रसोपासना – भाग-15 सुनी हूँ न देखी ऐसी जोरी


ब्रह्म पूर्ण है… परात्पर पूर्ण है… पूर्ण ज्योति है… पूर्णानन्द है ।

फिर प्रश्न उठता है कि जब ब्रह्म हर तरह से पूर्णतम है… तो ये निकुञ्ज की सृष्टि क्यों ?श्रीराधा, श्रीवृन्दावन, सखियाँ ये सब क्यों ?

🙏फिर पूर्ण को इतनी बेकली क्यों ? जब वह पूर्ण ही है तो ऐसी छटपटाहट तो नही होनी चाहिये ?

ये बुद्धिजीवियों का प्रश्न है ।

तर्क की दृष्टि से ये प्रश्न सही भी है… जब ब्रह्म आत्माराम, पूर्णकाम है… तब ये सब लीला क्यों ?

देखो ! ब्रह्म दो प्रकार की सृष्टि करता है… एक जीवों के लिये… जो यहाँ हैं… जो इस पृथ्वी – जगत में है… और दूसरी सृष्टि वो करता है… अपने लिए… आत्मार्थ… एक जीवार्थ और दूसरी आत्मार्थ, यानि अपने लिये ।

जीवार्थ – हमारे लिये… भोग – मुक्ति प्रदान करके हमारा कल्याण करने के लिये…और आत्मार्थ – अपने आनन्द के लिये…अपने ही रसास्वादन के लिये… ब्रह्म, श्याम सुन्दर बनकर… स्वयम् श्रीराधारानी बनकर… श्रीवृन्दावन बनकर… सखियाँ बनकर… अजी ! इतना ही नही… कुञ्ज निकुञ्ज सब ब्रह्म ही बनता है और रस का आस्वादन करता है… ये आत्मार्थ सृष्टि है… जो कभी मिटती नही है…सनातन है… अखण्ड है… ।

ये सब ब्रह्म हैं…ब्रह्म का ही विलास है…उल्लास है… रास है ।

अपने में ही समाने की तड़फ़ ब्रह्म की है… अपना ही श्रृंगार कर रहा है… मिल रहा है… अनादिकाल से मिल रहा है… अपने आपसे… फिर भी अतृप्त है… क्यों कि “प्रेमतत्व” है ही ऐसा ।


चलिये ! ध्यान कीजिये… कैसे अपने आपका श्रृंगार कर रहा है ब्रह्म… और सखियों के रूप में स्वयं का ही दर्शन कर आनन्दित हो रहा है… ये निकुञ्ज लीला अद्भुत है !

चलिये… स्नान के बाद अब आगे क्या लीला होगी… दर्शन कीजिये ।


यमुना में किये गए जल विहार के पश्चात्…

युगल सरकार के श्रीअंग को सखियों ने पोंछा है ।

दिव्य सुगन्ध युगल के अंगों से निकल रही है… उस सुगन्ध के कारण सखियाँ देह सुध भूल कर मूर्छित होने की अवस्था में पहुँच जाती है… पर एक दूसरे को सम्भालती है… नही… सेवा में ये सब उचित नही है… ।

श्रीकिशोरी जु को सखियाँ रेशमी अत्यन्त सुकोमल श्वेत साड़ी पहनाती हैं… श्यामसुन्दर को सफेद कोमल रेशमी धोती धारण कराती हैं…धोती का एक पल्ला कन्धे में धारण करके… सखियों के साथ अपनी प्रिया जु को गलवैयाँ दिए… “श्रृंगार कुञ्ज” की ओर बढ़ रहे हैं ।

युगल के चरणों में सखियों ने मखमली पादुका पहनाई है… प्रेमरस से भरे हुए… अलकावलि बिखरी हुयी हैं… चलते समय पादुका की “चट् चट्” की मधुर ध्वनि हो रही है… इस शोभा का रस सखियाँ आनन्दित हो कर ले रही हैं ।

