सुखों का सागर, कलप वृक्ष, चिंतामणी, कामधेन गाय जिसके वश में हैं। चार पदारथ अठारह सिद्धियाँ नौ निधियाँ जिसकी हाथ की तली पर हैं। हे भाई जनो ! उस हर स्थान पर बसने वाले और सूखे को हरा करने वाले हरि के नाम को रसना के साथ क्यों नहीं जपते। सँसार के और सारे मत छोड़कर केवल एक परमात्मा के नाम के साथ रच जाओ। श्री व्यास मुनी जी ने वेद, शास्त्र और पुरान आदि कि विधियाँ चौंतीस अक्षरों में कथन की हैं पर सबको विचारने के बाद पता लगता है कि राम नाम के तुल्य सँसार की कोई वस्तु नहीं है। उपाधियों से रहित होकर तो बड़े भाग्यशाली की ही सहज समाधि लगती है। रविदास जी कहते हैं कि जब परमात्मा की नूरी जोत का प्रकाश दिल में होता है तो जन्म-मरण के डर दूर हो जाते हैं।
Ocean of happiness, Kalpa tree, Chintamani, Kamdhen cow are under whose control. The four substances, the eighteen siddhis, the nine funds are at the bottom of his hand. Oh brother! Why don’t those who live in that place and beat the drought chant the name of Hari with rasa. Leaving all the other beliefs of the world and create with the name of only one God. Shri Vyas Muni ji has narrated the methods of Vedas, Shastras and Puranas etc. in thirty four letters, but after considering all, it comes to know that there is no thing in the world like the name of Ram. Being devoid of titles, it is easy for the very fortunate to have an easy samadhi. Ravidas ji says that when the light of the divine holding of God is in the heart, then the fear of birth and death goes away.