“चौसर खेल” – प्रेम प्रसंग
🙏ईश्वर के साथ सखा भाव की चर्चा तो उपनिषद् करती हैं…”द्वा सुपर्णा सयुजा”(मुण्डकोपनिषद्)… इत्यादि… हाँ प्रकृति और पुरुष के रूप में सांख्य शास्त्र भी ईश्वर के साथ पत्नी भाव (कान्ता भाव) को स्वीकार करके…भक्तों ने इस तरह ईश्वर की उपासना भी की है ।
🙏माध्व गौड़ेश्वर सम्प्रदाय के आचार्यों ने गोपी भाव की चर्चा की…और भागवत जैसे भक्ति के सर्वमान्य ग्रन्थों में गोपी भाव को सर्वोच्च भाव की संज्ञा भी दी गयी है…पर ये “सखीभाव” क्या है ?
🙏सखी भाव की भावना मात्र, वृन्दावनीय उपासना में ही मिलती है…हाँ मिथिला जनकपुर की उपासना में भी इसका दर्शन होता है ।
🙏पर मुख्य रूप से इसका स्पष्ट दर्शन वृन्दावन के रसिक सन्तों ने ही किया है और करवाया है ।
🙏”सखी भाव” एक सर्वोच्च भाव है…जो ईर्ष्या से मुक्त है…जो भोग की कामना से मुक्त है…स्पर्धा मात्सर्य जैसे अवगुणों से पूर्ण मुक्त दिखाई देती हैं…अगर इसकी तुलना गोपीभाव से करें…तो गोपी भाव में ईर्ष्या भी दिखाई देती है…गोपियों की आपस में स्पर्धा भी दिखाई देती है…और मत्सरता भी है ही…और कृष्ण के प्रति भोग की कामना भी गोपियों के मन में है…ऐसा लगता ही है ।
🙏पर सखी भाव !… एक ऐसा उच्चतम भाव है…जो पूर्णरूप से स्वसुख का परित्याग करके बैठी है…सखी भाव के बिना निकुञ्ज की सनातन लीला का संचालित होना मुश्किल ही नही असम्भव ही लगता है…सखी भाव में पुत्र, मित्र, समर्पण और आत्मवत्… इन भावों की प्रचुरता स्पष्टतः दिखाई देती है…”सखी भाव” धारण करने पर मन की गति उच्च से उच्चतम स्थिति पर पहुँचती चली जाती है ।
🙏हमारे वृन्दावन के सन्तों ने इस सखीभाव को वासना रहित…प्रेम के उस उच्चासन पर विराजमान किया है…जहाँ मात्र तटस्थ भाव से युगल केलि का आनन्द लेना ही इनका सब कुछ है ।
🙏कल एक अच्छे विद्वान ने मुझ से पूछा…”पुरुष हैं हम, फिर स्त्रीत्व क्यों स्वीकार करें ? ये प्रश्न सखी भाव को न समझने के कारण उठता है…”सखीभाव” एक भाव है…पहले तो ये समझें ।
🙏मन से पूर्ण रूप से निःस्वार्थ होना ये “सखी भाव” है…आत्म सुख का पूर्ण विसर्जन करना ये “सखी भाव” है…बस अपने प्राण धन ईश्वर और उनकी आल्हादिनी की लीला में अपने आपको झोंक देना…यही है “सखीभाव” ।
🙏सब कुछ उनकी लीला ही तो है… ब्रह्म और आल्हादिनी की लीला ही तो चल रही है… नही ?
चलिये ! सखी भाव से भावित होकर लीला का दर्शन कीजिये ।🙏
🙏प्यारे ! आपको आज ये “हार” पहनाऊंगी…
ललिता सखी हँसते हुए बोली श्याम सुन्दर को ।
क्यों ? हमें क्यों पहनाओगी ?