चलते हुए श्रृंगार कुञ्ज के दिव्य प्रांगण में युगल सरकार पधारे हैं ।

श्रृंगार कुञ्ज में ही पुष्प वाटिका है… सामने बड़ा-सा मणि से सज्जित एक दर्पण है… उसी के सामने खड़े हो गए हैं दोनों युगल… और अपने अपने गीले केशों को सुखा रहे हैं…संवार रहे हैं ।

जब प्रिया जु ने अपनें केशों को सुखाना शुरू किया… तब उनके केशों से जो सुगन्ध निकल रही थी… उसने पूरे कुञ्ज को महका दिया था ।

इस बार तो श्यामसुन्दर प्रिया जु के, केश के सुगन्ध से देह सुध भूल गए थे… उनमें एक अद्भुत मादकता छा गयी थी ।

सखी ! देखो तो किशोरी जी अपने केशों को सुखाती हुयी कितनी सुन्दर लग रही हैं… और संवारते हुए जब अपने लटों को गिराती हैं… तब तो… इनकी शोभा ऐसी हो रही है… मानो हजारों कामदेव और हजारों रति मूर्छित ही हो जाएँ… रंगदेवी ने ललिता सखी से कहा ।

🙏सखी ! तुम कामदेव और रति की बात कर रही हो… अपने श्याम सुन्दर को ही देख लो… कैसे श्रीजी के रुप सुधा का पान करते हुये मत्त हो रहे हैं… ललिता सखी ने रंगदेवी से कहा ।

सखी ! अब देखो प्रिया जु को… रंगदेवी ने चहकते हुए दिखाया –

बिखरी अलकावलि से श्रीजी का मुखमण्डल ऐसा लग रहा है… जैसे- “कई छोटे-छोटे सर्पों के बालक चन्द्रमा से लिपट गए हों” ।

नही रंगदेवी ! मुझे तो ऐसा लग रहा है… जैसे “काले महीन से रेशम के तार खिंच रहे हों”…ऐसा रूप आज तक न देखा… न सुना… कितनी अद्भुत झाँकी हैं हमारी प्रिया जु की ।

ललिता सखी और रंग देवी में बातें हो रही थीं… कि श्रीजी ने मुड़कर देखा अपनी सखियों की ओर… तुरन्त आगे बढ़कर रंगदेवी ने श्रीजी को… और श्याम सुन्दर को ललिता सखी ने चलने के लिये कहा ।

वहीं श्रृंगार कुञ्ज में ही एक दिव्य अद्भुत चौकी है… “श्रृंगार चौकी ।

वहाँ पर विराजमान हुये युगलवर ।

सखियाँ दर्शन करती हैं… और आनन्दित होती हैं ।


🙏श्रीजी के पास रंगदेवी सखी आती हैं… और उनकी बिखरी अलकावलि को सम्भाल देती हैं… श्याम सुन्दर बड़े प्रेम से देख रहे हैं…और आनन्दित हो रहे हैं ।

🙏रंगदेवी अलकावलियों में इत्र फुलेल लगाती हैं… फिर वेणी गूँथनें की सेवा प्रारम्भ कर देती हैं ।…ये देखकर श्याम सुन्दर बहुत प्रसन्न हुये… उत्साह और उमंग से बोले… हे रंगदेवी ! मेरी इच्छा हो रही है कि प्यारी की वेणी को मैं अपनें हाथों से सजाऊँ ।

ना ! श्याम सुन्दर ! ना ! ये सेवा तो हमारी है… तुम क्यों हमारी सेवा छीनना चाहते हो… हम नही देंगी तुम्हें !

