रसोपासना – भाग-40

आज के विचार

🙏( शरदोत्सव – रस लीला )🙏
!! !!

ये भाव सेवा है…भाव से ही साधक को सबकुछ करना है ।

हाँ आरंभिक अवस्था में विशेष स्थान पर बैठकर ही इसका अभ्यास करना पड़ता है…जैसे – श्रीधामवृन्दावन, बरसाना, बृजभूमि का कोई भी स्थल या मिथिला की भूमि… मिथिला की भूमि कहने का मेरा अभिप्राय इसलिये है कि वहाँ भी इस रसोपासना का बीज पड़ा है… विवाह उत्सव श्रीकिशोरी जु का और सखी भाव का प्राकट्य वहाँ भी हुआ है…मेरा अनुभव है इसलिये मैं ये कह सकता हूँ ।

बाकी – भाव जगत में स्थित होकर आप अपने हृदय को ही श्रीधाम वृन्दावन बनाकर कहीं भी इस “रसोपासना” का अभ्यास कर सकते हैं ।

ये निकुञ्ज रस धीरे धीरे सहज होने लगता है…आप कहीं भी हों…कभी भी युगल की लीला सहज प्रकट होनी शुरू हो जाती है ।

मैंने कई महापुरुषों को देखा है…और आज भी श्रीजी की कृपा से मुझे ऐसे महापुरुषों के दर्शन हो जाते हैं ।

ये आँखें बन्दकर के ध्यान करने का विषय नही है…ये भावना से, खुली आँखों से ही सब कुछ प्रकट होना शुरू हो जाता है ।

इस भाव उपासना की कोई सीमा नही है…ऐसा ही होगा… ऐसा ही होता है…ऐसा भी कोई कह नही सकता… क्यों कि ये सबकी अपनी अपनी निज अनुभूति पर निर्भर करता है… और अनुभूति सबकी निज ही होती है…।

याद रहे… देखा देखी प्रेम नही हुआ करता… अपने दूखे बिना कोई रोता भी नही है…और अपना प्रेम जब तीव्र हो जाता है…तब सबकुछ प्रियतममय होता चला जाता है ।

तब साधक और निकुञ्ज एक हो जाते हैं…सब कुछ झूमने लगता है ।

निकुञ्ज ही साधक का देह बन जाता है…और उसमें प्रियाप्रियतम विहार करने लगते हैं…

ये मैं लिखी बातें या सुनी बातें नही कह रहा ।

उफ़ !

🙏हम में कुञ्ज, कुञ्ज में हम हैं, कुञ्ज बिहारी सोई मम हैं !
“श्रीहरिदास” के रस में सम हैं , अब काहू की रही न गम हैं !!

ये देह ही निकुञ्ज बन जाता है…उस उच्चावस्था में…और साधक का मन “सखी” बनके युगल केलि को निरखता रहता है ।🙏


चरण दबाते हुये सखी गदगद् हो जाती हैं…

शैया में विराजे युगल के कोमल चरणों को सखी दबाती है…

युगल की एड़ी सखी की ठोड़ी से लगी है…और वो सोये हुये युगल को अपलक देख रही है…इस सुख का वर्णन क्या किया जा सकता है ? “रंग महल” की सेवा प्राप्त करने पर बोलना और डोलना ये सखी के वश की बात तो है नही…क्यों कि “गहरो प्रेम समुद्र को”

इस समुद्र में बहुत गहराई है…जो डूब गया… वो भला बोल पायेगा ?

पायल देखती है सखी श्रीजी के चरणों में…”विहार” में ये विघ्न जानकर उन्हें चुपके से उतार देती है…फिर चलने लगती है…क्यों कि अब चरण दबाना विघ्न ही डालना है ।

पर फिर लौट आती हैं दोनों सखियाँ रंगदेवी और ललिता… अपने पलकों से चरणों को छूती हैं…जी भर के दर्शन करती हैं…और फिर बाहर चुपके से चली जाती हैं ।

बाहर सखियाँ खड़ी हैं…कुञ्ज रंध्रों से निहार रही हैं ।

सखी ! देखो ! देखो ! युगल का रूप कैसा सुन्दर और अद्भुत लग रहा है…सो रहे हैं श्याम सुन्दर… पर सोते हुए भी उनके नेत्र आधे खुले हुए हैं…और उन अर्ध खुले नयनों से निहार रहे हैं अपनी प्राण प्रिया को…सखी ! मैं तो सुध बुध भूल रही हूँ…सोते हुए इनकी छवि जैसी लग रही है…मेरा पास तो कोई उपमा भी नही है ।

