दयालु बादशाह

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जर्मनमा द्वितीय जोसेफ बहुत दयालु हृदयके पुरुष थे। वे अक्सर साधारण कपड़े पहनकर प्रजाकी हालत जाननेके लिये अकेले ही निकल पड़ते। एक बार वे इसी प्रकार गलियोंमें घूम रहे थे कि एक गरीब लड़का उनके सामने आया और बोला, ‘महाशय ! कृपा करके मुझे कुछ पैसे दीजिये।’ लड़का सम्राट्को पहचानता नहीं था; परंतु सम्राट्के दयालु चेहरेको देखकर उसको साहस हो गया और उसने पैसोंकी याचना की। लड़केका करुणाभरा मुँह देखकर बादशाहको दया आ गयी। उन्होंने कहा- ‘बच्चे! तेरा चेहरा देखने पर ऐसा लगता है कि तूने थोड़े ही दिनोंसे भीख माँगनी शुरू की है।’

बच्चेने कहा- ‘महाशय ! मैंने कभी भीख नहीं माँगी। हमारी स्थिति जब बहुत बिगड़ गयी तब आज मैं पहले पहल माँगने निकला हूँ। कुछ दिन हुए मेरे पिताजी मर गये। हम दो भाई हैं। हमारे पास कुछ भी नहीं है जिससे हम अपना पेट भर सकें और न कोई मदद ही करनेवाला है। एक माँ है जो सख्त बीमार है और बेहाल खटियापर पड़ी है।’ यों कहते-कहते लड़केका गला भर आया।

सम्राट्ने पूछा- तेरी माँकी दवा कौन करता है ? लड़केने कहा- सरकार! दवा कौन करता? हमारे पास दवाके लिये पैसा कहाँ है? इस दुःखसे ही तो मैं आज लाचार होकर भीख माँगने निकला हूँ।

लड़केकी बात सुनकर सम्राट् जोसेफका हृदय करुणासे भर गया। उन्होंने बालकसे घरका पता पूछकर उसके हाथमें कुछ रुपये देते हुए कहा- ‘जा, जल्दी डाक्टरको ले जाकर माँको दिखला राहमें कहीं देर ने करना भला।’ बच्चा खुशी होकर डाक्टरको बुलाने दौड़ा।

इधर बादशाह ढूँढते ढूँढ़ते उसके घर पहुँचे उन्हें मालूम हो गया कि उसकी माँकी हालत बहुत खराबहै। उन्होंने देखा, वह खटियापर पड़ी है और उसका एक छोटा बच्चा पास बैठा रो रहा है। बादशाहने अपनेको डाक्टर बतलाकर उससे बीमारीका हाल और कारण पूछा। बादशाहके शब्दोंमें बड़ी मिठास थी और उनमें स्नेह भरा था। यह देखकर उस स्त्रीने कहा ‘महाशय! मेरे रोगका कारण तो असलमें हमारी यह बुरी हालत है। कुछ दिन पहले मेरे पतिका देहान्त हो गया। जो कुछ पूँजी थी, सब महाजनोंमें डूब गयी। बच्चे अभी बहुत छोटे हैं, मेरे पास ऐसा कोई साधन नहीं जिससे मैं उनका पेट भर सकूँ। मुझे अपने मरनेकी चिन्ता नहीं है, पर पीछे मेरे अनाथ बच्चोंका क्या होगा। इसी विचारसे मेरा जी जला करता है। मुझे बहुत दुःखी देखकर बड़ा लड़का आज मेरी दवाके लिये कहीं पैसेका प्रबन्ध करने गया है।’

गरीब माँ-बेटोंकी दुर्दशा देखकर बादशाहने आँसू भरी आँखोंसे कहा-‘बहिन ! घबराओ मत। भगवान्की कृपासे तुम जल्दी ही अच्छी हो जाओगी और तुम्हें पैसे भी मिलेंगे। मुझे एक कागजका टुकड़ा दो तो मैं तुम्हारे रोगकी दवा लिख दूँ।’

घरमें और कागज तो था नहीं, उसने लड़केके पढ़नेकी पोथीका पिछला पन्ना फाड़ दिया।

बादशाहने उसपर कुछ लिखकर उसे रोगिणीको दे दिया और कहा -‘मैंने इसमें दवा लिख दी है, इसीसे तुम्हारी सारी बीमारी मिट जायगी।’ इतना कहकर वे वहाँसे चले गये।

कुछ देरके बाद लड़का डॉक्टरको लेकर आया। लड़केने आते ही खुशीके साथ कहा- ‘माँ तू घबरा मत, मुझे रुपये भी मिल गये हैं और मैं डॉक्टरको भी ले आया हूँ।’ लड़केको प्रसन्न देखकर माँको बड़ी प्रसन्नता हुई और उसकी आँखोंसे हर्षके आँसू निकल पड़े। उसने बच्चेका मुँह चूमकर कहा-‘बेटा! प्रभु तुझे लंबी जिंदगी दें। अभी एक डॉक्टर आया था,वह काग़जपर कोई दवा लिख गया है। डॉक्टर बड़ा ही दयालु था बेटा!’

