एक दिन एक सिंधी सज्जन किसी कामनासे संत मथुरादासजीको खोजता हुआ उनके पास आया और अशर्फियोंकी थैली सामने रखकर अपनी कामना- -पूर्तिके लिये प्रार्थना करने लगा। संतने उसे समझाया, पर वह जब नहीं माना तब संतजीने पूछा- ‘अच्छा, एक बातका उत्तर दो कि यदि तुम्हारी लड़कीकी शादी हो, बारात दरवाजेपर पहुँचनेवाली हो, उस समय यदि कोई तुम्हारी रसोईमें, जिसको तुमने लिपवा पुतवाकर साफ रखा हो, अंदर चूल्हेमें जाकर टट्टी कर दे तो तुम क्या करोगे ?’ सिंधीने कहा—‘महाराज! डंडे मार-मारकर हड्डीपसली तोड़ दूँगा।’
संत बोले- ‘भैया ! इसी प्रकार हम अपने हृदयको साफ करके भगवान्की बाट देख रहे हैं, वे मिलनेवाले हैं। इसीसे हम सब कुछ छोड़कर निर्जन गङ्गातटपर एकान्तमें उनकी पूजाके लिये चौका लगाकर बैठे हैं। तू यह अशर्फियोंकी थैलीरूप उसमें टट्टी करना चाहता है, बता तेरे साथ क्या बर्ताव करना चाहिये तुझे शर्म नहीं आती।’ सिंधी समझ गया और प्रणाम करके वहाँसे चुपचाप चलता बना।
One day a Sindhi gentleman came to Saint Mathuradasji searching for some wish and kept a bag of Ashrafis in front of him and started praying for the fulfillment of his wish. The saint explained to him, but when he did not agree, then the saint asked – ‘Well, answer one thing that if your girl’s wedding procession is about to reach the door, at that time if someone in your kitchen, which you have kept clean by wrapping it, goes inside the stove. What will you do if he does it?’ Sindhi said – ‘ Maharaj! I will break your bones and ribs by hitting you with the stick.’
Saint said – ‘Brother! In the same way, we are waiting for God by purifying our heart, he is going to meet. That’s why we have left everything and are sitting alone on the deserted banks of the Ganges with a square to worship them. You want to put this bag of Ashrafis in it, tell me what should be done with you, you are not ashamed.’ Sindhi understood and bowed down and walked quietly from there.