श्याम का मुख मण्डल कुछ रोष पूर्ण हो गया था ।
🙏अरे ! अभी तो खेल शुरू भी नही हुआ प्यारे ! और आप अभी से खिसिया भी रहे हो…सखियाँ हंस पड़ीं थीं ।
🙏”प्रकाश कुञ्ज” में युगलवर विराजे हैं…रात्रि छा गयी है…पर दीपों का प्रकाश पूरे निकुञ्ज में जगमगा रहा है…आहा ! ।
जिधर देखो…उधर ही दीप मालिकाएं आपका स्वागत कर रही हैं ।
हर वृक्ष के नीचे गोलाकार से दीपों को रखा गया है…और उन दीपों में सुगन्धित तेल है…जिसके कारण वातावरण और सुगन्ध से महक रहा है ।
सुन्दर सिंहासन है…जिसमें युगलवर विराजे हैं…
दीपावली की रात है…सखियों ने एक सुवर्ण की चौकी में चौपड़ बिछा दिए हैं…अब चौसर खेलने खिलाने के लिये सखियाँ भी उत्सुक हो कर बैठ गयीं हैं ।
🙏”ये हार आपको ही पहिनाऊंगी”…ललिता सखी ने पहले ही हार की बात करके… श्याम सुन्दर का मूड ही खराब कर दिया था ।
जो हारेगा उसे ही पहिनाओगी ना ? तो क्या पता तुम्हारी स्वामिनी ही हारें ! चिढ़ गए थे श्याम सुन्दर ।
सखियाँ हँसते हुए बोलीं…ना ! हारोगे तो लाल जु ! आप ही ।
चलो ! देखते हैं…कौन हारता है… और जीतता है… और सुनो सखियों ! हम इस खेल में माहिर हैं… कुछ सहज हुए अब श्याम सुन्दर ।
“देखते हैं”…सखियों ने आँखें मटकाते हुये कहा…
🙏और पासा श्रीजी के हाथों में दिया…अब सखियों ने कहा…चलिये स्वामिनी ! पहले आपही पासा डालिये ।
नही सखी ! पहले पासा हम डालेंगे… बड़ी ठसक से बोले श्याम सुन्दर… और श्रीजी के हाथों से पासे ले लिए ।
हाथों से छीन लिया रंगदेवी ने पासे…और वापस श्रीजी के हाथों में देते हुए बोलीं…पासे तो पहले हमारी स्वामिनी ही डालिंगी ।
🙏श्याम सुन्दर ने याचक की भाँती श्रीजी की ओर देखा…
🙏दया आगयी श्रीजी को…”प्यारे ही डालेंगे पहले पासे”…
ख़ुशी से उछल पड़े थे श्याम सुन्दर…
सखियों की ओर देखते हुए मटकते हुए पासे हाथों में खिलाने लगे…
तो ललिता सखी बोली…चाहे कुछ भी कर लो…ये हार तो आपके ही गले में डालूंगी मैं ।
अरी ! शुभ शुभ बोल…तू अशुभ बहुत बोलती है…
🙏अशुभ नही प्यारे ! चाहे पहले पासे डालो… या बाद में…हारना तो तुम्हें ही है…रंगदेवी ने भी अपने मन की बात कह दी थी ।
श्याम सुन्दर अब पासे फेंकते हैं…फिर दोनों अपनी अपनी चाल ले लेते हैं…सखियाँ बड़े ही प्रेम से इस खेल को देख रही हैं…और आनन्दित होती हैं…निकुञ्ज की दीपमालिकाएं भी प्रसन्न हैं इस खेल को देखते हुए… आज तो ।🙏
“चौसर खेल” शुरू हो गया है…प्यारे ने चाल चली है…उनके 5 अंक आये हैं…प्यारी ने चाल चली…उनके 6 अंक आये… सखियाँ ख़ुशी से उछल पड़ी… इस तरह अंकों के साथ खेल आगे बढ़ रहा है…सबको उत्साह है…और सब श्रीजी की तरफ ही हैं…जब श्रीजी का दाँव ऊँचा लगता है…तब प्यारे खिसिया जाते है…और अंक चुपके से बदल देते हैं ।
गलत बात है… लाल जु ! गलत बात है…
ललिता सखी आँखें दिखाकर कहती हैं ।
क्या गलत बात है !… मेरे 6 अंक आये थे और अभी भी 6 आये हैं…12 हो गए ना…लाल जु आक्रामक हो उठते हैं…
पर इस बार आपके 6 अंक नही आये थे… आपने गोटी पलट दी है ।
ललिता सखी भी बहस में उतर जाती है ।
अरी सखी ! मैं झूठ क्यों बोलुँगों…मैं सच कह रह्यो हूँ…अगर तुम को विश्वास नही है…तो मैं अपनी सौगन्ध खाता हूँ…श्याम सुन्दर जैसे ही अपनी झूठी कसम खाने लगे…श्रीजी ने रोक दिया… और नयनों से इशारा करके बोलीं…नही…अपनी कसम झूठी मत खाओ प्यारे !