उसकी बात सुनकर लड़केके साथ आये हुए डॉक्टरने कागज लेकर पढ़ा और उसमें स्वयं सम्राट् जोसेफके हस्ताक्षर देखकर आश्चर्यसे कहा – ‘अब तेरा सारा संकट गया ही समझ । मेरे पहले जो डॉक्टर आया था, वह कोई मामूली डॉक्टर नहीं था। वह जो दवा लिख गया है, वैसी दवा देनेकी मुझमें ताकत नहीं है। उस दवासे तुझे बड़ा लाभ होगा। बहिन ! वह स्वयं जर्मनीका बादशाह दूसरा जोसेफ था; और इस कागजपर वह हुक्म लिख गया है कि तुझे खजानेसे बहुत बड़ी संख्यामें रुपये दिये जायँ ।’

यह सुनकर उस स्त्री और उसके बच्चोंका हृदय कृतज्ञतासे भर गया। वे हर्षसे सराबोर हो गये। कुछ भी बोल नहीं सके। जब जबान खुली तब वे गद्गद वाणीसे प्रभुसे जोसेफ बादशाहके अचल राज्य और दीर्घ जीवनके लिये प्रार्थना करने लगे। उनका रोम-रोम आशीर्वाद देने लगा।

डॉक्टरने भी दवा दी और वह स्त्री जल्दी ही अच्छी हो गयी। सब सुखसे रहने लगे। बादशाहकी दयालुता और बच्चेका मातृ-स्नेह-जिसके कारण वह भीख माँगने निकला –जगत्के लिये आदर्श हो गया।