तभी आकाश में पूर्ण चन्द्र उदित हो गए… शरद की पूर्णिमा आ गयी ।

सखी ! ये क्या हुआ ? निकुञ्ज एकाएक प्रकाश से नहा गया है ।

चुँधियां गये हैं युगल के नयन भी…प्रिया जु का मुख चन्द्र देखकर मन्द मन्द मुस्कुरा रहे हैं लाल जु ।

सखियों ने देखा…रंगदेवी और ललिता दोनों तुरन्त रंगभवन में गयीं…सखियों का मन कहाँ लगता है इन युगल को देखे बिना… आहा ! पूर्णिमा की चाँदनी में युगल का रूप कैसा दमक रहा है…सखियाँ आनंदित हैं…थाल में मोतियाँ रखी हुयी थीं…युगल के ऊपर मोतियों को वार कर चारों ओर बिखेर देती हैं…पूरा निकुञ्ज चकाचौंध हो रहा है… क्या दिव्य अद्भुत छटा बिखर रही है ।🙏


चरणों को दबाना फिर शुरू किया है सखियों ने…धीरे धीरे ।

ये अंग संगिनी तो हैं प्रिया प्रियतम की…सखियाँ माहवार लगे चरणों में अपनी ऊँगलीयाँ फेरती हैं…तो श्रीजी अपने चरणों को समेट लेती हैं । अपने पलकों को लाल जु के चरण तलवों में लगाती हैं…तो खिलखिला उठते हैं लाल…

🙏हे युगल सरकार ! आप जानते ही हो…आप ही हो हमारे प्राण… आपही हो हमारे जीवन सर्वस्व… एक निमेष भी आपके बिना हमारा मन नही लगता…

🙏रंगदेवी गदगद् भाव से प्रार्थना करती हुयी कह रही हैं ।

सखी ! ये प्रकाश एकाएक कैसे छा गया कुञ्जों में ?

आँखिन को मलते हुए लाल जु ने सखियों से पूछा ।

🙏आज शरद पूर्णिमा है प्यारे ! और देखो ! पूरा निकुञ्ज वन रास रस के लिये तैयार होकर खड़ा है…और सखियाँ भी वाद्य यन्त्रों के साथ सजधज के खड़ी हैं…अब बस आप आलस को त्यागकर रास मण्डप में पधारो… ललिता सखी ने प्रार्थना की ।

प्रसन्नता से भरे युगल आनन्दित हो… उठकर बैठ गए…

🙏प्यारी ! सखियों की अभिलाषा है…और देखो ! निकुञ्ज की शोभा भी कितनी अद्भुत और दिव्य हो गयी है…सरोवर में कमल खिल गए हैं…उनकी सुगन्ध कैसी मादक आ रही है ।

🙏चलो ना प्रिये ! शरद की इस उजियारी रात में…

🙏ये कहते हुए श्यामसुन्दर ने श्रीजी के मुख पर केश की लटें जो आ गयीं थीं उन्हें अपनी उँगलियों से हटा दिया ।

🙏अब ठीक है…’जैसो ये “चन्द्र’ वैसो ही आपको मुखारविन्द” ।

श्याम सुन्दर ने जैसे ही ये कहा…श्रीजी का मुखमंडल रोष पूर्ण हो गया एकाएक…श्यामसुन्दर भी समझ न पाये ।

सखियाँ भी समझ न पाईँ कि ये हुआ क्या ? श्रीजी को श्याम के प्रति ऐसा रोष हुआ क्यों ?

श्याम सुन्दर मुख देखना चाहते हैं…पर श्रीजी अब अपना मुख दिखा भी नही रहीं…

🙏पर हुआ क्या प्यारी ! मैंने ऐसा क्या कह दिया ?

क्या मेरे मुख में कलंक है ? क्या मेरे मुख में कोई काला धब्बा है ?

🙏क्यों ! आपको मेरे मुख की समता किसी से नही मिली ? चन्द्रमा से ही मिली ?

