🙏( निकुञ्ज का अद्भुत फागोत्सव…)🙏
ये रसोपासना समस्त उपासना से ऊँची वस्तु है…
निरन्तर “निकुञ्ज लीला” के चिन्तन की यह धारा अगर चित्त में चलती रहे… तो सत्संग भी नही सुहाता… समाज सुधार की बातें तो छोड़ ही दो… अध्यात्म भी नीरस वस्तु लगने लगती है…अजी ! विचार करो… जिसका मन उस “प्रेम राज्य” में चला गया…जहाँ रस ही रस है… जहाँ सबकुछ प्रेममय है…उसे योग, ज्ञान, आत्मा परमात्मा जैसी बातें नीरस ही तो लगेंगीं !
“उड़त गुलाल लाल भयो अम्बर”
निकुञ्ज के होरी महोत्सव में… इतना गुलाल उड़ा कि… बादल लाल नही हुये… बादलों का लाल होना कोई बड़ी बात नही है…पर रसिकजन कहते हैं…आकाश ही लाल हो गया ।
उफ़ ! यानि अन्तःकरण ही लाल हो गया…मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार ये सब अनुराग के रंग में रंग गए… ।
अब थोड़ा विचार करके देखो – जिसका अन्तःकरण ही प्रेम में रंग गया हो… उसे कोई और बातें लुभा पाएंगीं ? जिस को प्रेम देवता ने अपना बना लिया… वह तो रंग गया… उस पर कोई दूसरा रंग चढ़ेगा ही नही… और अगर दूसरा रंग चढ़ रहा है तो समझो प्रेम का रंग नही था… मोह का रंग चढ़ा था… जो बहुत कच्चा होता है ।
उफ़ ! फाग के रंग में तो “सुधि हूँ की जहाँ सुध बिसरी” ।
बुद्धि के देवता ब्रह्मा की बुद्धि भी चकरा गयी…फिर साधारण की बात ही क्या !
चलिये ! जल्दी ! निकुञ्ज में…वहाँ अद्भुत रंग बरस रहा है !🙏
🙏”फाग खेलने” के लिये युगल ने आज्ञा दे दी…बस – ये जानते ही सब सखियाँ “हो हो होरी” “हो हो होरी” कहती हुयी… अबीर गुलाल लेकर युगल को सखियों ने घेर लिया था…निकुञ्ज झूम उठा… लताएँ आनन्दित हो उठी थीं… पीले पीले फूलों को लताओं ने गिराना शुरू कर दिया था… थोड़ी शीतल हवा भी चलने लगी थी ।
डफ बजाना सखियों के दल ने प्रारम्भ किया ।
“नही नही… ऐसे आनन्द नही आएगा”
श्रीजी ने सखियों को रोका ।
सब सखियाँ रुक गयीं… और एक दूसरे को प्रश्नवाचक नजर से देखने लगीं…
फिर कैसे आनन्द आएगा प्यारी ?
श्याम सुन्दर ने पूछा ।
प्यारे ! दो दल बनने चाहिये… एक दल आपका हो और एक मेरा ।
श्रीजी ने बड़े नखरीले अंदाज से ये बात कही थी ।
तो आपही “दल” बना दो… क्यों कि ये सारी सखियाँ आपकी ही हैं… और आपकी ही बात मानती हैं ! श्याम सुन्दर ने मुस्कुराते हुये कहा ।
🙏हे स्वामिनी ! आप बताओ ? कैसे – कौन-कौन सी सखियाँ किन के साथ रहेंगी इस फागोत्सव में ! रंगदेवी ने अति उत्साह के साथ ये बात पूछी थी ।
मुस्कुराती हुयी श्रीजी ने चार-चार सखियों को बाँट दिया… दो दल में… चार सखियों को अपने साथ रखा… और चार सखियाँ श्याम सुन्दर को दे दीं ।
अष्ट सखियाँ खड़ी हैं !
और उधर आमने-सामने श्याम सुन्दर और प्रिया जी खड़ीं हैं ।
प्रिया जी ने रंगदेवी को कहा… तुम मेरे साथ आओ !