दो टूक कह दिया था रंगदेवी ने ।

और वैसे भी ये वेणी को सजाने की कला तुम्हें नही आती… इसलिये शान्ति से बैठो और देखते रहो… ललिता ने आगे आकर कह दिया था ।

सखियों ! तुम लोगों को पता नही… मुझे बहुत सुन्दर वेणी बनानी आती है… एक बार सेवा का अवसर तो दो… ऐसा कहते हुये श्याम सुन्दर ने श्रीजी की ओर देखा… और हाथ जोड़नें लगे ।

सखियों ! चलो आज देख ही लो… कि इनमें कितनी कला है…
श्रीजी बोल उठीं… ।

…अगर वेणी बिगड़ गयी तो ? रंगदेवी ने पूछा ।

अगर बिगड़ गयी वेणी, तो “मैं श्रीजी का”…

और अगर सुन्दर बन गयी तो “श्रीजी मेरी”… चतुर शिरोमणि हँसते हुए बोले ।

🙏जय हो…”चित्त भी तुम्हारी और पट् भी”… ये कहते हुए श्रीजी के साथ सब सखियाँ खूब हँसीं ।

चलो… आपकी “नागरता” की परीक्षा आज होगी… देखती हैं हम सब… कि आप कैसी वेणी गूंथते हो…

सखियों ने कहा ।

और बस श्रीजी ने नयनों से “हाँ” कह दिया… तब तो… उछलते हुए ख़ुशी से… श्याम सुन्दर अपनी प्यारी श्रीराधा रानी के पीछे चले गए… पर… श्रीजी के पृष्ट भाग के सौन्दर्य को जैसे ही देखा श्याम ने… फिर विभोर हो गए ।

सखियों ने कहना शुरू किया… अजी ! देखो तो ये वेणी बनाएंगे !… इनके माथे से तो पहले ही पसीने चुचाने लगे हैं… देखो तो इनके हाथ भी काँप रहे हैं… प्रेम पुलकित हो रहे हैं श्याम सुन्दर ।

बड़ी मुश्किल से तो श्रीजी के केशों को सुखाया था हमने ।… .रंगदेवी, ललिता सब प्रमुदित हो यही कहने लगी थीं ।

अरे ! श्याम सुन्दर ! ये क्या कर रहे हो आप ? आपके हाथ काँप रहे हैं… इस तरह से आप क्या वेणी गूँथोगे… आप तो और श्रीजी की अलकावलियों को और बिगाड़ रहे हो… इसलिये जिद्द मत करो… हमें दे दो… आपसे ये नही होगा ! ललिता सखी ने कहा ।

श्याम सुन्दर ने सखियों की बात सुनकर लम्बी साँस ली… अपने आपको सम्भाला… सचेतन कर… मन ही मन सोचने लगे… अगर इस तरह प्रेम-विह्वल बने रहोगे तो भैया ! श्रीजी के इस “केश प्रसाधन” से वंचित हो जाओगे… ऐसा विचार कर…अपने में जागृति लाये श्यामसुन्दर…और –

अरी सखियों ! तुम क्या जानो…कुछ भी बोलती हो… मेरी जैसी वेणी गूँथना कौन जानता है ? और हे प्यारी राधिके ! आप चिन्ता न करो, ऐसी वेणी बनाऊँगा कि इन सखियों ने भी कभी नही बनाई होगी ।

लाओ सखियो ! रेशम की डोर… मैं उन रेशमी डोर में रंग बिरंगे फूल लगाकर… श्याम सुन्दर बस इतना ही बोले ..।

देख लो प्यारे ! कहीं आपकी हँसी न हो…

…श्री जी ने मुस्कुराते हुए कहा था ।

आप बस निश्चिन्त रहो… मैं सब कर दूँगा…

इतना कहकर… कंघी ली श्याम सुन्दर ने… श्रीजी के सुन्दर केशों को ऊँछनें लगे… उसमें चोटी के साथ मुक्ता लड़ी… तथा बीच-बीच में रंग बिरंगे फूलों को बड़े ही कलात्मक ढंग से लगाकर वेणी को सजाया… आहा ! इसे देखकर तो सखियाँ मुग्ध हो गयीं ।

बताओ सखियों ! कैसी वेणी गुँथी है मैंने ?

बड़े आनन्दित होते हुए पूछा था, श्यामसुन्दर ने सखियों से ।

सखियाँ हँसती हुयी बोलीं… कहाँ से सीख कर आये ये सब ?

आप सखियों की कृपा से ही सीखी है !

