🙏ब्रह्म संहिता में लिखा है – नित्य वृन्दावन सबसे ऊपर है… वैकुण्ठ से भी… गोलोक से भी… अद्भुत रहस्य से भरा है ये लोक… इसी को नित्य निकुञ्ज कहते हैं… यहाँ ब्रह्म और उनकी आल्हादिनी विहार करते रहते हैं..
ब्रह्म संहिता में आगे लिखा है – युगल की सखियाँ हैं जो इन्हें प्रेरित करती हैं… ये भी इन्हीं की शक्ति हैं… इन सखियों की संख्या सोलह बताई गयी है… बाकी अन्य सहस्त्रों सखियाँ इनकी अनुचरी हैं… और हाँ… यहाँ सब की अवस्था “किशोर” ही है… … युगल भी और उनकी सखियाँ भी…
ब्रह्म संहिता में स्पष्ट लिखित है – यहाँ की भूमि चिन्तामणि है… यहाँ के वृक्ष कल्पवृक्ष से भी ऊँचें हैं… अमृत से भी श्रेष्ठ यहाँ का जल है… वृक्ष और लताओं में भी यहाँ रोमांच होता है… आनन्द के अश्रु इनके भी बहते हैं ।
यह श्री धाम वृन्दावन “पूर्णानन्द रस” का केंद्र है… कोयल, मोर, पपीहा, भ्रमर इनका नृत्य और गायन भी यहाँ चलता रहता है ।
यह गुणातीत धाम है ।
( साधकों ! इस विषय पर मैं “श्रीराधाचरितामृतम्” में विस्तार से लिख चुका हूँ इसलिये उस बात को फिर दोहराना आवश्यक मुझे प्रतीत नही हो रहा )
चलिये ! ध्यान कीजिये.!
… कितने सुन्दर लग रहे हैं युगलवर दर्शन कीजिये थोड़ा ।
अति अलबेले, आँगन ठाढ़े !
भुजा परस्पर अंसनि दीने, सुरति रंग में भीने गाढ़े !!”
श्रीहित हरिवंश महाप्रभु “हित चौरासी” में एक गहरी बात कहते हैं –
“गावत श्रवननि सुनत सुखाकर, विश्व दुरित दवनी”
जो इन युगल के इन प्रेम पूर्ण लीलाओं को सुनेगा, गायेगा उससे विश्व के पाप ताप सन्ताप का दमन और शमन होगा ।
वाह ! कितनी अद्भुत बात कही है ।
याद रहे – आपकी महत्वाकांक्षा से न आपका भला होगा… न दूसरे का… हाँ आपकी महत्वाकांक्षा से अशान्ति अवश्य फैलेगी… किन्तु आप प्रेमपूर्ण होंगे… तो दूसरों को भी आप शान्ति देंगे और वह भी प्रेम को पाकर आनन्दित होगा… यही सच्चाई है ।
पर आप प्रेमपूर्ण कैसे होंगे ?
हमारे प्राचीन रसिक सन्तों ने कहा है – जब आप प्रेम के स्वरूप “निष्कामता” को समझेंगे… सुख देने की लालसा आपमें होगी… पाने की नही… तब आप निश्चित प्रेमपूर्ण होंगे ही ।
मुझे पता है… हमारे रसिक आचार्यों ने “रसोपासना” को बहुत छुपाया था… पर मैं विश्व मंगल के लिये… इसे लिख रहा हूँ… और उस भाव राज्य में प्रवेश कर रहा हूँ… अकेले नहीं… आप सब को लेकर… क्यों कि मूल तत्व यही है… प्रेम, रस, भाव ।
चलिये जल्दी… उस दिव्य भाव राज्य में… जहाँ सखियाँ क्या कर रही हैं.!… कैसे युगल को रिझा रही हैं !… दर्शन कीजिये ।
“रंगभवन” के आँगन में –
युगल को सेज से उठाकर आँगन में खड़ा कर दिया है सखियों ने… आहा ! कितने सुन्दर लग रहे हैं ये ।
एक दूसरे, एक दूसरे के गले में गलवैयाँ देकर खड़े हैं… रात की “सुरत केलि” की खुमारी अभी भी इनके नयनों में दिखाई दे रही है ।
श्याम सुन्दर के पान के पीक की लाली श्रीजी के गोरे गालों में स्पष्ट दिख रही है… और श्रीजी के आँखों का काजल श्याम सुन्दर के अधरों पर दिख रहा है… वस्त्र उलझे हैं एक दूसरे में… श्याम सुन्दर के वक्ष स्थल में श्रीजी के नख की रेख सब सखियाँ देख रही हैं… और आनन्दित होती हैं…
जय हो… जय हो… जय जय हो…
सब सखियाँ जयजयकार करने लगीं ।
सखियों ! जयजयकार करने की आवश्यकता क्या है ?