🙏श्याम सुन्दर ने सिर झुका लिया… और नयनों से अश्रु बहाने लगे… वो अश्रु बून्द श्रीजी के चरणों में गिर रहे थे ।

🙏हे मेरी स्वामिनी ! मेरे कहने का ऐसा कोई अर्थ नही था… मैं तो सुन्दरता की उपमा दे रहा था… पर आपने ठीक ही कहा… कहाँ ये चन्द्रमा और कहाँ आपका मुखचन्द्र ? कोई समता नही है ।

🙏आपके इस सेवक से अपराध हुआ है…आप जो दण्ड देना चाहो दे दो ।

🙏इतना कहकर अपना सिर श्रीजी के चरणों में टिका दिया…

🙏बस क्या था श्रीजी ने उठाकर अपने प्राण प्रियतम को हृदय से लगा लिया… सखियाँ आनन्दित हो उठीं… निकुञ्ज प्रसन्न हो गया ।

🙏अब चलें रास में ? श्री जी के कपोलों को चूमते हुए श्याम सुन्दर ने कहा…हाँ… चलो प्यारे ! श्री जी ने कहा ।

सखियाँ झूम उठीं…वाद्य इत्यादि बज उठे थे ।🙏


हे सखियों ! मेरा मन आज अति उत्साह से भर गया है रास के लिये…क्यों कि प्रियतम को मैं सुख देना चाहती हूँ… इसलिये हे सखियों ! मुझे सजाओ… श्रीजी ने कहा ।

मुझे सुन्दर बनाओ… ताकि मुझे देख कर मेरे प्रियतम को सुख मिले… मुझे बाजू बन्द पहनाओ… मुझे हार धारण कराओ… मेरे आँखों में अंजन लगाओ… मेरी बेणी गुँथों… मुझे पायल पहनाओ… मैं अपने प्यारे को सुन्दर लगूँ… मुझे ऐसी बनाओ ।

सखियों ने आनन्दित हो श्रीजी को सजाया… बहुत सुन्दर श्रृंगार किया… सोलह श्रृंगार से सजीं श्रीजी आज बहुत सुन्दर लग रही हैं…

अब चलो ! सब सखियों मेरे साथ चलो… नव निकुञ्ज में ।

श्री जी ने कहा सखियों से, तो बीन बिशाखा सखी ने बजाई…

चित्रा सखी ने मृदंग लिया… सितार सुदेवी ने… सारंगी रंगदेवी ने ।

वीणा ललिता सखी ने…और इन्दुलेखा ने आलाप लेना शुरू किया ।

आहा ! आनन्द की रस धार बह रही है…मध्य में श्यामसुन्दर और प्रिया जु हैं…प्रेम देवता आज अतिप्रसन्न हो… पूरे निकुञ्ज में छा गए हैं…चन्द्रमा की चाँदनी छिटक रही है चारों ओर ।

रस ही रस बह रहा है निकुञ्ज में आज ।

युगल नृत्य कर रहे हैं…चरण हल्के से पटकते हैं…ताल में… एक गति है…भृकुटि को चंचल बनाकर एक दूसरे को रिझा रहे हैं…अनुराग में दोनों ही मत्त हैं…

तभी… श्याम सुन्दर रुक गए नाचते नाचते…

क्यों कि श्रीजी का नृत्य अत्यन्त ही कलापूर्ण था… वो भूल गयीं थीं अपने आपको… बस नृत्य में अपने आपको लीन कर लिया था… श्याम सुन्दर रुक गए हैं…मुग्ध होकर अपनी प्यारी का नृत्य देखने लगे थे… सखियाँ भी आनन्द की अतिरेकता में पहुँच गयी थीं ।

🙏जय हो… जय हो… जय हो…

कहते हुए अपने हृदय से लगा लिया श्याम सुन्दर ने श्रीजी को ।

पसीने आ गये थे श्रीजी को… अपनी पीताम्बरी से पसीने को पोंछा श्याम सुन्दर ने…

🙏प्यारी ! आहा ! आज तो हम धन्य ही हो गए…ऐसा अद्भुत नृत्य न देखा न सुना… कैसी अद्भुत कला पूर्ण हो प्यारी आप !

🙏सर्व गुण की सीमा… स्वरूप शिरोमणि… समस्त कलाओं में निपुण… मैं आपकी बलिहारी जाऊँ…बस मेरी यही अभिलाषा है कि… मेरे नयनन में, हृदय में आप ही नित्य निरन्तर वास करती रहो ।

🙏ये सुनते हुये इस बार श्रीजी ने भावातिरेक में अपने प्यारे को, अपने बाहु पाश में कसकर भर लिया था ।

🙏सखियाँ सब जयजयकार करने लगीं…

🙏🙏”जय जय श्रीरास बिहारी सरकार की”…जय जय जय !

