भक्ति स्वयं फल है. फल उसे कहते हैजो कर्म के पश्चात प्राप्त होता है. अगर कर्म का फल क्या होगा ये पता चल जाये तो इंसान उस कर्म को छोड़ेगा ही नाही.किसी पेड़ का फल मीठा है, स्वादिष्ट है, यह जान जाएंगे तो उसे खाना जरूर चाहेंगे.जिसका स्वरूप आप जान चुके है जिसको सुखरूप जानेंगे उसे अपने पास रखना चाहेंगे.उसी तरह साधना का फल भक्ति है ये समझ लेंगे तो साधना अवश्य करेंगे क्योंकि भक्ति फलरूपा है.
भक्ति रूपी फल प्राप्त करना हो तो साधना करनी ही होगी .प्रारम्भ मे कठिनाई आती है लेकिन अभ्यास से सब आसान होता है.भक्ति ऐसा फल है जिसमे सिर्फ रस ही रस है .न ही गुठली है और न ही छिलका है .फेंकने जैसी कोई चीज इस फल मे नहीं है.सिर्फ और सिर्फ रस से भरी रहती है ये भक्ति.जिसने एक बार इसका रस पान कर लिया तो समझो वह स्वयं अपने आप को भूल जाता है भक्ति रस मे डूबा रहता है.एक बार ये रस चख कर तो देखो.
जय जय श्री राधे
भक्ति क्या है”
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