रंगदेवी खुश हो गयीं… और उछलते हुये श्रीजी के साथ खड़ी हो गयीं ।
चम्पकलता ! तुम श्याम सुन्दर के साथ खड़ी हो जाओ… चम्पकलता श्याम सुन्दर के साथ जाकर खड़ी हो गयीं ।
श्रीजी ने कुछ सोचा… फिर बोलीं –
सुदेवी ! तुम मेरे साथ हो… सुदेवी आनन्दित होती हुयीं श्रीजी के साथ खड़ी हो गयीं ।
चित्रा सखी ! तुम श्याम सुन्दर के साथ… सिर झुकाकर आज्ञा मानती हुयी… चित्रा श्याम सुन्दर के साथ खड़ी हो गयीं ।
ललिता ! तुम मेरे साथ… जैसे ही श्रीजी ने कहा… श्रीजी की सब सखियाँ “हो हो हो”… हर्षित होते हुए चिल्लाने लगीं ललिता सखी को अपने पक्ष में पाकर ।
तुंगविद्या ! तुम लाल जी के साथ… श्रीजी के चरणों में प्रणाम करते हुए तुंगविद्या सखी जाकर श्याम सुन्दर के साथ खड़ी हो गयी थीं ।
विशाखा ! तुम मेरे साथ… श्री जी की बात सुनते ही विशाखा मटकते हुए श्रीजी के पक्ष में खड़ी हो गयीं ।
इन्दुलेखा ! तुम प्यारे के साथ !
…श्री जी ने इस तरह सखियों का दल बना दिया ।
और इतना ही नही… इन सखियों की भी अष्ट-अष्ट सखियाँ हैं… वो सब अपनी-अपनी सखियों के साथ खड़ी हो गयीं थीं ।
इस तरह दो दल बन गए हैं… उधर श्यामसुन्दर हैं… इधर श्रीजी हैं ।
तभी “श्रीहरिप्रिया” सखी ने लाकर “कनक पिचकारी” सबके हाथों में एक एक दे दी… रंग से भरे बड़े बड़े चाँदी के पात्र रखवा दिए… उसमें केशर, इत्र फुलेल युक्त जल रख दिया ।
एक साथ दोनों दल बोल उठे… “हो हो हो हो होरी है”
और…🙏
सब सखियों ने सफेद वस्त्र धारण किये हुए हैं…आज तो श्याम सुन्दर ने भी और श्रीजी ने भी ।
क्या दिव्य छटा उभर के आयी है… दोनों दलों से पिचकारी की रंग बिरंगी धार चल पड़ी… सीधे आँखों में “तक” के मार रहे हैं पिचकारी की धार… सफेद वस्त्र देखते ही देखते रंग गए…अब कोई देखे तो पहचान भी नही पायेगा कि ये वस्त्र सफेद भी थे ।
मार मच गयी… पहले तो श्याम सुन्दर और उनका दल हावी हुआ था… पर जैसे ही श्रीजी ने आवाज लगाई… “हो हो हो हो होरी है” कहती हुयीं थोड़ी आगे बढ़कर पिचकारी की धार से जैसे ही श्याम सुन्दर की ओर मारी… पीछे हटना ही पड़ा श्याम सुन्दर को, और उनके दल की सखियों को… श्रीजी आगे बढ़ती जा रही हैं… श्याम सुन्दर पीछे होते जा रहे हैं ।
ये देखकर “श्रीहरिप्रिया सखी” और रस में डूब गयीं…
उन्होंने अबीर और गुलाल रख दिए दोनों दलों के मध्य में ।
बस फिर क्या था… अबीर फेंक कर मारने लगीं श्रीजी श्याम सुन्दर के सीधे आँखों में… सखियों ने अबीर गुलाल की वर्षा कर दी… चारों ओर अब कुछ नही दीख रहा… बस अबीर और गुलाल ही गुलाल । बाजे बजने लगे… ढफ नगाड़े की ध्वनि से निकुञ्ज गूँज उठा ।…ऐसा लगने लगा कि “मेघ मधुर ध्वनि” से गरज रहे हैं…”रस वर्षा” का कोई ओर छोर नही था…मानो घन और दामिनी स्वरूप – श्याम सुन्दर और श्री राधा जी ही उदार होकर “प्रेम रंग” बरसा रहे थे… खेल में आनन्द सिन्धु उमड़ पड़ा था ।
आकाश में रंगबिरंगे बादल छा गए… पर ये क्या अद्भुत दृश्य था निकुञ्ज में… बादल ही नही… आकाश ही रंग रहा था रंग में… ।
सर्वत्र रंग और रस की मानो बाढ़ ही आगयी थी ।
श्रीजी के आनन्द का ठिकाना नही है आज… वो आनन्द के अतिरेक में “हो हो हो हो होरी है”…कहते हुए हाथों में अबीर लेकर श्याम सुन्दर के आँखों में मारती जा रही हैं… और बड़ा उत्साह आरहा है उन्हें ।
श्याम सुन्दर अपना मुख बचाते हैं… पर प्रिया के गुलाल की मार से बच नही पाते… बचें भी कैसे… क्यों कि अपनी प्यारी को देखे बिना ये एक क्षण भी नही रह सकते… और जब प्यारी को देखते हैं… तभी अवसर पाकर श्रीजी अबीर उनके आँखों में मार देती हैं ।
अब तो थक गए श्याम सुन्दर… और बैठ गए… हाथ जोड़कर बोले –
🙏”एहो बचाय डारौ इन नैनन, सुनिये श्यामा प्यारी !