क्यों कर रही हो ? ऐसा क्या हुआ है ?
भोले बनकर श्याम सुन्दर पूछते हैं ।
तब हँसती हुयी रंगदेवी सखी दर्पण लेकर आईँ… और लाल जी और प्रिया जी को दिखाने लगीं… आँखों ही आँखों में हँसती हैं सखियाँ… पर ऐसा तो कुछ नही है ? श्याम सुन्दर अभी भी भोले बने हुए हैं… श्री जी शरमा जाती हैं…
तब ललिता सखी आगे आकर कहती हैं… हे रसिकवर ! आपके वस्त्र अदल-बदल कैसे गए ? और आपके ये वक्षस्थल में नख के चिन्ह ? और ये आपके होठों में श्रीजी के आँखों का अंजन कैसे दिखाई दे रहा है ?
सब सखियाँ हँस पड़ती हैं… युगलवर शरमा कर नयनों को झुका लेते हैं…
तब अपने आँचल के छोर में गुलाब जल छींट कर रंगदेवी सखी लाल जु के अधरों को पोंछ देती हैं… और श्रीजी के मुखारविन्द को भी ।
फूलों की पंखुड़ियाँ ऊपर डाल देती हैं… तिनका तोड़ कर फेंक देती हैं… ताकि इनको नजर न लगे… और मोतियाँ बरसा देती हैं ।
हे युगल सरकार ! अब आप “मंगल कुञ्ज” में पधारिये !
ललिता सखी ने आगे आकर कहा ।
🙏आप को भूख भी लग रही होगी… हाँ आपका मुखारविन्द देखो कैसे कुम्हला गया है… चलिये !
ऐसे बड़े प्रेम से अष्ट सखियाँ युगल को सम्भाले मंगल कुञ्ज की ओर चलती हैं ।
🙏सुन्दर-सुन्दर फुलवारी हैं… उनमें फूल खिले हैं… मार्ग में कई कमल सरोवर मिलते हैं… सूर्य के प्रथम किरण में खिलने वाले हैं ये कमल… पर युगल के मुखारविन्द को देखकर ये उसी समय खिल जाते हैं… सखियाँ दिखाती हुयी… चल रही हैं… कोई सखी पँखा कर रही हैं… कोई चँवर ढुरा रही हैं…
🙏”मंगल कुञ्ज” बड़ा ही सुन्दर है… उसमें नाना प्रकार के पुष्प खिले हुए हैं… चारों ओर सुगन्ध ही सुगन्ध है ।
दो सुवर्ण की चौकी है… एक में लाल जी को विराजमान कराया… दूसरे में लाडिली जी को…
रंगदेवी मुख धो देती हैं… श्रीजी के… और सुदेवी श्याम सुन्दर के ।
ऊँगली में मन्जन दिया… और बड़े प्रेम से बोलीं – युगलवर ! आप मन्जन कीजिये… पर ये क्या ? ऊँगली मुख में डालते ही श्याम सुन्दर ने जैसे ही श्रीजी को देखा… श्री जी हँस पडीं… बस… “श्री जी” की हँसी जैसे ही छूटी… लाल जी तो मन्त्र मुग्ध से, ऊँगली मुख में दबाये श्रीजी की हँसी ही देखते रह गए ।
ये तो सखियों ने झँझझोरा… लाल ! कहाँ खो गए आप ?