जर्मनमा द्वितीय जोसेफ बहुत दयालु हृदयके पुरुष थे। वे अक्सर साधारण कपड़े पहनकर प्रजाकी हालत जाननेके लिये अकेले ही निकल पड़ते। एक बार वे इसी प्रकार गलियोंमें घूम रहे थे कि एक गरीब लड़का उनके सामने आया और बोला, ‘महाशय ! कृपा करके मुझे कुछ पैसे दीजिये।’ लड़का सम्राट्को पहचानता नहीं था; परंतु सम्राट्के दयालु चेहरेको देखकर उसको साहस हो गया और उसने पैसोंकी याचना की। लड़केका करुणाभरा मुँह देखकर बादशाहको दया आ गयी। उन्होंने कहा- ‘बच्चे! तेरा चेहरा देखने पर ऐसा लगता है कि तूने थोड़े ही दिनोंसे भीख माँगनी शुरू की है।’
बच्चेने कहा- ‘महाशय ! मैंने कभी भीख नहीं माँगी। हमारी स्थिति जब बहुत बिगड़ गयी तब आज मैं पहले पहल माँगने निकला हूँ। कुछ दिन हुए मेरे पिताजी मर गये। हम दो भाई हैं। हमारे पास कुछ भी नहीं है जिससे हम अपना पेट भर सकें और न कोई मदद ही करनेवाला है। एक माँ है जो सख्त बीमार है और बेहाल खटियापर पड़ी है।’ यों कहते-कहते लड़केका गला भर आया।
सम्राट्ने पूछा- तेरी माँकी दवा कौन करता है ? लड़केने कहा- सरकार! दवा कौन करता? हमारे पास दवाके लिये पैसा कहाँ है? इस दुःखसे ही तो मैं आज लाचार होकर भीख माँगने निकला हूँ।
लड़केकी बात सुनकर सम्राट् जोसेफका हृदय करुणासे भर गया। उन्होंने बालकसे घरका पता पूछकर उसके हाथमें कुछ रुपये देते हुए कहा- ‘जा, जल्दी डाक्टरको ले जाकर माँको दिखला राहमें कहीं देर ने करना भला।’ बच्चा खुशी होकर डाक्टरको बुलाने दौड़ा।
इधर बादशाह ढूँढते ढूँढ़ते उसके घर पहुँचे उन्हें मालूम हो गया कि उसकी माँकी हालत बहुत खराबहै। उन्होंने देखा, वह खटियापर पड़ी है और उसका एक छोटा बच्चा पास बैठा रो रहा है। बादशाहने अपनेको डाक्टर बतलाकर उससे बीमारीका हाल और कारण पूछा। बादशाहके शब्दोंमें बड़ी मिठास थी और उनमें स्नेह भरा था। यह देखकर उस स्त्रीने कहा ‘महाशय! मेरे रोगका कारण तो असलमें हमारी यह बुरी हालत है। कुछ दिन पहले मेरे पतिका देहान्त हो गया। जो कुछ पूँजी थी, सब महाजनोंमें डूब गयी। बच्चे अभी बहुत छोटे हैं, मेरे पास ऐसा कोई साधन नहीं जिससे मैं उनका पेट भर सकूँ। मुझे अपने मरनेकी चिन्ता नहीं है, पर पीछे मेरे अनाथ बच्चोंका क्या होगा। इसी विचारसे मेरा जी जला करता है। मुझे बहुत दुःखी देखकर बड़ा लड़का आज मेरी दवाके लिये कहीं पैसेका प्रबन्ध करने गया है।’
गरीब माँ-बेटोंकी दुर्दशा देखकर बादशाहने आँसू भरी आँखोंसे कहा-‘बहिन ! घबराओ मत। भगवान्की कृपासे तुम जल्दी ही अच्छी हो जाओगी और तुम्हें पैसे भी मिलेंगे। मुझे एक कागजका टुकड़ा दो तो मैं तुम्हारे रोगकी दवा लिख दूँ।’
घरमें और कागज तो था नहीं, उसने लड़केके पढ़नेकी पोथीका पिछला पन्ना फाड़ दिया।
बादशाहने उसपर कुछ लिखकर उसे रोगिणीको दे दिया और कहा -‘मैंने इसमें दवा लिख दी है, इसीसे तुम्हारी सारी बीमारी मिट जायगी।’ इतना कहकर वे वहाँसे चले गये।
कुछ देरके बाद लड़का डॉक्टरको लेकर आया। लड़केने आते ही खुशीके साथ कहा- ‘माँ तू घबरा मत, मुझे रुपये भी मिल गये हैं और मैं डॉक्टरको भी ले आया हूँ।’ लड़केको प्रसन्न देखकर माँको बड़ी प्रसन्नता हुई और उसकी आँखोंसे हर्षके आँसू निकल पड़े। उसने बच्चेका मुँह चूमकर कहा-‘बेटा! प्रभु तुझे लंबी जिंदगी दें। अभी एक डॉक्टर आया था,वह काग़जपर कोई दवा लिख गया है। डॉक्टर बड़ा ही दयालु था बेटा!’
उसकी बात सुनकर लड़केके साथ आये हुए डॉक्टरने कागज लेकर पढ़ा और उसमें स्वयं सम्राट् जोसेफके हस्ताक्षर देखकर आश्चर्यसे कहा – ‘अब तेरा सारा संकट गया ही समझ । मेरे पहले जो डॉक्टर आया था, वह कोई मामूली डॉक्टर नहीं था। वह जो दवा लिख गया है, वैसी दवा देनेकी मुझमें ताकत नहीं है। उस दवासे तुझे बड़ा लाभ होगा। बहिन ! वह स्वयं जर्मनीका बादशाह दूसरा जोसेफ था; और इस कागजपर वह हुक्म लिख गया है कि तुझे खजानेसे बहुत बड़ी संख्यामें रुपये दिये जायँ ।’
यह सुनकर उस स्त्री और उसके बच्चोंका हृदय कृतज्ञतासे भर गया। वे हर्षसे सराबोर हो गये। कुछ भी बोल नहीं सके। जब जबान खुली तब वे गद्गद वाणीसे प्रभुसे जोसेफ बादशाहके अचल राज्य और दीर्घ जीवनके लिये प्रार्थना करने लगे। उनका रोम-रोम आशीर्वाद देने लगा।
डॉक्टरने भी दवा दी और वह स्त्री जल्दी ही अच्छी हो गयी। सब सुखसे रहने लगे। बादशाहकी दयालुता और बच्चेका मातृ-स्नेह-जिसके कारण वह भीख माँगने निकला -जगत्के लिये आदर्श हो गया।

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