इतना कहकर दर्पण मंगवाया श्याम सुन्दर ने…और पीछे से ही दर्पण श्रीजी को दिखाते हुए बोले…अब बताइये प्यारी ! कैसी लगी मेरी गूँथी वेणी ?

श्री जी आनन्दित हो उठीं… अद्भुत वेणी गुँथी थी श्याम ने ।

प्यारी ! अब तो अपने हृदय से लगा लो… इतना तो बनता ही है ।

🙏श्री जी मुड़ीं… और अपने प्राणप्रियतम को हृदय से लगा लिया था ।

शेष “रसचर्चा” कल –

🚩जय श्रीराधे कृष्णा🚩

🌷🌻🌷🌻🌷🌻🌷



Brahman is complete… Paratpar is complete… there is complete light… there is complete bliss.

Then the question arises that when Brahm is complete in every way… then why this creation of Nikunj? Why Shriradha, Shri Vrindavan, Sakhis all this?

🙏 Then why is Purna so helpless? When it is complete, then there should not be such hesitation, should it?

This is the question of intellectuals.

This question is also correct from the point of view of logic… When Brahma Atmaram is Purnakaam… then why all these pastimes?

See ! Brahma creates two types of creation… one for the living beings… who are here… who are in this earth-world… and the other creation he creates… for himself… Atmarth… one for Jivarth and the other for Atmarth, i.e. for himself.

Jeevarth – for us… Bhog – To benefit us by providing liberation… and Atmarth – For our own pleasure… For our own pleasure… Brahma, Shyam by becoming Sundar… Swayam by becoming Shriradharani… By becoming Sri Vrindavan… By becoming friends… Aji! Not only this… Kunj Nikunj becomes all Brahma and tastes the juice… This is self-realized creation… which never fades… it is eternal… it is unbroken….

All these are Brahma…Brahm has only luxury…Glee…Raas.

The yearning of merging in itself is of Brahma… He is adorning himself… He is meeting… He is meeting since time immemorial… He is still unsatisfied… Because “Prematattva” is like this only.

Move ! Meditate… how Brahma is decorating himself… and he is enjoying seeing himself in the form of friends… This Nikunj leela is wonderful!

Let’s go… After bath, what will be the next leela… Let’s have a darshan.

After the Jal Vihar done in Yamuna…

Friends have wiped the body part of the couple’s government.

The divine fragrance is emanating from the organs of the couple… because of that fragrance, the friends forget their body care and reach a state of unconsciousness… but they take care of each other… no… all this is not appropriate in service….

Sri Kishori’s friends dress her up in a soft white silk saree… Shyamsundar is made to wear a white soft silk dhoti… holding a piece of dhoti on her shoulder… along with her friends she gives garlands to her beloved… We are moving towards “Shringar Kunj” .

The sakhis have put velvet pads on the couple’s feet… full of love… alkavalis are scattered… while walking, there is a melodious sound of “chat chat” of the padukas… the friends are rejoicing in this beauty.

Couple Sarkar has arrived in the divine courtyard of Shringar Kunj while walking.

There is a flower garden in the Shringar Kunj itself… There is a big mirror decorated with gems in front… Both the couples are standing in front of it… and drying their wet hairs… grooming them.

When Priya Ju started drying her hair… then the fragrance that was emanating from her hair… she made the whole Kunj fragrant.

This time Shyamsundar had forgotten body care due to the fragrance of Priya Ju’s hair… A wonderful intoxication had enveloped him.

Friend! Look how beautiful Kishori ji is looking while drying her hair… and when she lets down her locks while grooming… then… her beauty is like this… as if thousands of Kamdevs and thousands of goddesses faint… Rangdevi befriended Lalita. Said to .

🙏 Friend! You are talking about Kamdev and Rati… Look at your Shyam Sundar… How Shreeji’s form is getting intoxicated while drinking Sudha… Lalita Sakhi said to Rangdevi.

Friend! Now look at Priya Ju… Rangadevi chirped and showed –

Shreeji’s face looks like scattered Alkavali… as if- “many small snake children are wrapped around the moon”.