तब होश आया श्याम सुन्दर को…
सखियों ने हँसते हुए आनन्दित होते हुए… मुख धुलाया युगल का… फिर वहाँ से लेकर… दूसरी चौकी में विराजमान कराती हैं ।
विशाखा, चित्रा, तुंगविद्या, इन्दुलेखा ये सब सखियाँ मंगल भोग लेकर आईँ… अन्य सखियाँ कोई पँखा कर रही हैं… कोई चँवर… कोई मुख पोंछने के लिये रुमाल लेकर खड़ी हैं ।
मंगल भोग चौंकी में सजाई गयी है…
केशर मिश्रित दूध, मेवा, मधुर मिठाई, माखन , मलाई…
दो थाली में अलग-अलग लेकर सजाई गयी थी ।
जल का पात्र बड़े प्रेम से रखा गया था ।
युगल एक दूसरे को खिला रहे हैं… पर ये क्या ? पहले श्रीजी को लाल जु खिलाते हैं… फिर लाल जु कहते हैं… आप अब अपनी प्रसादी हमें खिलाओ… “ये कैसी रस रीत है”… सखियाँ नाच रही हैं… कोई गा रही हैं… कोई जय जयकार कर रही हैं ।
जब युगल सरकार ने मंगल भोग आरोग लिया… तो सखियों ने आचमन कराया । इन्दुलेखा ने मुख पोंछ दिया ।
ललिता सखी ने मीठा पान दिया… युगल ने पान को पाया ।
लाल-लाल होंठ हो गए… कितने सुन्दर लग रहे हैं… दोनों ।
नजर लग गयी होगी… है ना ? रंगदेवी सखी ने ललिता सखी से कहा… क्यों न लगे… इतने सुन्दर ये हमारे युगलवर ।
चलो ! अब इनकी आरती उतारो… ताकि इनकी नजर भी उतर जाए… रंगदेवी ने ही कहा था ये ।
तभी एक सखी ने फूलों से सजी सुन्दर आरती, रंगदेवी सखी को सजाकर दी… …
और अब बड़े प्रेम से “मंगला आरती” सब सखियाँ गाती हैं…
रंगदेवी आरती कर रही हैं…
“मंगल कुञ्ज में मंगल आरती, मंगल रँग रँगीली वारती !!
मंगल जय जय शब्द उचारती, मंगल श्रीहरिप्रिया विचारती !!”
कोई नाच रही हैं… कोई गा रही हैं… कोई जयजयकार कर रही हैं ।
बोलो ! मंगला आरती की… सब सखियों ने कहा… जय जय जय ।
सब दण्डवत करती हैं… और आरती लेती हैं ।
साधकों ! सच में इन्हीं प्रेमरस से विश्व का मंगल होगा… क्यों कि इस प्रेम रस में “सुख देने की कामना है… बस सुख “देने” की ।
शेष “रस चर्चा” कल –
🚩जय श्रीराधे कृष्णा🚩
🙏 It is written in Brahma Samhita – Nitya Vrindavan is above all… even than Vaikuntha… even than Goloka… this world is full of wonderful secrets… this is called Nitya Nikunj… here Brahm and his gods keep on roaming..
It is further written in the Brahma Samhita – there are the friends of the couple who inspire them… this is also their power… the number of these friends has been told as sixteen… the rest of the thousands of other friends are their followers… and yes… everyone’s condition here is “teenage”. “It is… …the couple as well as their friends…
It is clearly written in Brahma Samhita – The land here is Chintamani… The trees here are higher than the Kalpavriksha… The water here is better than nectar… Trees and vines also have excitement here… Tears of joy flow from them too.
This Shri Dham Vrindavan is the center of “Purnanand Ras”… Cuckoo, peacock, papiha, bhramar, their dance and singing also goes on here.
This is the transcendental abode.
(Sadhaks! I have written about this topic in detail in “Shriradhacharitamritam”, so I do not feel it necessary to repeat it again)
Move ! Pay attention.!
… You are looking so beautiful, have a little darshan of the couple.
Very careless, make the courtyard cool! Let the arms rest against each other, get wet in the color of beauty!!”
Shrihit Harivansh Mahaprabhu says a deep thing in “Hit Chaurasi” –
“Gavat Shravani Sunat Sukhakar, Vishwa Durit Davani”
The one who listens and sings these love-filled pastimes of this couple, the sins of the world will be suppressed and extinguished.
Wow ! What a wonderful thing you have said.
Remember – your ambition will neither do good to you… nor to others… yes your ambition will definitely spread unrest… but you will be loving… then you will give peace to others and they will also be happy after getting love… this is the truth.
But how can you be loving?
Our ancient Rasik saints have said – When you understand “selflessness” as the form of love… you will have the desire to give happiness… not to get it… then you will definitely be loving.
I know… our Rasik Acharyas had hidden “Rasopasana” a lot… but I am writing this… for Vishwa Mangal… and entering that feeling state… not alone… with all of you… because the basic element This is… love, rasa, bhava.
Let’s go quickly… in that divine feeling state… where what the friends are doing.!! How they are wooing the couple!… Have a darshan.
In the courtyard of “Rangbhavan” –
The friends have taken the couple out of the bed and made them stand in the courtyard… Aha! How beautiful are they looking.