पर ऐसा एक बार नही…बार बार करते हैं श्याम सुन्दर… बार बार अपनी हार देख रहे हैं…और बार बार झगड़ते रहते हैं ।
श्रीजी अब चाल चलती हैं…सखियाँ सब जोर से बोल रही हैं…प्यारी जु ! बस 12 अंक चहिए अब… एक बार 6… और दूसरी बार 6… फिर आप ही जीतोगी ।
चाल चल रही हैं श्रीजी… सब एकटक गोटी की ओर देख रहे हैं…आँखें बन्दकर करके लाल जु… कुछ बुदबुदा रहे हैं ।
श्रीजी ने सहज भाव से गोटी फेंकी…बस फेंकते ही…6 अंक आ गये…सखियाँ ख़ुशी से उछल पड़ीं…
“पर अब 6 तो ले आओ…तब जीत मानी जायेगी”…श्याम सुन्दर का मुख मण्डल म्लान सा हो रहा है…
हाँ ..हाँ…अब भी हमारी श्रीजी 6 ही अंक लेकर आएँगी…
स्वामिनी ! 6… लाडिली जु ! 6… पूरा निकुञ्ज चिल्ला रहा है…श्रीजी ! 6…
श्याम सुन्दर बोले… सब श्रीजी के ही पक्ष धर हैं यहाँ तो ।
श्रीजी ने गोटी अपने कर कमलों में हिलाई…और… और…
सारी सखियाँ… चिल्ला उठीं…6…और 6 ही अंक आया ।
बस क्या था… सखियों ने उठा लिया अपनी गोद में श्रीजी को… और घुमाने लगीं…जय हो… जय हो… हमारी प्यारी जु की…जय हो हमारी लाडिली जु की ।
बस उसी समय ललिता सखी आयी…नाचते हुये…मटकते हुए श्याम सुन्दर के पास… और उसके हाथ में जो “हार” था…उसे श्याम सुन्दर के गले में डाल दिया ।
और खिसिया गए थे श्याम सुन्दर…
ये जब देखा… तो सखियों से श्रीजी ने कहा… मुझे उतारो नीचे… सखियों ने श्रीजी को नीचे उतारा…तो श्रीजी पास में गयीं प्यारे के… और बड़े प्रेम से ठोड़ी में हाथ रखते हुए बोलीं –
🙏”हँसी हँसी प्रीतम सों कह प्यारी !
मनमोहन अब क्यों खिसियावो, कहा भयो एक बाजी हारी !!
अरे ! प्यारे ! क्यों खिसिया रहे हो…एक बाजी तो हारे हो ।
और ये तो खेल है… हारना और जीतना तो खेल में लगा ही रहता है ।
🙏”कहे सुने को बुरो न मानो, तुम समान है कौन खिलारी !
🙏”नारायण” उदास जिन होवो, अबकी ह्वै हैं जीत तिहारी !!”
🙏हे प्यारे ! बुरा मत मानो…और तुम तो बड़े खिलाड़ी हो…चलो आगे से तुम जीतना मैं हारूँगी… इतना कहकर अपने प्राणधन को श्रीजी ने हृदय से लगा लिया था ।
बस फिर क्या था… सखियाँ जय जयकार कर उठीं…
🙏जय जय श्री राधे ! जय जय श्री राधे ! जय जय श्री राधे !!
