले एकमात्र परमेश्वर है जो अपनी इच्छा और अपनी कृपा से सभी को यहां संचालित करते है यहां जीव मात्र की इच्छा नही चलती यहां इच्छा भी भगवान की चलती है और कृपा भी भगवान की होती है…… जिसके योग्य जो है उसे वही मिलेगा भले कोई प्रसन्न होकर स्वीकार करे किलस कर स्वीकार करे रोकर स्वीकार करे स्वीकार प्रभु की इच्छा को ही करना पड़ेगा होता है न कभी कभी जीवन मे बहुत चतुराई चालाकी समझ बूझ सभी कुछ करने पर भी वही होता है जो मन नही चाहता था कि हो……ऐसा इसीलिए हुआ क्योंकि उसमे प्रभु की इच्छा थी सो हुआ……रो झीख कर भर कहना ही पड़ेगा खूब कोस कर भगवान को तब भी यही कहना पड़ेगा कि जैसी भगवान की इच्छा हम कर ही क्या सकते थे इसीलिए सन्त जन कहते है🙇♀️कि यदि पहले ही अपने जीवन की बागडोर सर्वनियन्ता के हाथों में सौप दो तो रोकर किलस कर नही अपितु प्रसन्न मन से कहोगे कि जैसी हमारे प्रभु की राजी हम भी उसी में राजी🙇♀️🙌अर्थात हर समय प्रभु की इच्छा में अपनी इच्छा मिलाकर चलने वाला बन जाये तो उस मनुष्य से बड़भागी दूसरा कोई नही इस संसार मे……उसके जीवन मे कोई प्रश्न कोई दुविधा कोई समस्या फिर रह नही जाएगी ये अटल सत्य है श्री जी की कृपा से🙇♀️🙌भगवान शंकर जैसा वैष्णव उनके जैसा भक्त दूसरा कोई नही है उनकी धर्मपत्नी सती जिस समय उनकी बात नही मानती राम चरित मानस में प्रसंग आता है कि भगवान दण्डकारण्य में जिस समय जानकी विरह की लीला कर रहे थे तब शिव और सती वही से होकर कैलाश जा रहे थे शिव ने अपने इष्ट को देखते ही जहा खड़े थे वही से साष्टांग दण्डवत प्रणाम किया….. चूँकि भगवान उस समय लीला में थे तो भोलेनाथ समीप नही गए जिससे लीला विक्षेप न हो और सती से भी कहा कि इन्हें प्रणाम करो ये परातपर परब्रह्म परमात्मा सर्वेश्वर जगत नियंता मेरे इष्टदेव श्री राम है लेकिन सती ने प्रणाम नही किया उल्टा परीक्षा लेने के लिए कहा भगवान की……तब भगवान ने शंकर ने कहा था कि होइहे सोई जो राम रचि, रुचि राखा….. को करि तर्क बढ़ावे साका……अर्थात अब जब सती नही मान रही तो इसमें अवश्य प्रभु की ही तो इसमें अवश्य प्रभु की ही कुछ राजी होगी या उन्होंने ही कोई रचना कर रखी होगी इसके पीछे तभी बहुत प्रयास के बाद भी ऐसा होने जा रहा है यही है…..भगवान की राजी में अपनी राजी मिला देना…..भगवान शंकर खूब अच्छी तरह जानते थे क्योंकि त्रिकाल दर्शी है महादेव कि अब सती को जलकर ये शरीर त्यागना पड़ेगा और महादेव की प्राणप्यारी थी सती…..और यदि चाहते तो बचा भी सकते थे उन्हें उनकी मति फेरकर लेकिन महादेव इसीलिए महादेव है चूँकि वे भगवान के किसी भी कार्य मे बाधा नही खड़ी करते जो भगवान की राजी उसी में महादेव अपनी राजी मिला देते है इसी से भगवान के प्राण प्यारे है महादेव……जैसे माँ को वो बालक घर मे सबसे प्यारा लगता है जो माँ की हर बात को सिर झुकाकर मानता है भले उसके मन की भी न हो वह बात…..फिर भी वह माँ का मन रखने के लिए उसकी हाँ में हाँ मिला ही देता है जो माँ है….स्वयम वो जानती होगी कि उस समय ह्रदय की गहराईयो से कैसा मंगल आसीस उस बालक के लिए निकलता है कि इसने मेरा मान तो रखा मेरी बात मानकर सन्त जन कहते है🙇♀️जो बालक माता की राजी में अपनी राजी मिलाकर चलता है जीवन भर…..वह यदि प्रारब्ध में कुछ भी लेकर नही आया हो उसकी किस्मत भले 0 हो तब भी ऐसा बालक माँ की राजी में राजी मिलाकर चलने से शहंशाह बनकर जीवन भर रहता है क्योंकि उसने माँ के ह्रदय की प्रसन्नता प्राप्त कर ली माँ की हर इच्छा मानकर माँ का आशीर्वाद अमोघ होता है और ठीक इसके विपरीत कोई बहुत गुणी हो प्रारब्ध का भी खूब धनी हो लेकिन माँ का जिसने अपमान किया हो माँ की हर बात को किनारे करके चला हो जीवन भर बोले…..उसके पास जो भी कुछ रहता है भाग्य का लिखा वह भी सब नष्ट होता चला जाता है धीरे धीरे……ये अटल सत्य है श्री जी की कृपा से🙇♀️🙌 जब शरीर की माँ की इच्छा में इच्छा मिलाने से प्रारब्ध बदल सकते है तो उस परमात्मा की इच्छा में इच्छा मिलाने से कृपा क्यों नही बरसेगी दुख संकट रह कैसे जाएगा किसी के भी जीवन मे लेकिन जैसे चतुर बालक माता को मूर्ख समझता है ऐसे ही चतुर मनुष्य परमात्मा को मूर्ख समझता है और अंत मे धोखा खाता है इसी चर्चा चिंतन को अब कल के सत्संग स्त्र में आगे जारी रखेंगे श्री जी की कृपा से🙇♀️🙌🙏
चिंतन मनन अवश्य करते रहिए कृपया🙇♀️🙏सभी साधक जन…..
आज का भाव श्री जी के चरणों मे निवेदन करते हुए सभी को प्रेम से राधे राधे🙏🙏🌹🌹🙇♀️🙇♀️