They are standing around each other, hugging each other… The hangover of “Surat Keli” of the night is still visible in their eyes.
The redness of Shyam Sundar’s betel leaf is clearly visible in Shreeji’s fair cheeks… and the mascara of Shreeji’s eyes is visible on Shyam Sundar’s lips… clothes are entangled in each other… Shreeji’s nails in Shyam Sundar’s chest. All the friends are watching… and rejoice…
Jai Ho… Jai Ho… Jai Jai Ho…
All the friends started cheering.
Friends! What is the need to cheer?
Why are you doing What has happened?
Being naive, Shyam Sundar asks.
Then laughing Rangdevi friend brought the mirror… and started showing it to Lal ji and Priya ji… friends laugh in the eyes… but is there nothing like that? Shyam Sundar is still naive… Mr.ji gets shy…
Then Lalita Sakhi comes forward and says… Hey Rasikavar! How did your clothes get changed? And these nail marks in your chest? And how is this anjan of Shreeji’s eyes visible in your lips?
All the friends laugh… The couple shyly lower their eyes…
Then by sprinkling rose water on the edge of her lap, Rangdevi’s friend wipes the lips of the red jaw… and Shreeji’s mouthpiece too.
They put the petals of flowers on top… break the straw and throw it… so that they cannot be seen… and shower pearls.
Hey couple government! Now you come to “Mangal Kunj”!
Lalita Sakhi came forward and said.
🙏 You must be feeling hungry too… yes, look how dried up your vocal cord is… come on!
With such great love, the eight friends take care of the couple and walk towards Mangal Kunj.
🙏 There are beautiful flowerbeds… flowers are blooming in them… many lotus ponds are found on the way… these lotuses are about to bloom in the first ray of the sun… but seeing the face of the couple they bloom at the same time… friends showing… going on Some friends are fanning…some are sweeping the floor…
🙏 “Mangal Kunj” is very beautiful… different types of flowers are blooming in it… there is only fragrance all around.
There are two golden posts… in one Lalji was made to sit… in the other Ladiliji…
Rangdevi washes the face… of Shreeji… and Sudevi of Shyam Sundar.
Put Manjan in the finger… and said with great love – couple! You wash yourself… But what is this? As soon as Shyam Sundar saw Shreeji as soon as he put his finger in his mouth… Shreeji started laughing… just… “Shriji” laughed as soon as he left… Lalji, mesmerized by the mantra, kept looking at Shreeji’s smile by pressing his finger in his mouth.
The friends made it jingle… Lal! where are you lost
Then Shyam Sundar regained consciousness.
Friends laughing and rejoicing… wash the face of the couple… then take them from there… make them sit in another post.
Vishakha, Chitra, Tungavidya, Indulekha, all these friends brought auspicious food… Other friends are fanning…some chavar…some are standing with handkerchiefs to wipe their faces.
Mangal Bhog is decorated in Chowki…
Saffron mixed milk, dry fruits, sweet sweets, butter, cream…
It was decorated in two plates separately.
The vessel of water was kept with great love.
The couple is feeding each other… but what is this? First Lal Ju feeds Shreeji… Then Lal Ju says… Now you feed us your Prasad… “Yeh kaisi ras reet hai”… Friends are dancing… some are singing… some are cheering.
When the couple Sarkar took Mangal Bhog Arog… then the friends made them come. Indulekha wiped her face.
Lalita Sakhi gave sweet betel leaves… The couple found the betel leaf.
Lips turned red… How beautiful they are looking… Both.
You must have noticed… right? Rangdevi Sakhi said to Lalita Sakhi… Why don’t you get engaged… Our couple is so beautiful.
Let us go ! Now perform her aarti… so that her vision can also be removed… Rangdevi herself had said this.
That’s why a friend decorated a beautiful aarti with flowers, Rangdevi decorated the friend… …
And now all the friends sing “Mangla Aarti” with great love…
Rangadevi is performing aarti…
“Mangal Aarti in Mangal Kunj, Mangal Rang Rangili Warti!!
Chanting the words Mangal Jai Jai, asking Mangal Sri Haripriya!!”
Some are dancing… some are singing… some are cheering.
Say ! Mangala Aarti’s… all the friends said… Jai Jai Jai.
Everyone bows down… and takes aarti.
Seekers! Really, the world will be blessed by this love juice… because in this love juice there is a desire to “give happiness”… just to “give” happiness.
The rest of “Juice Discussion” tomorrow –
🚩Jai Shri Radhe Krishna🚩