पास आया और अत्यन्त कातर वाणीमें उसने पूछा ‘महात्मन्! प्रभु-प्राप्तिका मार्ग क्या है ?’
भगवान्को पानेके दो रास्ते हैं-संतने बताया। ‘एक साधारण और दूसरा असाधारण । यदि तुम साधारण मार्गसे उसतक पहुँचना चाहते हो तो संसारके समस्त पाप और इन्द्रियोंकी प्रवृत्तियोंका त्याग करो और यदि असाधारण’उसके समान कोई मूर्ख नहीं, जो अत्यन्त दुर्बल होनेपर भी अमित बल-सम्पन्नसे विरोध करता है।’ संतकी यह वाणी सुनकर मस्जिदसे अपने नौकरोंके साथ जाता हुआ राजकुमार समीप आ गया और संत जुन्नुनसे इस कथनका तात्पर्य पूछ बैठा। संतने बताया’मनुष्य अत्यन्त दुर्बल ही नहीं, सर्वथा असहाय है, | किंतु वह सर्वशक्तिसम्पन्न परमेश्वरका विरोधी बनता है। यह उसकी महान् मूर्खताके अतिरिक्त और क्या है ?’ राजकुमार उदास हो गया, पर बिना कुछ बोले वहाँसे चला गया। कुछ दिन बाद वह पुनः संत जुन्नुनकेपास आया और अत्यन्त कातर वाणीमें उसने पूछा ‘महात्मन्! प्रभु-प्राप्तिका मार्ग क्या है ?’
भगवान्को पानेके दो रास्ते हैं-संतने बताया। ‘एक साधारण और दूसरा असाधारण । यदि तुम साधारण मार्गसे उसतक पहुँचना चाहते हो तो संसारके समस्त पाप और इन्द्रियोंकी प्रवृत्तियोंका त्याग करो और यदि असाधारणमार्गका अनुसरण करना चाहते हो तो अन्तःकरणको विषय-शून्य अत्यन्त निर्मल बनाकर उसे ईश्वरमें लगा दो। ईश्वरके अतिरिक्त और सब कुछ भूल जाओ।
राजकुमारने असाधारण मार्गका अनुसरण किया। वह राजकुमारोंका वेश छोड़कर फकीर बन गया और पहुँचा हुआ प्रसिद्ध संत हुआ। – शि0 दु0
He came near and in a very bitter voice he asked ‘ Mahatman! What is the path of attaining God?
There are two ways to reach God – said the saint. One ordinary and the other extraordinary. If you want to reach him by the ordinary path, then give up all the sins of the world and the tendencies of the senses and if extraordinary ‘there is no fool like him, who opposes with infinite strength even when he is very weak’. Hearing these words of the saint, the prince while leaving the mosque with his servants came near and asked Saint Junnun the meaning of this statement. The saint said, ‘Man is not only very weak, he is completely helpless. But he becomes an opponent of the Almighty God. What else is this but his great stupidity?’ The prince became sad, but left without saying anything. After a few days, he again came to Saint Junnun and asked in a very bitter voice, ‘Mahatman! What is the path of attaining God?
There are two ways to reach God – said the saint. One ordinary and the other extraordinary. If you want to reach Him through the ordinary path, then give up all the sins of the world and the tendencies of the senses, and if you want to follow the extraordinary path, then make the inner self very pure, devoid of objects and engage it in God. Forget everything except God.
The prince followed an unusual path. Leaving the disguise of princes, he became a fakir and became a famous saint. – Shi0 Du0