वृन्दावनमें सेवाकुञ्ज नामक एक स्थान है। यह प्रचलित है कि रातको वहाँ दिव्य रास होता है। इसीलिये रातको वहाँ कोई नहीं रहता।
एक बार एक पंजाबी महात्माके मनमें आया कि ‘चाहे कुछ भी हो मैं तो रास देखकर ही रहूँगा।’ बस रातको वे वहाँ दीवालपर चढ़कर देखने लगे, किंतु उन्हेंकुछ दिखायी न दिया। दूसरे दिन भी ऐसा ही हुआ। अन्तमें तीसरे दिन उन्होंने निश्चय किया कि यदि आज दर्शन न होंगे तो मैं यहीं प्राण त्याग दूँगा । उस दिन भी तीन पहर रात बीत गयी ।
इसी समय उनको ऐसा मालूम पड़ा कि मानो करोड़ों चन्द्रमा एक ही साथ उदय होकर अपनी शीतलसुधामयी चाँदनी छिटका रहे हों। उसके कुछ देर पश्चात् यह दीखा कि ‘सुन्दर-सुन्दर स्त्रियाँ आ रही हैं। सबके पीछे श्रीराधाकृष्ण गलबहियाँ देकर आ रहे हैं। राधाजीने कहा—’ आज तो मुझे यहाँ मनुष्यकी सी गन्ध आ रही है।’
श्रीकृष्णने कहा—’नहीं, वह तो अपना ही आदमी है, कहो तो बुलाऊँ !’राधाजीने कहा—’बुलाइये!’ वे महात्मा तो सुन ही रहे थे। ज्यों ही श्रीकृष्णने इशारा किया कि कूदकर अंदर चले गये।
श्रीराधाकृष्णने उनको अपना रास दिखा दिया और फिर कभी आनेको मना कर दिया।
उस दिनसे जबतक वे जीये, पागलकी तरह ही रहे । मरते समय यह बात उन्होंने अपने शिष्यको बतायी थी।
There is a place called Sevakunj in Vrindavan. It is popular that there is a divine raas at night. That’s why no one stays there at night.
Once it occurred to a Punjabi Mahatma that ‘no matter what happens, I will remain watching the raas’. Just at night they climbed there on the wall and started watching, but they could not see anything. The same thing happened on the second day as well. Finally, on the third day, he decided that if he does not have darshan today, he will give up his life here. That day also passed three o’clock in the night.
At the same time, he came to know that as if crores of moons were rising together and sprinkling their cool-sweet moonlight. After some time it was seen that ‘beautiful women are coming’. Shriradhakrishna is coming behind everyone with hugs. Radhaji said – ‘Today I can smell like a human here.’
Shri Krishna said – ‘No, he is his own man, if you ask me to call him!’ Radhaji said – ‘Call him!’ That Mahatma was listening anyway. As soon as Shri Krishna indicated that he jumped and went inside.
Shriradhakrishna showed him his rasa and refused to come ever again.
From that day till he lived, he remained like a madman. He told this to his disciple while dying.