🙏श्याम सुन्दर अब सहज हो गए थे ।🙏
शेष “रस चर्चा” कल –
🚩जय श्रीराधे कृष्णा🚩
“Backgammon” – Love Affair
🙏The Upanishads talk about the friendly feeling with God…”Dva Suparna Sayuja”(Mundakopanisad)… etc… Yes, Sankhya Shastra as nature and man also accepting the wife feeling (Kanta feeling) with God…the devotees have this Like worship of God is also.
🙏 The Acharyas of the Madhva Gaudeshwar sect discussed Gopi Bhav… and in the universal texts of devotion like Bhagwat, Gopi Bhav has also been given the noun of the supreme Bhav… but what is this “Sakhi Bhav”?
🙏 The feeling of friendship is found only in the worship of Vrindavan… Yes, it is also seen in the worship of Mithila Janakpur.
🙏 But mainly it has been clearly visible by the devotees of Vrindavan and got it done.
🙏”Sakhi Bhav” is a supreme emotion…which is free from jealousy…which is free from the desire of enjoyment…competition appears completely free from demerits like matsarya…if it is compared with Gopi Bhaav…then jealousy is also visible in Gopi Bhaav There is…there is competition among the gopis…and there is also jealousy…and the gopis also have the desire to enjoy Krishna…it seems so.
🙏 But Sakhi Bhaav!… There is such a supreme emotion… which is sitting completely abandoning self-pleasure… Without Sakhi Bhaav, it is not only difficult but impossible to conduct Sanatan Leela of Nikunj… In Sakhi Bhaav, son, friend, dedication and Atmavat… the abundance of these feelings is clearly visible… On adopting “Sakhi Bhaav” the speed of the mind goes on reaching from higher to the highest state.
🙏 The saints of our Vrindavan have made this companionship sit on the high seat of lustless love…where their only aim is to enjoy the couple with a neutral attitude.
🙏 Yesterday a good scholar asked me… “We are men, then why accept femininity? This question arises because of not understanding the feeling of friendship…”Friendship” is a feeling… First of all understand this.
🙏 To be completely selfless from the heart is “Sakhi Bhaav”… To completely immerse oneself in the happiness of self is “Sakhi Bhaav”… Just to throw oneself in the pastime of God and His pleasure… This is “Sakhi Bhaav”.
🙏 Everything is their leela only… Brahma and Alhadini’s leela is going on… isn’t it?
Move ! Get darshan of Leela by being influenced by the feelings of a friend.🙏
Dear! I will make you wear this “necklace” today…
Lalita Sakhi laughingly said to Shyam Sundar.
Why ? Why would you wear us?
Shyam’s face was full of fury.
Hey! The game hasn’t even started yet, dear! And you have been laughing since now too… The friends were laughing.
🙏 The couple is sitting in the “Prakash Kunj”…the night has set in…but the light of the lamps is shining in the entire Nikunj…Aha! ,
Wherever you look, there the owners of lamps are welcoming you.
Under each tree, round-shaped lamps have been placed…and there is scented oil in those lamps…due to which the atmosphere is full of fragrance.
There is a beautiful throne… in which the couple is sitting…
It is the night of Diwali… The friends have spread the chaupads in a golden post… Now the friends have also sat down eagerly to play backgammon.
🙏”I will wear this necklace only on you”… Lalita Sakhi had already spoiled Shyam Sundar’s mood by talking about the necklace.
Will you wear the one who loses? So who knows if your mistress will lose! Shyam Sundar was irritated.
The friends said smilingly… no! If you lose, Lal Ju! Only you
Let us go ! Let’s see… who loses… and wins… and listen friends! We are experts in this game… Some have become comfortable, now Shyam Sundar.
“Let’s see”… the friends said rolling their eyes…
🙏 And the dice was given in the hands of Shreeji… Now the friends said… Let’s go Swamini! First you throw the dice.