🙏”जय जय श्री नित्य निकुञ्ज बिहारी सरकार की”…जय जय जय !🙏

शेष “रसचर्चा” कल –

🚩जय श्रीराधे कृष्णा🚩

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thoughts of the day

🙏( Autumn Festival – Ras Leela )🙏
!! !! Rasopasana – Part-40 !!

This is bhaav seva… sadhak has to do everything with bhaav only.

Yes, in the initial stage, it has to be practiced sitting at a special place… like – Shridham Vrindavan, Barsana, any place of Brij Bhoomi or the land of Mithila… I mean to say the land of Mithila because the seed of this Rasopasana is also there… The marriage festival of Shri Kishori Ju and the manifestation of friendship has happened there too…I have experience that is why I can say this.

Rest – By being situated in the emotional world, you can practice this “Rasopasana” anywhere by making your heart Sridham Vrindavan.

This Nikunj Rasa starts to become spontaneous gradually…wherever you are…anytime the Leela of the couple starts manifesting easily.

I have seen many great men… and even today by the grace of Shreeji I get to see such great men.

It is not a matter of meditating with eyes closed… Everything starts manifesting with open eyes.

There is no limit to worship of this feeling… it will happen like this… it happens like this… no one can say like this… because it depends on everyone’s own personal experience… and everyone’s experience is personal….

Remember… Love does not happen after seeing… No one even cries without his pain… and when our love becomes intense… then everything becomes dearer.

Then the seeker and Nikunj become one…everything starts swinging.

Nikunj itself becomes the body of the seeker… and in that the beloved ones begin to roam…

I am not saying the things written or heard.

Oops !

🙏 The key is in us, we are in the key, the key is Bihari Soi Mum!
The juice of “Sri Haridas” is equal, now there is no sorrow for anything!!

This body itself becomes Nikunj…in that exalted state…and the mind of the seeker becomes a “friend” and takes care of the couple.🙏

While pressing the feet, the friends become giddy…

The friend presses the soft feet of the couple sitting in the bed…

The heel of the couple is touching the chin of the friend…and she is staring at the sleeping couple…how can this happiness be described? It is not in the control of the friend to speak and move on receiving the service of “Rang Mahal”… because “deep love for the sea”

There is a lot of depth in this sea… the one who drowned… will he be able to speak well?

Payal looks at the feet of Sakhi Shreeji… Knowing this disturbance in “Vihar”, removes them secretly… then starts walking… because now pressing the feet is only creating disturbance.

But then both the friends Rangdevi and Lalita come back… touch the feet with their eyelids… take darshan to the fullest… and then go out secretly.

The friends are standing outside… they are watching through the holes of the doors.

Friend! See ! See ! How beautiful and wonderful the look of the couple looks… Shyam Sundar is sleeping… but even while sleeping his eyes are half open… and with those half open eyes he is looking at his beloved… friend! I am forgetting Mercury… It looks like his image while sleeping… I don’t even have any metaphor.

That’s why the full moon appeared in the sky… the full moon of autumn has arrived.

Friend! What happened ? Nikunj is suddenly bathed in light.

The eyes of the couple have also gone blind… Priya Ju’s face is smiling softly after seeing the moon.

The friends saw… Rangadevi and Lalita both immediately went to the Rang Bhavan… Where do the friends feel without seeing this couple… Aha! How the couple’s form is shining in the moonlight of the full moon…the friends are happy…the pearls were kept in the plate…they hit the couple and scatter the pearls around…the whole Nikunj is dazzling…what a divine wonderful shade is spreading .🙏

The friends have again started pressing the feet…slowly.

This organ is the companion of the dear beloved… The friends move their fingers at the feet of the menstruating… then Shreeji covers his feet. When she applies her eyelids to the feet of Lal Ju… then Lal gets up giggling…

🙏 Hey couple government! You already know… You are our life… You are our life and everything… We do not feel like even a single moment without you…

🙏 Rangadevi is saying while praying with gadgad.

Friend! How did this light suddenly shine in the keys?

Rubbing his eyes, Lal Ju asked his friends.