अंतर मुख अवलोकनि कौ सही, सकत न सौंह तिहारी !!”
घुटनों के बल बैठ गए थे श्याम सुन्दर…और प्रार्थना कर रहे थे…
🙏हे श्यामा प्यारी ! मेरी आप से प्रार्थना है… कि – गुलाल को मेरे नेत्रों से बचाकर ही डालो… मेरे नयनों में मत मारो ।
क्यों प्यारे ! हार गए ? श्रीजी हँसी… खूब हँसते हुए बोलीं ।
मैं जीता ही कब हूँ आपसे ? अपना सिर झुका दिया श्याम सुन्दर ने ।
पर क्यों न डालूं आपके नयनों में अबीर ? खिलखिलाकर हँसते हुए श्रीजी ने कहा ।
क्यों कि आप जब मेरे नयनों में अबीर डालती हो ना… तो मेरे नयनों के आगे अन्धकार छा जाता है… वैसे कोई बात नही… पर उस समय मुझे घबराहट होती है… श्याम सुन्दर ने कहा ।
किस बात की घबराहट प्यारे ! श्रीजी पूछ रही हैं ।
“तब आप दिखाई नही देतीं”… आपके मुख माधुर्य का दर्शन मुझे नही मिल पाता… मैं उस क्षण, आपको देखने से वंचित रह जाता हूँ ।
बस उस समय जो मुझे बैचेनी होती है… वो असहनीय है .।
इतना कहते हुए श्याम सुन्दर रंग में रंगी अपनी प्यारी को भाव माधुरी में डूब कर निहारने लगे थे ।
स्तब्ध से हो गए थे उस रूप माधुरी का दर्शन करते हुए ।
तभी… श्रीजी ने अबीर नीचे रख दिया… और केशर से भरा पात्र लेकर श्याम सुन्दर के ऊपर पूरा का पूरा डाल दिया ।
केशर के रंग से नहा गए श्याम सुन्दर… आहा ! क्या झाँकी है ।
हे प्यारी ! मुस्कुराते हुए श्याम सुन्दर बोले… धन्य हो आप…
मैं तो पहले ही आपके प्रेम रंग में रंगा हुआ था… ऊपर से ये केशर का रंग डाल कर आपने “प्रेम के रंग को” और गाढ़ा कर दिया… आपके इस सहज सनेह का मैं क्या वर्णन करूँ .! आपकी ये प्रीत की रीत वास्तव में विलक्षण है… और आपकी ये बोली… “हो हो हो हो होरी है”…मेरे कानों से होती हुयी मेरे हृदय में जाकर बैठ गयी है… मैं हृदय से ही उसे सुन रहा हूँ… हे प्रिया जी ! अब तो मैं कुछ बोल ही नही पा रहा… आपकी ये दिव्य छवि मेरे अंदर समा गयी है ।
इस छवि को देखकर मैं क्या न्यौछाबर करूँ… हे प्यारी ! “अपने प्राण” ही मैं आपकी इस रूपमाधुरी पर वारता हूँ ।
ये कहते हुए श्याम सुन्दर ने अपनें दोनों बाहों को फैला दिया…
श्रीजी दौड़ पडीं… और अपने प्रियतम को बाहु पाश में भर लिया था ।
सखियाँ इस झाँकी का दर्शन कर देहभान भूल गयीं ।
🙏मधु डोलनि “हो हो” बोलनी, पर प्राण करो बलिहारी !
“श्री हरिप्रिया” बसी हिय में छबि, टरत नही छिन टारी !!🙏
शेष “रसचर्चा” कल –
🚩जय श्रीराधे कृष्णा🚩