एक वृद्ध महाशय अपने बचपनके साथी श्यामजीके पुत्र रामजीके यहाँ आये। उन्होंने कहा-‘बच्चे रामजी ! दुःख है कि श्यामजीको गुजरे साल बीत गया, पर मैं तुम्हारी खोज-खबर लेने नहीं आया। बेटा! अब तुम्हारे सिरपर कोई नहीं, समझ-बूझकर अच्छे चाल-चलनसे रहना। क्यों, सब ठीक चल रहा है न ?’ बूढ़ा रामजीके चाल-चलनसे भलीभाँति परिचित था। उसे मालूम था कि वह बापका पैसा पानीकी तरह मौज-मस्ती और मित्रमण्डलीमें उड़ा रहा है।
रामजीने कहा—’चाचाजी, अब आप ही मेरे लिये पिताजीकी जगह हैं। बड़ा अच्छा हुआ जो आप आगये। कुछ ही दिनों बाद दीवाली है। चार दिन यहीं बिताइये। आपका मुझपर बहुत प्रेम है। बताइये, आपको कौन-सा पकवान अच्छा लगता है ? भगवान्की दयासे मुझे कोई कमी नहीं है।’
बूढ़ेकी पसंदका गूजा बना। मित्रमण्डली दीवालीके स्नान आदिसे निवृत्त हो भोजनको बैठी। बूढ़े चाचाजी भी पंक्तिमें आ बैठे। भोजन परोसा गया। चाचाजीकी थालीमें तला हुआ ताजा गूजा परोसा गया। मुँहमें रखते ही उन्होंने कहा- ‘बेटा! गूजा बासी है, छिः !’
रामजीने समझाया- ‘चाचाजी! गूजा अभी-अभी तलकर झरनेसे उतारा गया है। घी निथरनेपर आपकोपरोसा गया है। सारा सामान ताजा है। फिर आप बासी कैसे कह रहे हैं।’
बूढ़ेने कहा- ‘बेटा! इसमें पचीस साल पुरानी गन्ध आ रही है। यह बहुत ही बासी है। मेरे साथी श्यामजीने कितने कष्टसे पैसा कमाया। उन्हें गुजरे एक ही साल हुआ, इसी बीच तुमने आधी सम्पत्ति उड़ा दी; तब आगे क्या करोगे! तुम अपने परिश्रमसे कमाये धनसे गूजा बनाते तोमैं उसे ताजा कहता। ताजा गूजा मुझे बड़ा ही पसंद है; पर मालूम पड़ता है कि वह मेरे नसीबमें नहीं।’
‘बूढ़ेकी बातें सुन सभी मित्र सकपकाये। रामजीने उनके चरण छुए और कसम खायी कि अबसे मैं अपने श्रमकी ही रोटी खाऊँगा । अगले साल जरूर आइये, | आपकी पसंदका गूजा निश्चय खिलाऊँगा।’
-गो0 न0 बै0
(धेनुकथा-संग्रह)
An old gentleman came to the place of Ramji, the son of his childhood friend Shyamji. He said – ‘ Child Ramji! It is sad that last year has passed for Shyamji, but I did not come to inquire about you. Son! Now no one is on your head, be wise and behave well. Why, everything is going well, isn’t it?’ The old man was well aware of Ramji’s behavior. He knew that he was spending his father’s money like water in fun and friends.
Ramji said – ‘Uncle, now you are my father’s place. It is good that you came. Diwali is just a few days away. Spent four days here. You have a lot of love for me. Tell me, which dish do you like best? I have no shortage by God’s mercy.’
Guja of the old man’s choice was made. The circle of friends retired from Diwali bath etc. and sat down for food. Old uncle also sat in the queue. Food was served. Fried fresh Guja was served in Chachaji’s plate. As soon as he kept his mouth, he said – ‘ Son! Guja is stale, sis!
Ramji explained – ‘Uncle! Guja has just been taken down from the waterfall. Ghee has been served to you after straining. All the stuff is fresh. Then how are you saying stale.
The old man said – ‘ Son! It smells like twenty five years old. It’s very stale. My friend Shyam earned money with so much difficulty. It’s only been a year since they passed, in the meantime you wasted half the property; Then what will you do next? If you had made Guja with your hard earned money, I would have called it fresh. I love fresh guza; But it seems that it is not in my destiny.
All the friends shuddered after listening to the words of the old woman. Ramji touched his feet and swore that henceforth I would eat only the bread of my labour. Do come next year, I will definitely feed you the porridge of your choice.
-go no bae
(Dhenukatha-collection)