🙏 Today is Sharad Purnima dear! Look more! The entire Nikunj forest is standing ready for Raas Ras… and the Sakhis are also standing with musical instruments… Now you leave your laziness and come to Raas Mandap… Lalita Sakhi prayed.

Happy couple rejoice… get up and sit…

🙏 Dear! The desire of friends is… see more! The beauty of Nikunj has also become so wonderful and divine…lotus have blossomed in the lake…their fragrance is so intoxicating.

Come on dear! On this bright autumn night…

🙏 Saying this, Shyamsundar removed the locks of hair that had come on Shreeji’s face with his fingers.

🙏 It’s okay now… ‘Like this “moon” so is your Mukharvind.

As soon as Shyamsundar said this… Shreeji’s face became full of anger all of a sudden… even Shyamsundar could not understand.

Even the friends could not understand what happened? Why did Shreeji get so angry with Shyam?

Shyam wants to see the beautiful face… But Shreeji is not even showing his face now…

But what happened dear! What did I say like that?

Do I have a stigma on my face? Do I have a black spot in my mouth?

🙏 Why! You didn’t get the equality of my face from anyone? Got it from the moon only?

🙏 Shyam Sundar bowed his head… and started shedding tears from his eyes… those teardrops were falling at the feet of Shreeji.

🙏 Oh my mistress! I didn’t mean to say this… I was giving an example of beauty… But you said right… Where is this moon and where is your face? There is no equality.

🙏 This servant of yours has committed a crime… give whatever punishment you want.

Having said this, he rested his head at the feet of Shreeji…

🙏 Just what was it, Shreeji lifted his life and touched the beloved with his heart… The friends got up with joy… Nikunj became happy.

🙏 Now let’s go to the dance? Shyam Sundar kissing Mr. Ji’s cheeks said… yes… come on dear! Shri ji said.

Friends danced…instruments etc. were played.🙏

Hey friends! Today my mind is filled with great enthusiasm for Raas… because I want to give happiness to my beloved… That’s why hey friends! Decorate me… Shreeji said.

Make me beautiful… so that my beloved gets pleasure from seeing me… wear me with armbands… make me wear necklace… tie my eyes… braid my braids… wear anklets on me… make me look beautiful to my beloved… make me like this.

The friends rejoiced and decorated Shreeji… Very beautiful makeup was done… Shreeji adorned with sixteen makeups is looking very beautiful today…

Now let’s go! All my friends, come with me… in the new park.

Shri ji said to the friends, then the friend played the Bean Bishakha…

Chitra Sakhi took the mridang… Sitar Sudevi took… Sarangi Rangdevi.

Veena Lalita Sakhi… and Indulekha started taking alap.

Ouch! The juice of joy is flowing… Shyamsundar and Priya Ju are in the middle… God of love may be very happy today… The entire Nikunj is covered… Moonlight is sprinkling all around.

Juice is flowing in Nikunj today.

Couple is dancing…steps lightly…in rhythm…there is a pace…making Bhrikuti playful and wooing each other…both are intoxicated in Anurag…

Only then… Shyam Sundar stopped dancing…

Because Shreeji’s dance was very artistic… She had forgotten herself… She had just absorbed herself in the dance… Shyam Sundar has stopped… He was mesmerized watching the dance of his beloved… The friends also reached the exuberance of joy. Had gone

🙏 Jai Ho… Jai Ho… Jai Ho…

Saying this, Shyam Sundar hugged Shreeji with his heart.

Shreeji was sweating… Shyam Sundar wiped the sweat with his Pitambari…

🙏 Dear! Ouch! Today we are indeed blessed… I have never seen or heard such a wonderful dance… What a wonderful art you are full of, dear!

🙏 The limit of all virtues… Swaroop Shiromani… Adept in all arts… I want to be your sacrifice… My only wish is that… You should always reside in my eyes, in my heart.

🙏 Hearing this, this time Shreeji had wrapped his beloved tightly in his arm loop in emotional ecstasy.

Friends all started cheering…

🙏🙏”Jai Jai Shriras Bihari Sarkar Ki”… Jai Jai Jai!

🙏”Jai Jai Shree Nitya Nikunj Bihari Sarkar Ki”…Jai Jai Jai !🙏

The rest of the “Ruscharcha” tomorrow –

🚩Jai Shri Radhe Krishna🚩

🌷🌻🌷🌻🌷🌻🌷

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