No Rangdevi! I am feeling… as if “silk strings are being pulled from the dark month”… such a form has not been seen till date… nor heard… How wonderful is the tableau of our beloved.

Lalita Sakhi and Rang Devi were talking… that Shreeji turned and looked at her friends… Immediately Rangdevi went ahead and asked Shreeji… and Shyam Sundar to walk, Lalita Sakhi asked.

And there is a divinely wonderful Chowki in Shringar Kunj itself… “Shringar Chowki”.

The married couple sat there.

Friends visit… and rejoice.

🙏 Rangdevi Sakhi comes to Shreeji… and takes care of her scattered Alkavali… Shyam Sundar is watching with great love… and is rejoicing.

🙏 Rangadevi puts perfume in the alkavalis… then starts the service of weaving braids…. Shyam Sundar was very happy to see this… said with enthusiasm and enthusiasm… O Rangadevi! I feel like decorating my beloved’s braid with my own hands.

No ! Shyam Sundar ! No ! This service is ours… Why do you want to snatch our service… We will not give it to you!

Rangdevi had said bluntly.

And anyway, you do not know the art of decorating this braid… so sit quietly and keep watching… Lalita came forward and said.

Friends! You people don’t know… I know how to make very beautiful braids… Give me an opportunity to serve once… Saying this, Shyam Sundar looked at Shreeji… and started folding hands.

Friends! Let’s see today… how much art is there in them… Shreeji spoke up….

… if Veni gets spoiled? Rangadevi asked.

If the braid gets spoiled, then “I am Shreeji’s”…

And if she becomes beautiful then “Shriji Meri”… Chatur Shiromani said laughing.

🙏 Jai Ho…“Your heart is yours and your heart too”… saying this, all the friends along with Shreeji laughed a lot.

Come on… your “citizenship” will be tested today… we all will see… how you weave your braids…

The friends said.

And Shreeji just said “yes” with eyes… then… jumping with happiness… Shyam Sundar went after his beloved Shriradha Rani… but… as soon as Shyam saw the beauty of Shreeji’s back… again he was overwhelmed. .

The friends started saying… Aji! Look, they will make braids!… Sweat has already started dripping from their forehead… See, their hands are also trembling… Shyam Sundar is elated with love.

We had dried Shreeji’s hair with great difficulty…. Rangadevi, Lalita all should be happy.

Hey ! Shyam Sundar ! what are you doing Your hands are trembling… how will you braid like this… you are further spoiling Shreeji’s Alkavalis… so don’t be stubborn… give it to us… this will not happen to you! Lalita Sakhi said.

Shyam Sundar took a long breath after listening to the words of the friends… Take care of yourself… Be conscious… Started thinking in your mind… If you will continue to be infatuated like this, brother! You will be deprived of Shreeji’s “hair care”.

Hey friends! What do you know… whatever you say… who knows how to braid like me? And oh dear Radhike! Don’t worry, I will make such a braid that even these friends would never have made.

Come on friends! Silk thread… I put colorful flowers in those silk threads… Shyam Sundar just said this….

Look dear! May you not laugh…

…Shriji had said with a smile.

You just be relaxed… I will do everything…

Having said this… Shyam Sundar took the comb… started tossing Shreeji’s beautiful hair… braided it with Mukta… and in between decorated the braid with colorful flowers very artistically… Aha! The friends were mesmerized on seeing this.

Tell me friends! What kind of braid have I braided?

Being very happy, Shyamsundar had asked his friends.

The friends said laughing… from where did they learn all this?

You have learned only by the grace of friends!

Having said this, Shyam Sundar called for a mirror… and showing the mirror to Shreeji from behind, said… Now tell me dear! How did you like my braid?

Shri ji became happy… Shyam had woven a wonderful braid.

Dear ! Now attach it to your heart… this much is bound to happen.

🙏 Shri ji turned… and had hugged his beloved.

The rest of the “Ruscharcha” tomorrow –

🚩Jai Shri Radhe Krishna🚩

🌷🌻🌷🌻🌷🌻🌷

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