No friend! First we will throw the dice… said Shyam Sundar with a big thud… and took the dice from Shreeji’s hands.
Rangdevi snatched the dice from her hands… and while giving them back to Shreeji, she said… Our mistress will throw the dice first.
🙏 Shyam Sundar looked at Shreeji like a petitioner…
Kindness came to Shreeji… “Only the beloved will cast the first dice”…
Shyam Sundar was jumping with happiness.
Looking at the friends, they started feeding the dice in their hands.
So Lalita Sakhi said… no matter what you do… I will put this necklace around your neck.
Hey! Speak auspicious… you speak a lot of inauspicious…
🙏 Not inauspicious dear! Whether you roll the dice first… or later… you have to lose… Rangdevi had also spoken her mind.
Shyam Sundar now throws the dice…then both take their own moves…the friends are watching this game with great love…and rejoice…the lamp owners of Nikunj are also happy watching this game…today.🙏
The “Chaoser Game” has begun…The Beloved has made a move…He has 5 points…The Beloved has made a move…He has 6…The friends jump with joy…This is how the game is progressing with numbers…Everyone is excited Yes…and everyone is on Shreeji’s side only…when Shreeji’s bet seems high…then the beloveds laugh…and change the numbers secretly.
Wrong thing… Lal Ju! It is wrong…
Lalita Sakhi says by showing eyes.
What a wrong thing!… I had 6 marks and still 6 have come…12 ho gaye na…Lal ju get aggressive…
But this time you did not get 6 marks… You have thrown the ball.
Lalita Sakhi also gets into the argument.
Hey friend! Why should I lie… I am telling the truth… If you do not believe… then I swear… As soon as Shyam Sundar started swearing falsely… Shreeji stopped… and pointing with eyes she said… no… her Don’t take false oath dear!
But not like this once… Shyam Sundar does it again and again… repeatedly seeing his defeat… and keeps on fighting again and again.
Shreeji is now moving…all the friends are speaking loudly…Dear Ju! Just 12 points are needed now… once 6… and second time 6… then you will win.
Shreeji is doing the trick… Everyone is looking at the pot… closing the eyes, Lal Ju… is mumbling something.
Shreeji threw the ball instinctively…just after throwing it…six points came…the friends jumped with joy…
“But now bring 6…then it will be considered as victory”…Shyam Sundar’s face is turning pale…
Yes..yes…even now our Shreeji will bring only 6 marks…
Mistress! 6… Dear Jo! 6… The whole Nikunj is shouting… Shreeji! 6…
Shyam Sundar said… Everyone is on the side of Shreeji here.
Shreeji shook the goti in his lotus…and…and…
All the friends… shouted… 6… and only 6 marks came.
Just what was it… the friends lifted Shreeji in their lap… and started to spin… Jai Ho… Jai Ho… our beloved Ju Ki… Jai Ho Hamari Ladili Ju Ki.
Just at that time Lalita Sakhi came… dancing… near Shyam Sundar while dancing… and the “necklace” in her hand… put it around Shyam Sundar’s neck.
And Shyam Sundar had gone to Ksiya…
When I saw this… then Shreeji said to the friends… get me down… the friends got Shreeji down… then Shreeji went near the beloved… and with great love said keeping her hand on the chin –
🙏” Laughter, love, say dear! Why should Manmohan laugh now, where are you, you have lost a game!!
Hey ! Dear! Why are you crying… you have lost a game.
And this is a game… Losing and winning are always involved in the game.
🙏 “Don’t feel bad about what you say or hear, who is a player like you!
🙏”Narayan” who are sad, this time there is victory !!
🙏 Hey dear! Don’t feel bad… and you are a big player… come on, you will win from now on, I will lose… By saying this, Shreeji hugged his life and wealth.
What was it then… The friends woke up cheering…
🙏 Jai Jai Shri Radhe! Hail Hail Lord Radhe ! Hail Hail Lord Radhe !!
Shyam Sundar was comfortable now.
The rest of “Juice Discussion” tomorrow –
🚩Jai Shri Radhe Krishna🚩