कहने में कुछ भी कहे,मगर मन मे जानते,
बाहर से अनजान है पर,दिल से पहचानते,
भटका हुआ राही हूँ में,मंजिल का पता नही,
मिले या ना मिले कोई,इससे मे खपा नही,
खता तो बस यही है,गेंरो को अपना मानते
देख रहा है सब कुछ,मगर बोलता नही,
जानता है राज सब,फिर भी खोलता नही,
रहता है दिल के पास,फिर भी नही जानते,
बङी अज़ीब लग रही है,दीन की ये दास्था,
कहीं कभी देखा नही,फिर भी केसी आस्था,
अचरज़ भरी है ये रचना,मुख से सभी बखानते
कष्ट अनेको सहे है,फिर भी कोई गिला नही,
जहां भी देखा गैर है,अपना कोई मिला नही
इस दर्द भरे सफ़र मे,”सदा आनन्द”मानते
Say anything in saying, but know in mind,
Unknown from outside, but knowing by heart,
I am lost, I do not know the destination,
Whether I met or not met, I did not get tired of it,
Khata is just this, consider the genro as your own
Seeing everything, but not speaking,
Everyone knows the secret, yet does not open it,
Lives near the heart, still do not know,
It is looking very strange, this story of the deen,
Never seen anywhere, yet what kind of faith,
This creation is astonishing, everyone speaks with their mouth
Suffering has been suffered by many, yet there is no shame,
Wherever I have seen none, I have not found any of my own.
In this painful journey, always consider “joy”